धनबादः जिले के एसएनएमएमसीएच ओपीडी में सैकड़ों मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं. गरीब तबके के लोगों का यह एक मात्र सहारा है, लेकिन यहां पहुंचने वाले मरीजों की शिकायत है कि उन्हें जिस डॉक्टर से इलाज कराना रहता है. उनके चैंबर को खोजने में काफी वक्त लगता है.साथ ही कुछ एक दवाइयों को बाकी दवाइयां भी बाहर से खरीदनी पड़ती है.
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एसएनएमएमसीएच अस्पताल के ओपीडी में इलाज के लिए पहले पर्चा बनवाना पड़ता है. पर्चा तो लाइन में लगकर मरीज या उसके परिजन बना लेते हैं, लेकिन फिर शुरू होती उन्हें अपने डॉक्टर या उनके चैंबर को खोजने की परेशानी. नए आने वाले मरीजों को डॉक्टर के चैंबर खोजने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है. हालांकि मरीजों की पर्ची पर डॉक्टर्स का कमरा नंबर जरूर दिया जाता, लेकिन फिर भी मरीजों को परेशानी उठानी पड़ती है.
एक वृद्ध दंपती काफी देर से ओपीडी में घूमते भी नजर आए. पूछने पर वृद्ध ने अपना नाम बालेश्वर यादव बताया. बालेश्वर दो बैशाखियों के सहारे अपनी पत्नी तेतरी देवी के साथ काफी देर से अपने डॉक्टर का चैंबर खोज रहे थे.
काफी खोजबीन के बाद आखिरकार उसे डॉक्टर के चैंबर की जानकारी मिली, लेकिन डॉक्टर के जिस चैंबर में उन्हें जाना था. वह दूसरे माले पर था. इसलिए उन्हें जाने के लिए सीढ़िया चढ़नी पड़ीं.
किसी तरह वह वृद्ध सीढियां चढ़कर अपने डॉक्टर के चैम्बर तक पहुंच पाए. ओपीडी में इलाज के लिए पहुंची मरीज शबाना और प्रवीण ने बताया पर्ची बन जाती है लेकिन डॉक्टर के चैंबर को खोजने में काफी परेशानी होती है.
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उन्होंने यह भी कहा कि जो दवाइयां डॉक्टर द्वारा लिखी जाती है. उनमें सभी दवाइयां अस्पताल में उपलब्ध नही रहती है.कुछ दवाइयां बाहर से खरीदनी पड़ती है. वहीं एसएनएमएमसीएच के अधीक्षक अरुण कुमार चौधरी ने ईटीवी भारत से बातचीत में यह बताया कि पूर्व की व्यवस्था ओपीडी में पहुंचने वाले मरीजों के लिए है.
पर्ची के माध्यम से मरीज डॉक्टर तक पहुंचते हैं.पर्ची में रूम नंबर दिया जाता है, जिससे मरीज डॉक्टर तक पहुंचते हैं. उन्होंने कहा कि ई हॉस्पिटल के लिए भी एक साल पहले काम शुरू हुआ था. चयनित एजेंसी के द्वारा डॉक्टर के चैंबर में कनेक्शन लगा दिया गया है, लेकिन कम्प्यूटर और अन्य जरूरी सामान अभी तक नही लगाएं गए हैं.
कार्य पूरा होने के बाद ई हॉस्पिटल की प्रणाली शुरू की जाएगी.दूसरे माले की ओपीडी के डॉक्टरों तक पहुंचने के लिए दिव्यांग मरीजों के पहुंचने की व्यवस्था पर सवाल किए जाने पर अधीक्षक ने कहा कि दूसरे माले पर कोई ओपीडी चैंबर नहीं है. दूसरे माले पर सिर्फ इनडोर की व्यवस्था है.मरीजों को व्हीलचेयर के माध्यम से उन्हें इनडोर में लाया जाता है.
मरीजों को कुछ दवाइयां न मिलने के सवाल पर उन्होंने कहा कि डॉक्टरों मरीजों के हिसाब से कुछ बाहरी दवा भी लिखना पड़ता है, जो मरीजों के लिए बेहद जरूरी होता है. मरीजों को उनके डॉक्टर के चैंबर को खोजने में आ रही परेशानी को लेकर अस्पताल प्रबंधन के पास कोई व्यवस्था नहीं है.
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कमरा नम्बर देकर वह इस व्यवस्था की इतिश्री कर दे रहें हैं, जबकि रजिस्ट्रेशन काउंटर पर ही यदि ओपीडी के डॉक्टरों का एक साइन बोर्ड कमरा नम्बर इंगित करते हुए लगा दिया जाए तो आने वाले नए मरीजों को डॉक्टर चैंबर तक पहुंचने काफी सहूलियत होगी.
या यूं कहें वह आसानी से डॉक्टर तक पहुंच सकेंगे. अधीक्षक को यह नहीं मालूम कि ओपीडी निचले तल में तो चलती ही है. ठीक उसके ऊपरी तल में भी ओपीडी में डॉक्टर बैठते हैं.
ईएनटी,चर्म रोग व अन्य ओपीडी विभाग हैं. जहां ओपीडी के ही मरीजों को देखा जाता है. दिव्यांग मरीजों के लिए व्हीलर की व्यवस्था अस्पताल प्रबंधन को करनी चाहिए. मरीजों की जरूरत के हिसाब से डॉक्टरों द्वारा लिखी जाने वाली बाहरी दवाइयों पर अस्पताल प्रबंधन को खास ख्याल रखने की जरूरत है, क्योंकि यहां पहुंचने वाले मरीज ज्यादातर गरीब तबके के होते हैं. जाहिर सी बात है कि वह बाहर की महंगी दवाइयां खरीदने में भी असमर्थ होंगे.