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सुभाष चंद्र बोस का धनबाद से था गहरा नाता, अंतिम बार गोमो रेलवे स्टेशन पर ही देखे गए थे नेताजी - नेताजी सुभाष चंद्र बोस

नेताजी सुभाष चंद्र बोस 18 जनवरी 1941 को धनबाद के गोमो स्टेशन पर आखिरी बार देखे गए थे. यहां से वे कालका मेल पकड़कर पेशावर के लिए रवाना हो गए थे. कहते हैं इसके बाद किसी ने नेताजी को नहीं देखा.

Netaji subhash chandra bose at gomoh station
गोमो स्टेशन पर दिखे थे नेताजी

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Published : Jan 18, 2021, 1:21 PM IST

Updated : Jan 20, 2021, 4:10 PM IST

धनबाद:तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा...यह नारा देने वाले और अंग्रेजों के छक्के छुड़ाकर हिंदुस्तान छोड़ने पर मजबूर करने वाले हमारे देश के महान क्रांतिकारी थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस. उनकी मृत्यु आज भी एक रहस्य है जिसकी गुत्थी नहीं सुलझ सकी है. ऐसा कहा जाता है कि 1945 में ताइपे में एक विमान दुर्घटना में नेताजी की जान चली गई थी. लेकिन, इसकी पुख्ता पुष्टि अब तक नहीं हो सकी है. 18 जनवरी 1941...यही वह तारीख है जिस दिन नेताजी को हिंदुस्तान में आखिरी बार देखा गया था. वे धनबाद के गोमो रेलवे स्टेशन पर देखे गए थे जहां से वे कालका मेल पकड़कर पेशावर के लिए रवाना हुए थे. कहते हैं कि इसके बाद किसी ने भी नेताजी को नहीं देखा.

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गोमो से पेशावर के लिए रवाना हो गए थे नेताजी

नेताजी के मित्र शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के पोते शेख मोहम्मद फखरुल्लाह बताते हैं कि नेताजी का उनके घर बराबर आना जाना लगा रहता था. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई बार नेता जी उनके दादा से मिलने भेष बदलकर आया करते थे. 18 जनवरी 1941 को नेताजी कोलकाता से सड़क मार्ग से कार से गोमो पहुंचे और अपने मित्र शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के पास आए. नेताजी पठान की वेश में थे. यहां शेख अबदुल्ला से मुलाकात करने के बाद उन्हें अमीन नाम के एक दर्जी ने रात करीब 12 बजे कालका मेल में जाकर बिठाया. ट्रेन में बैठकर वह पेशावर के लिए रवाना हो गए.

नेताजी के नाम पर संग्रहालय बनाने की मांग

शेख मोहम्मद अब्दुल्ला धनबाद सिविल कोर्ट में उस समय वकील हुआ करते थे जिनसे नेताजी का स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बराबर मिलना जुलना लगा रहता था. शेख अब्दुल्ला बिहार के सीवान जिले के रहने वाले थे लेकिन वे गोमो में ही रहते थे. गोमो इलाके में आज भी लोको बाजार में गोमो स्टेशन के ठीक बगल में अब्दुल्लाह कॉलोनी है.

शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की मौत 1968 में हो गई थी. इनके पोते फखरुल्लाह का कहना है कि गोमो नगरी का विकास नेताजी की यादों से जुड़ी होने के बावजूद भी आज तक नहीं हो पाया है. बाजार में नेताजी की एक भव्य प्रतिमा स्थापित होनी चाहिए. नेताजी के नाम से संग्रहालय और पार्क बनना चाहिए. साथ ही साथ उनके दादा के भी नाम पर भी सरकार सम्मान देना चाहिए.

18 जनवरी को हर साल बांटी जाती है मिठाई

गोमो के स्टेशन प्रबंधक बीसी मंडल का कहना है कि 1906 में गोमो स्टेशन अस्तित्व में आया था. 18 जनवरी को आखिरी बार नेताजी ने यहां से कालका मेल पकड़ी थी. इसी वजह से हर साल 17-18 जनवरी की रात 12 बजे कालका मेल के आने के समय प्लेटफॉर्म नंबर-2 पर नेताजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया जाता है और मिठाई बांटी जाती है. ऐसा कहा जाता है कि इस स्टेशन के बाद नेताजी के गुम होने के कारण इस स्टेशन का नाम गोमो पड़ा. 23 जनवरी 2009 में तत्कालीन रेल मंत्री लालू यादव ने इस स्टेशन का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन गोमो कर दिया.

रेलवे अधिकारियों के साथ-साथ स्थानीय लोगों का भी मानना है कि जिस तरह यह स्टेशन नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से जुड़ा है और स्टेशन ऐतिहासिक महत्व रखता है ऐसे में इस स्टेशन का समुचित विकास अब तक नहीं हो पाया है. लोगों का कहना है कि इस स्टेशन में नेताजी से जुड़ी संग्रहालय, पार्क और स्टेडियम होना चाहिए. स्टेशन को इस तरह विकसित करना चाहिए जैसे इस स्टेशन से कोई गुजरे तो लोगों को नेताजी की याद आने लगे.

Last Updated : Jan 20, 2021, 4:10 PM IST

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