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आपातकालः धनबाद के नेता आज भी याद करते हैं वह खौफनाक पल, पूरा देश बन गया था जेल

25 जून 1975 को देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने (Prime Minister Indira Gandhi) आपातकाल (National Emergency) की घोषणा कर दी थी. इस दौरान कई नेताओं की गिरफ्तारी हुई थी. धनबाद में भी जेपी आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी हुई थी. जिनसे ईटीवी भारत (ETV Bharat) ने खास बातचीत की.

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धनबाद के नेता

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Published : Jun 25, 2021, 9:09 AM IST

धनबादः देश में राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लगा था, जो लगभग 21 महीने तक चला था. धनबाद में जेपी आंदोलन के आंदोलनकारी इसे काला दिन बताते हैं. धनबाद के आंदोलनकारी आज भी उस दिन को नहीं भूलते उनका कहना है कि वे कभी नहीं चाहते की दोबारा से आपातकाल लगे.

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कांग्रेस विरोधी और जेपी आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी
25 जून की रात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने (Prime Minister Indira Gandhi) आपातकाल (National Emergency) की घोषणा कर दी थी. 26 जून से ही कांग्रेस विरोधी और जेपी आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी होने लगी. जेपी आंदोलनकारी हरि प्रकाश लाटा बताते हैं कि देश के साभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था. धनबाद में भी 26 जून से गिरफ्तारी शुरू हो गई थी. जनसंघ, छात्र संघ कम्युनिस्ट पार्टी में एमसीसी के नेताओं की गिरफ्तारी शुरू कर दी गई थी. उस समय दो तरह के कानून के तहत गिरफ्तारी होती थी. इनमें से एक मीसा (Maintenance of Internal Security Act) था और दूसरा डीआईआर (DIR) था.

आंदोलनकारी हरि प्रकाश लाटा ने ईटीवी भारत से की बात

क्या है MISA और DIR कानून?
MISA कानून का प्रोविजन था कि जिस पर भी मीसा लगता था, वह कोर्ट में नहीं जा सकता था. 6 महीने में इसका रिवव्यू होता था. सरकार के नुमाइंदे इसका रिवव्यू करते थे. डीसी स्तर पर एक कमिटी बनती थी, जो यह निर्णय लेती थी कि आरोपी के ऊपर मीसा का चार्ज आगे बढ़ाया जाए या नहीं. हरि प्रकाश लाटा ने बताया कि जिन नेताओं की गिरफ्तारी मीसा के तहत हुई थी. साल 1977 में इंदिरा गांधी के चुनाव हारने के बाद ही वह जेल से बाहर निकल पाए.

दूसरी गिरफ्तारी DIR (Defense India Rule) के तहत होती थी. इसमें जिनकी गिरफ्तारी होती थी. उन्हें लोअर कोर्ट से जमानत का प्रोविजन नहीं था. डिस्टिक कोर्ट से रिजेक्ट कराने के बाद जमानत के लिए हाई कोर्ट की शरण में जाना पड़ता था. इसमे भी समय सीमा निर्धारित थी. तीन महीने के बाद ही जमानत मिल पाती थी.


एक साल के लिए बढ़ा था लोकसभा का कार्यकाल
जेपी आंदोलनकारी हरि प्रकाश लाटा ने बताया कि अखबारों के ऊपर भी सेंसरशिप (Censorship) लागू कर दिया गया था. बिना उपायुक्त या मनोनीत अधिकारी को दिखाए कोई भी खबर नहीं छप सकती थी. किसी भी तरह के विरोध प्रदर्शन पर पाबंदी थी. लोग गुप्त तरीके से पर्चे बुलेटिन निकालकर लोगों के बीच बांटते थे. मुकुटधारी सिंह की ओर से झरिया से अखबार निकाला जाता था. पहले ही दिन अखबार के फ्रंट पेज पर उन्होंने सरकार के विरोध में आर्टिकल छापा था. इसके लिए उन्हें जेल भेज दिया गया था. हिंदुस्तान के इतिहास में पहली बार लोकसभा का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ाया गया था. जो लोकसभा चुनाव 1976 में होने वाला था, वह 1977 में हुआ.

लोगों के नागरिक अधिकार का हनन
प्रकाशक महेंद्र भगानिया ने बताया कि उस वक्त छात्र संघर्ष समिति के तहत यहां कार्य कर रहे थे. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के झरिया कार्यालय को प्रशासन ने सील कर दिया था. छोटानागपुर के संघ चालक मदन लाल अग्रवाल को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. लोगों के नागरिक अधिकार पूरी तरह से छीन लिए गए थे. प्रशासन के तानाशाही रवैया की शुरुआत हुई थी. इस दौरान लोगों को परेशान किया गया.

प्रकाशक महेंद्र भगानिया ने की ईटीवी भारत से खास बातचीत

छिन गई थी प्रेस की स्वतंत्रता
सांसद पीएन सिंह ने कहा कि यह आपातकाल भारत के इतिहास में काला दिन था. इस दौरान लोकतंत्र खत्म कर दिया गया था. जब देश में भ्रष्टाचार और तानाशाही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में बढ़ा तो इसके खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन शुरू किया. जनता को दबाकर प्रेस की स्वतंत्रता छीन ली गई थी. कोई भी अखबार निष्पक्ष समाचार छाप नहीं सकता था. 80 हजार देश के छोटे बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. देश की स्थिति को लेकर जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी से मुलाकात करने की कोशिश भी की थी, लेकिन उन्होंने मुलाकात नहीं की. इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र की हत्या कर आपातकाल लगा दी. सांसद ने कहा कि ऐसे आपातकाल भारत में दोबारा ना हो, इसके लिए कानून भी बनाना चाहिए.

सांसद पीएन सिंह ने बताई आपातकाल की स्थिति

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