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पलमा में 40 वर्ष बाद फिर से लगा जातरा मेला, दिशोम गुरु ने की थी मेले की शुरुआत

धनबाद के पलमा इलाके में 200 वर्षों से पूजा का आयोजन किया जाता रहा है, लेकिन 40 वर्षों से यहां लगने वाला मेला यहां बंद हो गया था, जिसे एक बार फिर से शुरु किया गया है. यह मेला जो 28-30 जनवरी तक चलेगा.

Jatra fair held in Dhanbad after 40 years
पलमा इलाके में मेला का आयोजन

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Published : Jan 30, 2020, 8:49 PM IST

Updated : Jan 30, 2020, 10:51 PM IST

धनबाद:जिले में टुंडी इलाके के अति नक्सल प्रभावित पलमा इलाके में 40 सालों से बंद मेले का फिर से शुरुआत की गई. यह मेला झारखंड आंदोलन के समय दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने शुरू करवाया था, जो लगभग 40 वर्षों से बंद था. यहां होने वाली आदिवासी समुदाय की पूजा लगभग 200 वर्षों से लगातार हो रही है पूजा कभी भी बंद नहीं हुई है.

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पलमा इलाका घोर नक्सल प्रभावित इलाकों में माना जाता है. समय-समय पर यहां नक्सली यहां किसी घटना को अंजाम देते रहते हैं. यह एक ऐतिहासिक इलाका है. यहां पर झारखंड आंदोलन के समय शिबू सोरेन एक आश्रम में रहा करते थे और अलग झारखंड आंदोलन का बिगुल इसी इलाके से फूंका गया था.

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आदिवासी समुदाय के लोगों ने इस स्थान पर 50-60 के दशक से ही मेले की शुरुआत की थी. यह मेला इस इलाके का सबसे बड़ा मेला माना जाता था. स्थानीय लोग बताते हैं कि मेले में उस दौर में काफी भीड़ होती थी. धनबाद, जामताड़ा, बोकारो, गिरिडीह संथाल परगना के कई इलाकों से लोग मेला देखने आते थे.

तीन दिनों तक चलेगा मेला
1980 के बाद धीरे-धीरे संगठन कमजोर होता गया और मेला लगना बंद हो गया. हालांकि कुछ लोग मेला के बंद होने का कारण नक्सलियों का खौफ भी बताते हैं. इसे जातरा मेला के नाम से जाना जाता है. लगभग 40 वर्षों के बाद जिला परिषद सदस्य रायमुनी देवी और स्थानीय मुखिया के साथ गांव के लोगों ने मिल बैठकर फिर से मेला लगाने की पहल की है. यहां एक बार मेला का आयोजन किया गया है, जो 28-30 जनवरी तक चलेगा.

कैसे होती है पूजा
मेले में खास आकर्षण का केंद्र आदिवासियों की पूजा होती है, जिसे देखने के लिए काफी संख्या में दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. आपको बता दें कि इस पूजा में जो भी पकवान बनता है आदिवासी उसे अपने हाथों से उठाते हैं, वहीं पकवान वह अपने इष्ट देवता और ग्राम देवता को चढ़ाते हैं, साथ ही साथ वहां पर जो बकरे की बली होती है, वह कच्चे खून का भी सेवन आदिवासी पुजारी सादे कपड़े में ढक कर करते हैं. इस पूजा को स्थानीय भाषा में चटिया भी कहा जाता है. स्थानीय लोगों का मानना है कि पूजा के समय देवता उनके शरीर पर सवार होते हैं.

पूजा की क्या है मान्यताएं
ऐसी मान्यता है कि इस पूजा को करने से गांव में किसी प्रकार की बाधाएं नहीं आती है और अगर गांव में किसी प्रकार की अनिष्ट होने की आशंका होती है, या महामारी फैलने की आशंका होती है, तो इस जगह से देवता इन्हें कुछ संकेत दे देते हैं और यहां जल चढ़ाकर मन्नत मांगने से वह अनिष्ट दूर हो जाता है. लोगों ने बताया कि इस पूजा के करने से चेचक, हैजा, डायरिया, पशुओं में फैलने वाली बीमारी आदि से मुक्ति मिलती है.

Last Updated : Jan 30, 2020, 10:51 PM IST

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