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बदहाल आशाः अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन?

अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर (international footballer) आशा आज बदहाली की जिंदगी बिता रही है. ईटीवी भारत से अपना दर्द साधा करते हुए उन्होंने बताया कि सांत्वना के नाम पर कुछ राशन और रुपये दिए गए. लेकिन अब तक उनके लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए, जिसकी वजह से सिर्फ वो ही नहीं कई खिलाड़ी आहत हैं.

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अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलर आशा

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Published : Jun 4, 2021, 9:25 AM IST

Updated : Jun 4, 2021, 1:15 PM IST

धनबादः अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा चुके झारखंड के खिलाड़ी आज बदहाली की शिकार हैं. वो अपना जीवन चला पाने में असमर्थ हैं. सरकार उन खिलाड़ियों की सुध नही ले रही है. मीडिया कवरेज के बाद उसकी हकीकत सामने तो आती है. लेकिन सांत्वना के नाम पर स्थानीय जनप्रतिनिधि और प्रशासन ने राशन और कुछ रुपए मुहैया कर अपना काम खत्म कर लिया.

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जिला में तोपचांची प्रखंड की बिशुनपुर पंचायत की रहनेवाली आशा अंतराष्ट्रीय फुटबॉलर है. आज उनकी स्थिति काफी दयनीय हो चली है. छोटी बहन भी जिला से लेकर राज्य स्तर तक फुटबॉल में अपनी पहचान बना चुकी हैं. लेकिन अब सरकार की उदासीनता के कारण दोनों बहनों का मनोबल टूटता जा रहा है.

अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल मैच में किया था भारत का प्रतिनिधित्व
आशा ने साल 2018 में भूटान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल मैच (international football match) में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी का गौरव हासिल करने के बाद भी आशा सरकार की ओर से सहयोग ना मिलने से बेहद निराश हैं. आशा की घर की माली हालत ठीक नहीं है. आशा के पिता डेलू महतो का वर्षों पहले निधन हो चुका है. आशा की दो बहन और एक भाई है. पिता का साया सिर से उठने के बाद मां ने दूसरे के खेतों में काम कर अपने बेटियों की प्रतिभा को आगे बढ़ाया. तीन बहनों में आशा और ललिता दोनों फुटबॉल खिलाड़ी हैं. ललिता जिला से लेकर राज्य स्तर तक खेल चुकी हैं.

कई खिलाड़ियों ने किया फुटबॉल से किनारा

ललिता भी आगे खेलने की तमन्ना रखती हैं. लेकिन बहन की हालत देखकर उसका भी मनोबल टूटता जा रहा है. आशा और ललिता दोनों खेतों में काम कर जीवन चलाने को विवश हैं. जनप्रतिनिधि और प्रशासन को जानकारी मिलने के बाद घर पहुंचकर राशन और कुछ राशि का चेक मुहैया करा अपने कर्तव्य का निर्वहन कर लिया. आशा का कहना है कि इन सब चीजों से कुछ दिनों के लिए ही सहयोग मिल पाता है. सरकार जब तक नौकरी नहीं दे देती तब तक जीवन में सुधार लाना मुश्किल है. वह कहती है कि गांव की कई लड़कियां फुटबॉल खेलती थीं, वो मेरी परिस्थिति देखकर खेल से मुंह मोड़ लिया. सरकार को चाहिए कि आगे आकर खिलाड़ियों के लिए कारगर कदम उठाए, जिससे खिलाड़ियों का जज्बा और हौसला कायम रहे.

Last Updated : Jun 4, 2021, 1:15 PM IST

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