धनबाद: झारखंड में होनहार खिलाड़ियों की कमी नहीं है. कई खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिभा के बल पर राष्ट्रीय पहचान भी बनाई है. तो कई खिलाड़ी ऐसे भी हैं जो पैसे की कमी और राज्य सरकार की उदासीनता की वजह से मजदूरी करने को विवश हैं. ऐसी ही एक खिलाड़ी है सुमति मरांडी. राज्यस्तर की ये फुटबॉल खिलाड़ी अपनी प्रतिभा के बल पर कई मेडल जीत चुकी हैं लेकिन गरीबी और आर्थिक तंगी ने ऐसा मजबूर किया कि वो खेल छोड़कर मजदूरी करने को विवश है. सुमति फुटबॉलर के साथ अच्छी धावक भी है, लेकिन सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल पाने के कारण ये दूसरे के खेतों में रोजाना 125 रुपए की मजदूरी पर काम कर रही है.
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अपने माता-पिता की इकलौती संतान है सुमति
सुमति मरांडी मैथन एरिया के पांच नंबर स्थित पुरुलिया बस्ती में रहने वाले आदिवासी दंपती लखीराम मरांडी और सनी मरांडी की इकलौती संतान है. इनकी मां सनी मरांडी को बेटी होने के बाद बेटे की कभी चाह नहीं हुई और उन्होंने बेटी को ही अपना बेटा माना. सुमति ने भी अपनी मां और पिताजी के सपनों को बेटे की तरह ही पूरा करने की कोशिश की. फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में अपना परचम लहराया. 2019 में रांची में राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में शामिल हुई. धनबाद में जिलास्तर पर कई फुटबॉल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर पदक जीता. सुमति फुटबॉलर के साथ-साथ एक अच्छी धावक भी है. 2016 में राज्यस्तरीय एथलेटिक्स में 400 मीटर की दौड़ मे भी सुमति को मेडल मिला. लेकिन परिवार की दयनीय स्थिति ने उसे मजदूरी करने पर विवश कर दिया.