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झारखंड के इस टीचर को सलाम, नहीं हैं दोनों हाथ फिर भी संवार रहे बच्चों का भविष्य

धनबाद के गोविंदपुर प्रखंड में एक ऐसे अनोखे शिक्षक हैं जो खुद दिव्यांग होते हुए भी दूसरों को शिक्षित कर रहे हैं. ये जन्म से ही दिव्यांग हैं. इन्होंने अपने आत्मबल पर इस सम्मान को हासिल किया और आज विद्यालय में बच्चों को पढ़ा रहे हैं.

मोहम्मद अकबर अंसारी

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Published : Sep 5, 2019, 2:21 PM IST

धनबाद: जिले के गोविंदपुर प्रखंड के उर्दू प्राथमिक विद्यालय गायडेहरा में एक अनोखे शिक्षक हैं. जो विद्यालय में पारा शिक्षक के तौर पर काम करते हैं. इन्हें मलाल है कि इतनी परेशानी के बावजूद इन्हें सरकार ने आज तक नियमित नहीं किया है. वेतन चार-पांच महीने का कभी-कभी रुक जाता है. घर का किराया देने में भी दिक्कत हो जाती है लेकिन सारी परेशानियों के बावजूद विद्यालय में बच्चे को शिक्षा दे रहे हैं.

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दिव्यांग शिक्षक मोहम्मद अकबर अंसारी का कहना है कि जब इनका जन्म हुआ था, उसी समय से इनके दोनों हाथ नहीं थे. जन्म लेने के बाद आस-पड़ोस के लोग इस अनोखे बच्चे को देखने के लिए आए तो उन्होंने उनके मां और पिताजी को सलाह दी कि बच्चे को फेंक दीजिए. यह बच्चा रह कर क्या करेगा, कैसे जियेगा. अकबर ने कहा कि मां आखिर मां होती है और मेरी मां ने कहा कि जैसा भी है मेरा बच्चा मेरे जिगर का टुकड़ा है. इसे मैं अपने पैरों पर खड़ा करूंगी. फिर मां की देखभाल के बाद बड़ा होने पर अकबर धीरे-धीरे स्कूल जाने लगे और आज इस मुकाम तक पहुंच गये हैं.

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खुद करते हैं सारा काम
मोहम्मद अकबर अपना सभी काम खुद ही कर लेते हैं जैसे खाना बनाना, नहाना, चापानल चलाना. स्कूल आकर बच्चों की पढ़ाई में लग जाते हैं. पैरों से ब्लैक बोर्ड पर लिख बच्चों को पढ़ाते हैं. पैरों से लिखने के बाद भी लेगराइटिंग या फिर हैंडराइटिंग ऐसी रहती है कि लोग हाथों से वैसा नहीं लिख सके.

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2005 में पारा शिक्षक के पद पर हुए थे बहाल
2005 में मोहम्मद अकबर अंसारी का इस स्कूल में पारा शिक्षक के रूप में चयन हुआ था. तत्कालीन धनबाद उपायुक्त के आदेश पर इनका चयन हुआ था. इनकी शादी 2011 में हुई है. इनकी दो लड़की भी है. इन्होंने सोशियोलॉजी से बीए किया हुआ है. दिव्यांग होने के बावजूद इन्होंने आज तक दिव्यांगता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. अपने दम पर इन्होंने यह मुकाम हासिल किया और आज एक साधारण व्यक्ति की तरह अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

सरकार से की गुजारिश
प्रशिक्षक मोहम्मद अकबर अंसारी का कहना है कि कभी-कभी दो चार महीने वेतन नहीं मिलता है तो ऐसे में भाड़े के घर में रहना कठिन हो जाता है. मकान मालिक पैसे का दबाव बनाने लगते हैं, ऐसे में सरकार से बस एक ही गुजारिश है कि मुझे नियमित कर दें. ताकि मैं अपने और अपने परिवार का भरण पोषण सही तरीके से कर सकूं. इन्होंने दिव्यांग लोगों को कहा कि कभी भी हार नहीं माननी चाहिए. मन में अगर कुछ कर गुजरने की मजबूत इच्छाशक्ति हो तो लोग उसे कर ही लेते हैं जैसा मैंने किया है.

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