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'बोल बम का नारा है बाबा एक सहारा है', जानिए बोल बम का उच्चारण क्यों करते हैं कांवड़ियां

देवघर के बाबा धाम में बोल बम का नारा जोर शोर से लगाया जाता है. इस नारे के साथ कांवड़ियां 105 किलोमीटर लंबी कांवड़ यात्रा आसाना से पूरी कर लेते हैं. इस बोल बम के नारे की अपनी एक विशेष कहानी और महत्व है.

story behind bol bam
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Published : Jul 30, 2023, 10:55 PM IST

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देवघर: सावन के महीने में कांवड़ियां बिहार के सुल्तानगंज से गंगा जल अपने कांवड़ में भरकर बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर पहुंचते हैं. रास्ते में कांवड़ियां बम के नाम से जाने जाते हैं और रास्ते भर सभी बोल बम का उच्चारण करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बोलबम बोलने के पीछे की कहानी क्या है और बोल बम का जयकारा क्यों लगाया जाता है?

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देवघर के कांवड़ियां पथ पर इन दिनों हजारों की संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं के मुंह से बोल बम का उच्चारण सुनाई देता है. सुल्तानगंज से जल भर कर 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर कांवड़ियां बोल-बम बोल-बोल कहते बाबा मंदिर पहुंच बाबा पर जलार्पण करते हैं. कांवड़ियां बम क्यों बोलते हैं, इसके पीछे भी एक कहानी है.

बोल-बम के नारे से लोगों को मिलती है शक्ति: बोल-बम का नारा लगाते हुए बम सुल्तानगंज से गंगा जल लेकर बाबा धाम की 105 किलोमीटर की कष्टमय यात्रा कब पूरी कर लेते हैं, किसी को भी मालूम नहीं चलता है. बम की मानें तो बाबा भोले का प्रिय. बोल बम का नारा लगाने से बाबा की शक्ति मिलती है और इसी शक्ति से रास्ता कट जाता है. कई ऐसे बम भी हैं जो शारीरिक तकलीफ होने के बावजूद बोल-बम बोलते हुए इस कठिन यात्रा को पूरा करते हैं. पूरे रास्ते कांवड़ियां 'बोल बम का नारा है बाबा एक सहारा है' कहते हुए आगे बढ़ते रहते हैं.

ये है बम के पीछे की कहानी: बाबा धाम के तीर्थ पुरोहित प्रमोद श्रृंगारी के अनुसार राजा दक्ष के यज्ञ में माता सती ने अपना शरीर त्याग दिया था. जिसके बाद भगवान भोलेनाथ ने राजा दक्ष का गला काट दिया था. इसके बाद जीवित करने के लिए भगवान शंकर ने राजा दक्ष को बकरा का सिर लगा दिया था. दक्ष के मुख से बकरे वाली बोली में जो पहला शब्द निकला, वह बम था. जिसे सुनकर भगवान शंकर अति प्रसन्न हुए. तब से 'बम-बम हर-हर बम-बम' का उच्चारण कर श्रद्धालु भगवान शिव को प्रसन्न करने लगे. यही कारण है कि सुल्तानगंज से लेकर बाबा मंदिर तक बोल-बम का नारा गूंजता है. बाबा की आस्था की ही महिमा है कि लोग सावन और इस वर्ष मलमास माह में दूर-दराज से यहां पहुंचते हैं.

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