देवघर:सरकारी स्कूलों की दुर्दशा की कहानी तो आप आए दिन देखते-सुनते होंगे. लेकिन यह कहानी जो हम आपको बताने जा रहे हैं, यह कहानी है एक ऐसे सरकारी स्कूल की, जो आज पूरे देश के लिए आदर्श बन चुका है. सरकारी स्कूल और वो भी आदर्श शायद इसकी कल्पना भी हम नहीं करते लेकिन जिद और जुनून हो तो कुछ भी असंभव नहीं. अपनी जिद और जुनून से ऐसे ही अकल्पनीय को सच्चाई के धरातल पर उतारा है शिक्षक अरविंद राज जजवाड़े ने और गोपालपुर प्राथमिक विद्यालय की नई इबारत लिख दी.
रेगिस्तान में ओस की बूंद है स्कूल
अक्टूबर 2009 में अरविंद गोपालपुर प्राथमिक विद्यालय में पदस्थापित हुए थे. वे तभी से विद्यालय की बेहतरी के लिए कुछ न कुछ प्रयास करते रहे. उन्होंने सबसे पहले अपने शिक्षण कौशल से बच्चों की पढ़ाई के स्तर को बेहतर किया. प्रकृति को ही स्कूल की प्रयोगशाला बना दिया. कम संसाधन में बेहतर शिक्षा देने की सोच के तहत उन्होंने बच्चों के सीखने की चीजें आसपास से ही इजाद की. उनके यह प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होंगे. उस समय उनके मन में भी शायद ही यह ख्याल हो, लेकिन उनके इस प्रयोग को देखते हुए स्कूल चले अभियान के क्रम में गोपालपुर पहुंचे झारखंड सरकार के सचिव डॉ नीतिन मदन कुलकर्णी ने स्कूल को रेगिस्तान में ओस की बूंद कहा था.
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स्वच्छता के लिए स्कूल को मिला पुरस्कार
शिक्षा का स्तर बेहतर करने के बाद अरविंद राज अपने अगले मिशन में जुट गए. यह मिशन था स्कूल को स्वच्छ और सुंदर बनाने का. इस काम में वे पूरी तरह जी-जान से जुट गए. उनकी मेहनत आखिरकार रंग लाई. वर्ष 2018 में भारत सरकार ने देशभर के लाखों स्कूलों में जिन 52 स्कूलों को स्वच्छता में अव्वल चुना था उसमें गोपालपुर का नाम 23वें स्थान पर था. पूरे राज्य में गैर आवासीय सरकारी प्राथमिक स्कूल में इसने पहला स्थान प्राप्त किया था. स्वच्छता में स्कूल को जो भी पुरस्कार मिले उसमें स्कूल के शौचालय की भूमिका सबसे बड़ी रही. स्कूल में स्वच्छता का आलम यह है कि बड़े से बड़े प्राइवेट स्कूल भी इसके आगे फेल हो जाए. पूरे स्कूल में मार्बल, टाइल्स और हाथ धुलाई की व्यवस्था देखकर आपको यह अहसास ही नहीं होगा कि यह कोई सरकारी स्कूल है. स्कूल की इस बेहतरीन व्यवस्था को देखते हुए यहां के शौचालय को झारखंड सरकार ने अपनी पत्रिका का कवर बनाया था और स्कूल को स्वच्छता के लिए एक लाख रुपए का नकद पुरस्कार भी दिया गया था.
आसान नहीं थी राह
अरविंद जिस रास्ते पर निकल पड़े थे, वह रास्ता आसान नहीं था. स्कूल के सौंदर्यीकरण के लिए अरविंद न केवल डीएसई और पेयजल व स्वच्छता प्रमंडल के जेई, एई और कार्यपालक अभियंता से मिलते थे बल्कि तत्कालीन डीडीसी सुशांत गौरव और डीसी राहुल कुमार सिन्हा के पास भी कई बार अपने प्रोजेक्ट को लेकर मिल चुके थे ताकि सरकारी सहायता मिले तो वे अपने काम को गति दे. स्कूल कार्य को लेकर वे लगातार वरिष्ठ अधिकारियों से मिले और इस प्रकार प्रस्तुति दी कि डीसी और डीडीसी ने डीएमएफटी फंड से स्कूल को छह लाख रुपये दे दिया.