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बांस के सहारे महिलाएं चलाती है अपनी रोजी-रोटी, आत्मनिर्भर भारत का सपना हो रहा साकार

चतरा के सिमरिया प्रखंड के रोल गांव की महिलाएं बांस के उत्पाद को बनाकर अपनी रोजी-रोटी चला रही हैं. इससे महिलाएं स्वावलंबी और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार कर रही हैं.

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Published : Jan 25, 2021, 5:00 AM IST

Updated : Jan 27, 2021, 5:52 PM IST

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चतरा: कहते हैं कि मजबूत इरादों के बल पर सब कुछ हासिल किया जा सकता है. कठिनाई पर जीत दर्ज करने की यह कहानी चतरा जिले के सिमरिया प्रखंड के रोल गांव की महिलाओं की है. इस गांव की महिलाओं ने वो कर दिखाया, जो देश भर की महिलाओं के लिए मिसाल है. इन महिलाओं ने पीएम मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान को साकार कर हर किसी को अपना मुरीद बना लिया है. गरीबी का दंश झेल रही महिलाओं ने जेएसएलपीएस संस्था की मदद से आत्मनिर्भरता की राह पकड़ी है.

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बांस से बर्तन बनाकर घर चलाती हैं महिलाएं
बांस के बने बर्तनों जैसे डालिया, पंखे और बसोलिया समेत कई अन्य बर्तनों को बनाकर बेचने के जरिए महिलाएं घर का खर्चा चलाने के साथ बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दे रहीं हैं. हालांकि इसकी शुरुआत सालों पहले हुई थी लेकिन बदलाव का असल असर और सही पहचान तब सामने आई जब देश में वैश्विक महामारी के दौर में सभी रोजगार बाहरी कामों में पूरी तरह से रोक लग गई. कोरोना और लॉकडाउन के कारण घर के पुरुषों की कमाई ठप हो गई थी.

गांव की उर्मिला महिला ने कहा कि पति को घर पर बैठ जाने से घर आर्थिक स्थिति खराब हो थी. इसके साथ ही बेरोजगारी का दंश झेल रहें थे तो जेएसएलपीएस के समूह से जुड़ा उसके बाद बांस से सूप, दउरा आदि बनाना सिखा. जिसके बाद ऋण लेकर काम शुरू किया गया. आज बांस से बना सामान बेचकर बच्चों को पढ़ाई करवाने के साथ-साथ घर का खर्चा भी चला रहे हैं. मालती देवी ने कहा कि गांव की महिलाओं के कहने पर समूह से जुड़ी. जिसके बाद 23 हजार रुपये ऋण लेकर सूप बनाने का कार्य शुरू किया. बांस से बने सामान की बिक्री कर अच्छी आमदनी हो रही है. अब यही रोजी-रोटी और कमाई का जरिया है. किसी प्रकार के आर्थिक लेन-देन की जरूरत पड़ने पर भी सेठ और साहूकार के चक्कर लगाने नहीं पड़ते हैं.

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महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर

वहीं, जेएसएलपीएस के प्रखंड प्रबंधक राहुल रंजन पांडे ने कहा कि संस्था के माध्यम से गांव की महिलाएं आत्मनिर्भर बन रहीं हैं. स्वरोजगार से जुड़कर अपने घर परिवार का भरण पोषण कर रहीं हैं. उन्होंने बताया कि समूह की महिलाओं को 98 रुपये का बांस सूप, दउरा, पंखा आदि बनाने के लिए दिया गया है. महिलाएं धीरे-धीरे अपना ऋण चुका रही है.

Last Updated : Jan 27, 2021, 5:52 PM IST

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