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इस मंदिर से है आदिवासियों का अटूट रिश्ता, इनके हाथों शुरू होती है महाशिवरात्रि की पूजा

जिले में महाशिवरात्रि के दिन विशेष पूजा और मेला का आयोजन किया जाता है. 300 साल पुराने इस मंदिर से आदिवासियों का अटूट रिश्ता है.

महाशिवरात्रि की पूजा

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Published : Mar 4, 2019, 3:02 PM IST

गढ़वा: साहित्यकार और राजनीतिज्ञ आदिवासी समुदाय को हिन्दू धर्म और जमात से अलग बताने का तर्क ढूंढते रहते हैं. उन्हें हिन्दू से अलग समुदाय बताया जाता है, लेकिन गढ़वा का यह धार्मिक धरोहर आदिवासियों का हिन्दू धर्म से अटूट रिश्ते का सबूत पेश कर रहा है. लाखों लोगों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बना गढ़वा का शिव ढोंढा मंदिर आदिवासियों की कलाकृति को भी दर्शा रहा है.

महाशिवरात्रि की पूजा

जिला मुख्यालय के सोनपुरवा मोहल्ला में लगभग 300 वर्ष पुराना शिव मंदिर अवस्थित है. इसका निर्माण पलामू के प्रमुख चेरो राजा मेदिनीराय के वंशजों ने अपने हाथों से किया था. स्थापना के वक्त उक्त स्थल पर एक ढोंढा (गड्ढा) था, जिसमें हमेशा पानी निकलता रहता था. इस कारण मंदिर का नामकरण शिव ढोंढा मंदिर के रूप में किया गया. उसी समय से वहां महाशिवरात्रि के दिन विशेष पूजा और मेला का आयोजन हो रहा है.

वहीं, चेरो वंशज अब इस स्थल पर नहीं हैं. लेकिन जहां भी हैं वहां से वे प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के एक दिन पहले अपने पुरखों और बच्चों के साथ यहां आते हैं. मुंडन आदी कराते हैं और विधिवत पूजा करते हैं.

मंदिर के प्रबंधक गोपाल प्रसाद गुप्ता का कहना है कि महाशिवरात्रि की पूजा आज भी आदिवासियों के हाथों से शुरू होती है. यही कारण है कि वे एक दिन पूर्व ही आकर पूजा करके चले जाते हैं. मंदिर का ढोंढा अब छोटा तालाब के रूप में विकसित हो गया है. माना जाता है कि भगवान की लीला है जो भीषण सुखाड़ में भी इस तालाब का पानी नहीं सूखता है.

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