रांची: लोकसभा चुनाव झारखंड के लिए कई मायनों में अलग साबित होने वाला है. एक तरफ जहां चुनावी नतीजों को लेकर पक्ष और विपक्ष ताल ठोक रहा है. वहीं दूसरी तरफ तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों का भविष्य इस लोकसभा चुनाव के नतीजों पर निर्भर है. इस बार के चुनाव में कई ऐसे राजनीतिक समीकरण बने, जिन पर एक बार भी विश्वास करना कठिन हो रहा था.
लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट के पहले ही महागठबंधन को लेकर कवायद चल रही थी, लेकिन नेतृत्व पर संकट बना हुआ था. हालांकि चुनाव की घोषणा के बाद यह तय हो गया कि सभी विपक्षी दल एक प्लेटफार्म पर खड़े हो जाएंगे. हैरत की बात यह रही कि झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी जो शुरू से झारखंड मुक्ति मोर्चा के विरोध में खड़े रहे, उन्होंने झामुमो सुप्रीमो के समर्थन में दुमका में चुनाव प्रचार किया. जबकि दुमका संसदीय सीट पर मरांडी, सोरेन को हराकर सांसद भी रहे हैं. इसके अलावा इस चुनाव में महागठबंधन में शामिल कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा और झारखंड विकास मोर्चा के बीच यह भी तय हो गया कि इस साल के अंत में संभावित विधानसभा चुनाव में विपक्षी दल के चेहरा के रूप में झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यवाहक अध्यक्ष हेमंत सोरेन रहेंगे.
संथाल की दुमका सीट पर महासंग्राम
संथाल परगना की हॉट सीट दुमका पर सत्तारूढ़ दल बीजेपी और महागठबंधन के उम्मीदवार शिबू सोरेन के बीच कांटे की टक्कर होने की संभावना है. इस चुनाव में सबसे अजीब बात यह है कि चुनाव लड़ रहे शिबू सोरेन न तो दुमका के वोटर हैं और न ही चुनाव प्रचार कर रहे उनके बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन वहां के मतदाता हैं. इतना ही नहीं अलग-अलग चुनावी सभाओं में शिरकत कर रहे बाबूलाल मरांडी भी दुमका के वोटर लिस्ट में नहीं है.