रांची: लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही प्रत्याशियों के नाम को लेकर कयासों का दौर शुरू हो चुका है. कई सीटिंग सांसदों का टिकट कटने की भी संभावना है. ऐसे में रांची संसदीय सीट पर भी अभी तक किसी भी दल ने अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा की है.
दरअसल, रांची संसदीय सीट सूबे की वीवीआईपी सीट मानी जाती है. यहां जीतनेवाली पार्टी की केंद्र मेंसरकार बनाना लगभग तय माना जाता है. उदाहरण के तौर पर जब 2014 में बीजेपी के रामटलह चौधरी चुनाव जीते तो केंद्र में बीजपी की सरकार बनी. इसके पहले जब दो बार कांग्रेस केंद्र का नेतृत्व कर रही थी तब यहां से सुबोधकांत सहाय चुनाव जीत कर दिल्ली पहुंचे थे. 1999 में भी ऐसा वाक्या देखने को मिल चुका है जब अटल बिहारी बाजपेयी सत्ता के केंद्र में आए थे तब बीजेपी से रामटहल चौधरी चुनाव दिल्ली दरबार पहुंचे थे.
रांची लोकसभा सीट से 2014 का चुनाव जीतने वाले बीजेपी सांसद रामटहल चौधरी छठी बार जीत की उम्मीद पाले बैठे हैं.1952 से 2014 तक 16 बार हुए चुनाव में 5 बार जीत दर्ज करने वाले रामटहल चौधरी के कद को कम तो नहीं आंका जा सकता है. इसका मतलब यह नहीं कि रांची लोकसभा सीट को भाजपा की परंपरागत सीट कह दी जाये. इसकी वजह है शेष चुनाव के नतीजे, 1952 से 2014 के बीच हुए चुनाव के दौरान रांची लोकसभा सीट से सात बार कांग्रेस के प्रत्याशी जीत चुके हैं.1952 में कांग्रेस की टिकट पर अब्दुल इब्राहिम जीते थे. 1967 और 1971 के चुनाव में कांग्रेस के प्रशांत कुमार घोष जीते थे. 1980 और 1984 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर शिव प्रसाद साहू की जीत हुई थी लेकिन 1984 के दंगों के बाद रांची लोकसभा सीट पर कांग्रेस की पकड़ ढीली पड़ गई.