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सुधाकरण के सरेंडर से नक्सलियों में 'खलबली', बड़े नेता धीरे-धीरे कर रहे सरेंडर

झारखंड में नक्सलियों के सबसे बड़े नेता सुधाकरण के सरेंडर करने के बाद संगठन में खलबली मच गई. नक्सलियों को अब ये समझ में नहीं आ रहा है कि एक-एक कर बड़े नेता ही जब किनारा कर रहे हैं तो हमलोगों का क्या होगा.

सरेंडर करने वाला नक्सली सुधाकरण।

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Published : Feb 14, 2019, 11:23 PM IST

रांची: झारखंड के सबसे बड़े नक्सली नेता सुधाकरण और उसकी पत्नी नीलिमा के आत्मसमर्पण के बाद झारखंड में देश का सबसे बड़ा नक्सली संगठन भाकपा माओवादी नेतृत्व विहीन हो गया है. नक्सली कैडरों में अपने नेता के ही आत्मसमर्पण कर देने के बाद खलबली मची हुई है.

आशीष बत्रा, आईजी ऑपरेशन, झारखंड पुलिस


दूसरी तरफ झारखंड पुलिस इस सुनहरे मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहती है. पुलिस एक विशेष रणनीति के तहत नेतृत्व विहीन माओवादियों के ऊपर बड़े कार्रवाई की तैयारी में है. वही दूसरे तरफ छोटे नक्सल कैडर हैरान है कि उन्हें आगे करना क्या है.


सुधाकरण और उसकी पत्नी नीलिमा के आत्मसमर्पण के बाद झारखंड के नक्सलियों में खलबली मची हुई है. संगठन के शीर्ष नेता के द्वारा आत्मसमर्पण करने के बाद, निचले कैडरों को यह समझ नहीं आ रहा कि वह अब किस रास्ते पर चलें और उन्हें आगे करना क्या है. संगठन में संख्या बल की कमी नहीं है. लेकिन वह एक जगह इकट्ठा नहीं है.


जोनल और एरिया स्तर के नक्सल कमाण्डर 15 से 20 गुर्रीला लड़ाकों के साथ अलग-अलग इलाको में जंगल में शरण लिए हुए हैं. प्रशांत बोस, संदीप यादव और मिसिर बोदरा जैसे नक्सली नेता पुलिस की दबिश के वजह से अंडरग्राउंड हो चुके हैं. ऐसे में संगठन में अफरातफरी मची है.

कितना महत्वपूर्ण थे सुधाकरण और नीलिमा
सुधाकरण यह शख्स कितना खतरनाक था, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि देश भर में कुल मिलाकर इस पर एक करोड़ 35 लाख का इनाम घोषित था. झारखंड सरकार ने सुधाकरण के ऊपर एक करोड़ रुपए का इनाम घोषित कर रखा था, जबकि नीलिमा पर 25 लाख रुपए. सुधाकरण की पत्नी नीलिमा स्टेट कमिटी की सदस्य थी, उसके जिम्मे झारखंड और बस्तर के कोरिला के आते हैं, उसी की वह सदस्य थी.


सुधाकरण पिछले 35 सालों से भाकपा माओवादियों का सबसे महत्वपूर्ण सदस्य था.1984 में संगठन में शामिल हुआ सुधाकरण अपनी कार्यकुशलता और तेजी से हमले को अंजाम देकर फरार हो जाने की वजह से वह धीरे-धीरे नक्सलियों के शीर्ष नेतृत्व के नजर में आया. दो हजार के आसपास सुधाकरण को स्टेट कमेटी में जगह मिली जो छत्तीसगढ़ और बस्तर के इलाके की थी. यह वहीं वक्त था जब नक्सलियों की गतिविधियां अपने चरम पर थी.


नक्सलियों के अलग-अलग गुट एक हो चुके थे और एक साथ अपनी गतिविधियां छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, झारखंड और बिहार में चला रहे थे. इन सभी राज्यों में अलग-अलग समय पर बड़े-बड़े नक्सली हमले हुए. लेकिन छत्तीसगढ़ में लगातार नक्सलियों का प्रभाव अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा और मजबूत होता गया.


नक्सलियों की सबसे प्रभावशाली यूनिट दंडकारण्य जोनल कमेटी था. इस कमेटी में सुधाकरण ने अपने 15 वर्ष बिताए. इस दौरान छत्तीसगढ़ में सुधाकरण के नेतृत्व में कई बड़े नक्सली हमले हुए जिसमें 73 सीआरपीएफ जवानों की हत्या के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के अधिकांश बड़े कांग्रेस नेताओं पर कातिलाना हमला शामिल है.


झारखंड में संगठन कमजोर हुआ तो भेजा गया सुधाकरण को
सुधाकरण संगठन के प्रति बेहद समर्पित था. वह अनुशासन प्रिय होने के साथ-साथ निचले नक्सल कैडरों में जोश भरने का भी मद्दा रखता था. 2014 में झारखंड में जब संगठन काफी कमजोर स्थिति में आ गया, तब उसे बिहार-झारखंड स्पेशल एरिया कमेटी का सर्वे सर्वा बनाकर झारखंड भेज दिया गया. झारखंड में बूढ़ा पहाड़ को सुधाकरण ने अपना ठिकाना बनाया और 2 साल तक पुलिस को बूढ़ा पहाड़ के आसपास भी भटकने नहीं दिया.


पत्नी की बीमारी समर्पण की मुख्य वजह
सुधाकरण के समर्पण के पीछे की जो कहानी सामने आ रही है, उसके अनुसार सुधाकरण की पत्नी नीलिमा को कई गंभीर बीमारियां हो चुकी थी. जंगल में रहकर उसका इलाज करवाना असंभव सा था. वही अब सुधाकरण भी 55 वर्ष का हो चुका था. ऐसे में पुलिस के साथ हो रही लुका छुपी की वजह से वह काफी परेशान था. पिछले 3 महीनों के दौरान सुधाकरण के दस्ते के साथ झारखंड पुलिस का 8 बार मुठभेड़ हो चुका था. ऐसे में सुधाकरण ने अपनी पत्नी नीलिमा के लिए संगठन को छोड़ने का मन बना लिया और बड़े ही गोपनीय तरीके से वह तेलंगाना पहुंच गया.


हालांकि आत्मसमर्पण कर चुके कुछ पूर्व नक्सलियों के अनुसार गणपति के अपने पद से हटने के बाद अलग-अलग राज्यों में नेतृत्व को लेकर संगठन में काफी गहरे मतभेद भी हो गए थे. यह भी सुधाकरण के आत्मसमर्पण की बड़ी वजह है.


पुलिस के दोनों हाथों में लड्डू
सुधाकरण के आत्मसमर्पण के बाद झारखंड पुलिस जहां इसे अपनी एक बड़ी कामयाबी मान रही है. वहीं नक्सलियों के लिए इस साल का यह सबसे बड़ा झटका है. यह आत्मसमर्पण इस बात की ओर इशारा भी करता है कि कैसे नेतृत्व परिवर्तन के बाद नक्सली शीर्ष नेतृत्व के नेताओं में विचारधारा को लेकर बेहद गहरे मतभेद उभर रहे हैं. यही वजह है कि उनके इतने पुराने और मजबूत नेताओं में से एक को आत्मसमर्पण करना पड़ा.


झारखंड पुलिस के आईजी ऑपरेशन आशीष बत्रा के अनुसार सुधाकरण ने आत्मसमर्पण के बाद संगठन की पोल खोल कर रख दी है. उसकी पत्नी नहीं है कह कर सबको चौंका दिया कि किस तरह से संगठन में महिलाओं के साथ खिलवाड़ किया जाता है. ऐसे में वह सुधाकरण के आत्मसमर्पण का स्वागत करते हैं. साथ ही झारखंड के दूसरे नक्सलियों से अपील भी करते हैं कि वह भी मुख्यधारा में लौट आएं.

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