लोहरदगा: असुर भारत का एक प्राचीन आदिवासी समुदाय है. झारखंड में असुर मुख्य रूप से गुमला, लोहरदगा, पलामू और लातेहार जिलों में निवास करते हैं. ये वहीं असुर आदिम आदिवासी समुदाय है जिसने दुनिया को लोहा गलाने का ज्ञान दिया. इसी ज्ञान से सालों बाद स्टील बना और इंसानी समाज ने विकास के नए युग में छलांग लगाई.
असुर मूर्तिपूजा नहीं करते हैं. इनका जीवन-दर्शन प्रकृति आधारित होता है. असुर जनजाति के तीन उपवर्ग हैं- बीर असुर, विरजिया असुर और अगरिया असुर.
बीर असुर
सामान्य तौर पर बीर असुरों को असुर जनजाति कहा जाता है. लोग सिर्फ इसी समुदाय को ही असुर जनजाति समझते हैं, जबकि बीर असुर के अलावा विरजिया और अगरिया असुर भी असुर जनजाति से हैं. बीर शब्द असुरी और मुंडारी भाषा में जंगल से संबंधित है, जिसका अर्थ है शक्तिशाली जंगल वासी. बीर असुर में 12 गोत्र होते हैं. बीर असुर विजातीय विवाह करते हैं. जिस वस्तु या प्राणी विशेष से गोत्र के नाम दिए जाते हैं, उनसे वह समूह दूरी रखते हैं. ऐसा माना जाता है कि इसका उल्लंघन किये जाने पर वे दुर्भाग्यशाली हो जायेंगे.
विरजिया
एक अलग आदिम जनजाति के रूप में अधिसूचित है. यह मुख्यतः झारखंड में ही निवास करते हैं. विरजिया असुर भी लौह उत्पादन करते थे, लेकिन 1950 में बने लौह संरक्षण कानून ने इनसे लौह उत्पादन के कारोबार को छीन लिया. इनके बारे में कहा जाता है कि ये मध्य प्रदेश से आकर यहां बसे हैं. इनकी दो शाखाएं तेलिया और सिंदुरिया है. इनकी अपनी भाषा बिरजिया है. इनमें बहुविवाह प्रचलित है. विरजिया असुर का पेशा और पर्व बीर असुर से काफी मिलता-जुलता है.
अगरिया जनजाति
इनके प्रमुख देवता लोहासुर है. जिनका निवास धधकती हुई भट्टियों में माना जाता है. ये लोग अपने देवता को काली मुर्गी का भेंट चढ़ाते हैं. इस जनजाति के लोग मार्गशीर्ष महीने में दशहरे के दिन और फाल्गुन महीने में लोहा गलाने में सभी यंत्रों की पूजा करते हैं. इनका भोजन मोटे अनाज और सभी प्रकार का मांस है.