रांची: 9 अगस्त को संपूर्ण विश्व में आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है. यह दिवस आदिवासियों को उनके अधिकारों और देश के विकास में उनके योगदान की याद दिलाता है. जहां चलना ही नृत्य और बोलना ही गीत है, इनका इतिहास दशकों नहीं सैकड़ों साल पुराना है. जी हां हम बात कर रहे हैं इस धरा के आदिवासी समुदाय की, जिन्होंने कई अहम मौकों पर देश को गर्व का अहसास कराया.
सभ्यता और संस्कृति
अपनी सभ्यता और संस्कृति में व्यस्त रहने के बावजूद भी अपने हक के लिए उन्होंने आवाज बुलंद की. लेकिन कभी किसी पर हमला नहीं किया. हालांकि इन्होंने अपने आत्मसम्मान के लिए जो लड़ाईयां लड़ी हैं उसकी वीर गाथाएं भरी पड़ी है. आदिवासी बेहद शांतिप्रिय होते हैं जब ये खुश होते हैं तो मांदर, ढोलक और बांसुरी लेकर सड़क पर निकलते हैं.
देश भर में इनकी संख्या 10 करोड़ है
आदिवासी शब्द दो शब्दों 'आदि' और 'वासी' से मिलकर बना है, इसका अर्थ मूल निवासी होता है. भारत में इनकी जनसंख्या 10 करोड़ है, पुरातन लेखों में आदिवासियों को अत्विका और वनवासी भी कहा गया है. महात्मा गांधी ने आदिवासियों को गिरिजन (पहाड़ पर रहने वाले लोग) कह कर पुकारा है.
झारखंड में इनकी 32 जनजातियां
भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए 'अनुसूचित जनजाति' पद का उपयोग किया गया है. देश भर में इनकी कई जनजातियां हैं, तो झारखंड में इनकी 32 जनजातियां पाई जाती हैं. इसके अलावा कुछ जनजातियों को आदिम जनजाति की श्रेणी में रखा गया है. आदिवासी मुख्य रूप से ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक हैं. जबकि भारतीय पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में ये बहुसंख्यक हैं. भारत सरकार ने इन्हें भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में 'अनुसूचित जनजातियों' के रूप में मान्यता दी है.
आदिवासियों के प्रमुख पर्व-त्योहार
ये मूल रूप से प्रकृति के पूजारी होते हैं, इनका हर पर्व-त्योहार प्रकृति से जुड़ा होता है. इनके प्रमुख त्योहार हैं- सरहुल, करमा, जावा, टुसू, बंदना, जनी शिकार आदि. इसके आलावा मूर्ति पूजा में भी इनकी गहरी आस्था होती है. इनके यहां बलि प्रथा का भी रिवाज है.
लोकगीत और लोक नृत्य
अनेकता में एकता को संजोये हुए भारत किसी गुलदस्ते की तरह है. जिसमें कई रंगों के फूल और पत्तियां होती हैं. यहां भाषा और संस्कृति के साथ-साथ लोकगीतों और लोक नृत्य में विविधता दिखाई देती है. जैसे- नटुआ नाच, झूमर, छऊ, डमकच, करम गीत, करमा नाच.
समाज को संरक्षित करने की जरुरत
बहरहाल, यह कहने में थोड़ा भी आश्चर्य नहीं कि आदिवासी समाज सभी सभ्यता की जननी है. जरूरत है इस समाज को संरक्षित करने के साथ-साथ उनके जीवन कला को विश्व पटल पर लाने की.