रांची:पूरी दुनिया में 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस (World elephant day) मनाया जाता है.भारत में हाथियों की संख्या कम हो रही है. इसका मुख्य कारण है हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष का बढ़ना. झारखंड में भी लगातार इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष (Conflict between humans and elephants) चल रहा है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि हाथी हमारे इलाके में आ रहे हैं या हमने हाथियों के इलाके में घुसपैठ की है.
ये भी पढ़ें:रंग लाई पलामू टाइगर रिजर्व की पहल, गर्मियों में पहली बार बेतला नेशनल पार्क में ठहरा हाथियों का झुंड
तीन साल में 250 लोगों ने गंवाई जान
12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस (World elephant day) के रूप में मनाया जाता है. हाथी का भारतीय सभ्यता में खास महत्व है. इन्हें भगवान गणेश के प्रतीक के रूप में माना जाता है. लेकिन आज गजराज के अस्तित्व पर ही भीषण संकट है. आलम ये है कि आज पूरे विश्व में हर साल हजारों हाथी मारे जा रहे हैं. झारखंड की बात करें तो पिछले 3 सालों में लगभग 37 हाथियों की मौत हुई है. जबकि 250 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई है.
हाथियों के हमले में मारे गए लोग इंसान-हाथी के बीच संघर्ष
झारखंड में हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष (Conflict between humans and elephants) की कहानी लगातार बढ़ रही है. हाथियों से टकराव के मामले में पश्चिमी सिंहभूम, चतरा, पलामू, गढ़वा और रामगढ़ जिले प्रमुख हैं. हालांकि इसके अलावा हाथियों के हमले रांची, हजारीबाग के ग्रामीण इलाके में खूब हो रहे हैं.
तीन साल में 37 हाथी की गई जान
हाथियों के हमले के दौरान गरीब किसानों की फसलें बर्बाद हो रही हैं साथ ही वे अपनी जान से भी हाथ धो रहे हैं. झारखंड वन विभाग की मानें तो पिछले तीन सालों में 250 से भी अधिक लोगों की जानें जा चुकी हैं. जबकि इंसानों और हाथियों के बीच छिड़ी जंग में तीन साल में 37 हाथी मारे जा चुके हैं. हाथियों की सुरक्षा के लिए सिंहभूम हाथी रिजर्व बनाया गया. ये देश का पहला हाथी रिजर्व है जिसे 2001 में प्रोजेक्ट हाथी के तहत बनाया गया. इसमें 13,440 वर्ग मीटर का क्षेत्र शामिल है.
ये भी पढ़ें:गिरिडीहः 5 घंटे की मशक्कत के बाद हाथी के बच्चे को कुएं से निकाला, कुएं से निकलते ही ऐसे भागा
कितनी है हाथियों की संख्या
भारत में हाथियों की गिनती 2012 में हुई थी, जिसमें इनकी कुल संख्या 29,391 और 30,711 के बीच आंकी गई. अगस्त 2017 में सामने आई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हाथियों की कुल संख्या 27,312 दर्ज की गई. झारखंड में पिछली गणना में जहां हाथियों की संख्या 688 थी जो अब घटकर 555 रह गई है.
हमने की हाथियों के इलाके में घुसपैठ
दो दशक पहले तक हाथियों के झुंड एक राज्य से दूसरे राज्य में आराम से विचरण करते थे. लेकिन जैसे-जैसे इंसानों की आबादी बढ़ी उन्होंने जगंल में नए गांव बसाने शुरू कर दिए. निर्माण कार्य तेजी से हुआ, जिससे बाद गंभीर समस्या उत्पन्न हुई. इसके अलावा पिछले कुछ सालों में जंगल का कटाव भी बहुत तेजी से हुआ. इन सब के बाद हाथियों के कॉरिडार तेजी से घटने लगे और हाथी इंसानों पर हमला करने लगे. एक्सपर्ट्स का मानना है कि जनसंख्या वृद्धि और वन्य जीवों के कॉरिडोर पर इंसानी गतिविधियों के बढ़ने से इंसान-हाथी संघर्ष के मामले बढ़े हैं. गर्मी के दिनों में जिस स्थान पर हाथी लौट कर आते हैं वही स्थान उनका स्थाई निवास होता है. लातेहार का दलमा में हाथियों का स्थाई निवास है.
एक जंगल से दूसरे जंगल जाने के लिए कॉरिडोर
एक जंगल से दूसरे जंगल हाथियों के सुरक्षित आने-जाने के लिए हाथी कॉरिडोर बनाया जाता है. देशभर के 22 राज्यों में 27 हाथी कॉरिडोर हैं. झारखंड में एक भी हाथी कॉरिडोर नहीं है. करीब सात साल पहले पारसनाथ पहाड़ और उससे सटे वन क्षेत्र को हाथियों का कॉरिडोर चिह्नित करते हुए राज्य मुख्यालय को प्रस्ताव भेजा गया था. लेकिन आज तक उस प्रस्ताव पर कोई काम नहीं हुआ.
ये भी पढ़ें:बोकारो में बेटी की आंखों के सामने हाथी ने महिला को मार डाला, बेटी जान बचाकर भागी
झारखंड-पश्चिम बंगाल गलियारा
पूर्वी सिंहभूम डीएफओ ममता प्रियदर्शी के अनुसार, झारखंड में हाथी पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल से झारखंड राज्य में प्रवेश करते हैं. झारखंड और पश्चिम बंगाल में माहिलोंग (झारखंड) - कालीमती (पश्चिम बंगाल). चांडिल (झारखंड) - मठ (पश्चिम बंगाल). झुंझका (झारखंड) - बांडुआन (पश्चिम बंगाल). दालापानी (झारखंड)- कंकराझोर (पश्चिम बंगाल) गलियारा है. हाथियों का एक कॉरिडोर दुमका, जामताड़ा होते हुए धनबाद जिले के टुंडी प्रखंड के जंगलों से पारसनाथ पहाड़ होते हुए भी है. इस रास्ते हाथी गिरिडीह जिले के पीरटांड़, डुमरी, बिरनी, सरिया होते हुए हजारीबाग तक जाते हैं, फिर उसी रास्ते से वापस मसलिया एवं मसानजोर जंगल लौटते हैं. साल भर हाथियों का यह दल इस रास्ते पर आना-जाना करते हैं. इस रास्ते में वे गांवों में घुसकर फसलों एवं घरों को क्षतिग्रस्त कर देते हैं.
झारखंड-प. बंगाल हाथियों का गलियारा हाथी क्यों होते हैं उग्र
एक्सपर्ट्स का मानना है कि हाथी अपने पूर्वजों के मार्ग पर सैकड़ों साल बाद भी दोबारा अनुकूल वातावरण मिलने पर लौटते हैं. अगर रास्ते में आवासीय कॉलोनी या दूसरी मानवीय गतिविधियां मिलती हैं तो हाथियों का झुंड उसे तहस-नहस करके ही आगे बढ़ता है. हाथियों के उग्र होने का मुख्य कारण अपने रास्ते के लिए उनका बेहद संवेदनशील होना भी है. जुलाई से सितंबर के दौरान हाथी प्रजनन करते हैं. इस समय हाथियों के हार्मोन में भी बदलाव आता है जिससे वो आक्रमक हो जाते हैं. हाथियों के झुंड का 'होम रेंज' औसतन लगभग 250 वर्ग किमी से लेकर 3500 वर्ग किमी तक हो सकता है. अनुसंधान से पता चलता है कि जितना अधिक वन निवास स्थान का क्षरण होता है, हाथियों के झुंड को भोजन और पानी की तलाश में उतना ही दूर घूमना पड़ता है.
ये भी पढ़ें:चतरा में गजराज को न जाने क्यों आया गुस्सा, महिला को खींचकर मारा, घर को किया बर्बाद
हाथियों के हमले के बाद सरकार देती है मुआवजा
झारखंड में हाथियों के हमले के शिकार लोगों को सरकार की तरफ से मुआवजा भी दिया जाता है. सरकार के नियमों के मुताबिक अगर हाथियों के हमले में किसी की मौत हो जाती है कि तो परिजनों को 4 लाख मिलते हैं. इसके अलावा गंभीर रूप से घायल होने पर एक लाख, साधारण रूप से घायल होने पर पंद्रह हजार, स्थायी अपंग होने पर 2 लाख, मकान के क्षतिग्रस्त होने पर 10 से 40 हजार रुपये तक मिलते हैं. इसके अलावा फसल की क्षति के रूप में 20 से 40 हजार तक का मुआवजा मिलता है. झारखंड में हाथियों के हमले में बीते एक दशक में कुल 680 लोगों की जान गयी है.
हाथियों के शिकार लोगों को मुआवजा ये भी पढ़ें:सरायकेला में गजराज का आतंक, एक व्यक्ति की कुलकर ली जान
भारत में दुनिया की सबसे अधिक एशियाई हाथियों की आबादी
भारत में दुनिया में जंगली एशियाई हाथियों की सबसे बड़ी संख्या है. 2017 की गणना के अनुसार 27,312 का अनुमान है. जो की अपनी प्रजाति के वैश्विक आबादी के लगभग 55 फीसदी तक है. ये हाथी भारत के 14 राज्यों के 29 हाथी अभ्यारण्यों में फैले हुए हैं. ये 29 अभ्यारण्य उत्तर-पूर्व, मध्य, उत्तर-पश्चिम और दक्षिण भारत में लगभग 65,814 वर्ग किमी जंगलों को कवर करते हैं.