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लॉकडाउन में आर्थिक स्थिति हुई खराब तो महिलाओं ने संभाली कमान, बनीं आत्मनिर्भर

दुनिया में बेरोजगारी तो पहले से ही था लेकिन कोविड-19 के दौरान यह संकट और गहरा गया है. समय ने ऐसी करवट ली है कि जो लोग रोजगार की तलाश में दूसरे शहर गए थे, वो फिर से अपने गांवों की ओर कूच कर गए हैं. ऐसे में बहुत से लोगों के सामने परिवार का पेट भरना चुनौती बन गई है. वहीं इस दौर में रांची के कांके रोड की महिलाओं ने अपने हौसले और हुनर का परिचय देते हुए सिलाई से जुड़कर पैसे कमा रही हैं.

womens are making cloth during lockdown in ranchi
रांची में आत्मनिर्भर महिलाएं

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Published : Jul 15, 2020, 10:17 PM IST

रांची: हौसला बुलंद हो और हाथों में हुनर हो तो किसी भी मुश्किल को पार करना आसान हो जाता है. चाहे वह कितना भी बुरा वक्त क्यों ना हो और ऐसे में जब पूरा देश वैश्विक महामारी से गुजर रहा है, रोजगार का संकट है. ऐसे समय में सैकड़ों महिलाएं अपने हौसला और हुनर का परिचय दे रही हैं. रांची के सैकड़ों महिलाएं सिलाई के काम से जुड़कर सम्मान के साथ पैसे कमा रही हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

एक संस्था की मदद से महिलाओं के उत्पाद को ऑनलाइन बाजार की सुविधा भी उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि इन्हें अधिक मुनाफा मिल सके. राजधानी रांची के कांके रोड में सैकड़ों महिलाएं स्वरोजगार से जुड़कर सिलाई का काम कर रही हैं. ये महिलाएं मास्क, लेगिंग्स, जेगिंग्स, कुर्ती, सूट और टॉप जैसे परिधान तैयार करती हैं. उसके बाद फिर उसे अच्छी तरह से पैकिंग कर बाजार में ऑनलाइन और ऑफलाइन तरीके से बेचा जाता है.

घर लौटने के बाद आर्थिक संकट!

दिल्ली में काम कर लौटीं प्रवासी गीता कुमारी बताती हैं कि पहले वह दिल्ली में काम करती थीं, लेकिन लॉकडाउन के वजह से इन्हें घर वापस आना पड़ा. वहीं घर में रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई. गीता को सिलाई का काम आता था. अब वह गारमेंट्स बनाने वाली महिलाओं के साथ जुड़कर काम कर रही हैं. लॉकडाउन के बावजूद महीने का 5 हजार से अधिक कमाने लगीं. गीता ने कहा कि इन महिलाओं से जुड़कर काफी लाभ हुआ है. एक तरह से रोजगार भी मिला है. उनका कहना है कि जब अपने घर में ही रहकर 5 हजार से अधिक कमा रही हैं तो अब उन्हें दिल्ली जाने की कोई जरूरत नहीं है.

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महिलाओं के इस समूह में कई ऐसी महिलाएं हैं जो सिलाई के काम से जुड़कर अपना परिवार चला रहीं हैं. महिलाओं की मानें तो लॉकडाउन की बुरे वक्त में उनके हुनर ने उन्हें काफी सहारा दिया. ये महिलाएं जरूरत के हिसाब से डिजाइनिंग मास्क भी तैयार कर बेच रही हैं. जिससे अच्छा मुनाफा हो रहा है. इसके साथ-साथ कई तरह के डिजाइनिंग परिधान भी तैयार किए जा रहे हैं, क्योंकि आज के समय में डिजाइनिंग लेगिंग्स, जेगिंग्स, कुर्ती और टॉप जैसे परिधानों का काफी डिमांड है.

सिलाई, कढ़ाई, आचार और पापड़ बनाने की ट्रेनिंग

सबसे खास बात यह है कि लॉकडाउन के समय में इन महिलाओं की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई थी. ऐसे में घर में रहते हुए यह सभी कार्य कर पाते हैं. बच्चों की पढ़ाई से लेकर पति के खर्चे में भी अब वह मिलजुल कर हिस्सा बन रहीं है. कपड़े और मास्क को बेचने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म मिलने के बाद इनकी बाजार की समस्या भी दूर हो गई है. महिलाओं को प्रशिक्षित कर रही रश्मि कुमारी बताती हैं कि यहां महिलाओं को हर तरह के ट्रेनिंग दी जाती है, जैसे सिलाई, कढ़ाई, आचार और पापड़ बनाने से लेकर महुआ का पेड़ा बनाने तक.

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सन्मार्गम फाउंडेशन के सचिव सिद्धार्थ त्रिपाठी ने कहा कि महिलाओं के गारमेंट को ऑनलाइन बाजार दिलाने के लिए कई संस्थाएं आगे आईं हैं, ताकि इनका माल देश-दुनिया के हर कोने में पहुंच सके. इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'वोकल फोर लोकल' के सपने को भी पूरा किया जा सकता है. संपूर्ण लॉकडाउन के समय भी महिलाएं घर से काम कर रहीं थी और इस काम में लगभग सैकड़ों महिलाओं को रोजगार भी मुहैया हो रही है.

सांसद ने भी की तारीफ

रांची सांसद संजय सेठ ने इन महिलाओं के कार्य की सराहना करते हुए कहा कि पूर्वर्ती सरकार के किए गए कार्यों का स्वरूप देखने को मिल रहा है. राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने लगभग 20 हजार महिला समूह बनवाए थे. उसी का फल देखने को मिल रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर बनने का जो सपना देखा है, वह निश्चित रूप से साकार होगा. महिलाओं के इस समूह ने साबित कर दिया है कि अगर दिल में हौंसला और हाथों में हुनर है तो बुरे से बुरे वक्त को हंसते-हंसते काटा जा सकता है.

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