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आदिवासी समाज के विकास में बाधक है डायन कुप्रथा, बेड़ियां तोड़ने के लिए किए जा रहे हैं कई उपाय - रांची न्यूज

आज देश के सर्वोच्च पद पर एक आदिवासी महिला के आसीन होने की बात चल रही है. लोगों को उम्मीद है कि इससे आदिवासी समाज का उत्थान होगा. उम्मीद की जा रही है कि आदिवासी समाज की महिलाएं आज भी जिस डायन कुप्रथा का दंश झेल रही हैं, उससे निजात पाने में मदद मिलेगी.

Witch evil practice
Witch evil practice

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Published : Jun 30, 2022, 12:41 PM IST

Updated : Jun 30, 2022, 8:01 PM IST

रांचीः झारखंड की राज्यपाल रह चुकी द्रौपदी मुर्मू देश के सर्वोच्च पद यानी राष्ट्रपति बनने वाली हैं. आदिवासी समुदाय से आने वाली द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड की बेहतरी के लिए कई काम किए हैं, लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि झारखंड के आदिवासी समाज में अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी हैं कि डायन के नाम पर हर साल औसतन 20 से अधिक महिलाओं की हत्या कर दी जाती है. झारखंड के ग्रामीण इलाकों में डायन के नाम पर अक्सर प्रताड़ना और हत्याओं की खबरें सुर्खियां बनती हैं.

क्या कहते हैं आंकड़ेःझारखंड पुलिस के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2015 से 2022 के अप्रैल महीने तक डायन-बिसाही के नाम पर 275 लोगों की हत्या कर दी गई. इस अवधि में डायन-बिसाही से जुड़े कुल 4690 मामले राज्य के विभिन्न थानों में दर्ज किए गए. इन घटनाओं का सबसे दुखद पहलू यह है कि ज्यादातर मामलों में गांव वालों ने एकजुट और एकमत होकर ये हत्याएं की. पीड़ित रहम की भीख मांगते रहे, लेकिन कल तक उनके साथ हंसने-बोलने-खेलने वालों ने ही बर्बरता पूर्वक जान ले ली. जिन इलाकों में डायन-बिसाही में हत्या की घटनाएं हुई हैं, वहां ग्रामीण अशिक्षा और अंधविश्वास की गिरफ्त में जकड़े हैं. कई मामलों में संपत्ति हड़पने के लिए भी डायन-बिसाही का आरोप लगा पूरे परिवार की हत्या कर देने के मामले सामने आए हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट



सबसे ज्यादा हुई है महिलाओं की हत्याः2015 से अक्टूबर 2021 तक राज्य में डायन बिसाही के आरोप में सबसे ज्यादा 211 महिलाओं की हत्या की गयी है. इनमें सर्वाधिक चाईबासा की 40, गुमला की 32, खूंटी की 29, सिमडेगा की 22 और रांची की 20 महिलाएं शामिल हैं. झारखंड पुलिस के रिकाॅर्ड में वर्ष 2015 से जून 2021 तक 4680 डायन अधिनियम से जुड़े मामले विभिन्न जिलों के थानों में दर्ज किये गये हैं.



लॉकडाउन में भी नहीं थमी डायन हत्याःसाल 2020 के आंकड़ों को अगर हम देखें तो सबसे ज्यादा डायन बिसाही को लेकर झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में मामले सामने आए. साल 2020 में पश्चिमी सिंहभूम में पांच की हत्या डायन के आरोप में की गई. वहीं 22 लोगों की बेरहमी से पिटाई की गई. ये वो समय था जब देश लॉकडाउन से गुजर रहा था.


जमीन हड़पने की साजिश भी है वजहःडायन हत्या के पीछे आर्थिक झगड़े, अंधविश्वास और दूसरी निजी और सामाजिक संघर्ष प्रमुख कारण है. अधिकतर आदिवासी समुदायों में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में जमीन पर ज्यादा अधिकार प्राप्त होते हैं. इस संपत्ति पर अधिकार जमाने के लिए उन्हें डायन साबित करने की कवायद शुरू की जाती है. खासकर उन महिलाओं को निशाने पर रखा जाता है, जिनके परिवार में कोई नहीं होता. ग्रामीण इलाकों में संपत्ति हड़पने या आपसी रंजिश के लिए भी इस कुप्रथा की आड़ ली जाती है. खासकर किसी विधवा को डायन करार देकर मारने के बाद उसकी संपत्ति हड़पना आसान है. ऐसे मामलों में पुलिस या जिला प्रशासन भी खास कुछ नहीं कर पाता.



ओझा-गुनी की भूमिका हर बार होती है संदिग्धःडायन- बिसाही हत्याओं में कई बार ओझा-गुनियों और स्थानीय पुजारियों की भूमिका होती है. ऐसे में अब राज्य पुलिस स्थानीय पुजारी, पाहन, भगत को चिन्हित कर उनके पर्सनल बाउंड या निजी मुचलका भरवा रही ताकि स्थानीय स्तर पर उचित रोकथाम की जा सके. राज्य में डायन-बिसाही हत्याओं को रोकने के लिए सभी जिलों के एसपी, रेल एसपी को संबंधित जिला का नोडल पदाधिकारी बनाया गया है. वहीं सीआईडी के लिए डीआईजी सीआईडी को राज्यभर का नोडल पदाधिकारी बनाया गया है.



कसी जा रही है नकेलःरांची रेंज के डीआईजी अनीश गुप्ता के अनुसार अधिकतर घटनाओं में यह बात सामने आती है कि किसी का बच्चा बीमार है तो अशिक्षित लोग अंधविश्वास में ओझा-गुणी के पास झाड़-फूंक के लिए चले जाते हैं. वहां ओझा गुनी गांव के किसी महिला या पुरुष का नाम बता देता है कि उसने जादू टोना किया है गुस्से में लोग उक्त व्यक्ति या महिला को प्रताड़ित करते हैं. उसकी हत्या भी कर देते हैं. अंधविश्वास में गांव में कभी किसी के बीमार होने के लिए तो कभी किसी की मौत होने के लिए यहां तक कि पशुओं की मौत के लिए भी जिम्मेदार ठहरा लोग किसी को भी डायन करार देते हैं. इस मामले में झाड़-फूंक करने वाले ओझा-गुनी की भी भूमिका रहती है, जो ग्रामीणों की अज्ञानता का फायदा उठाकर अंधविश्वास को बढ़ावा देते रहते हैं. ओझा-गुुनी ही चिन्हित कर बताते हैं कि किस गांव में कौन डायन है. ऐसे में जिलों के सभी थाना प्रभारियों को यह आदेश दिया गया है कि वे लोग जिस तरह अपराधियों का डाटा तैयार करते हैं उसी तरह से गांव में झाड़-फूंक करने वाले लोगों को भी चिन्हित कर उनके लिस्ट बनाएं और उनके कार्यों पर नजर रखें.



किस तरह की योजनाओं पर हो रहा कामःडायन बिसाही के मामलों में सभी जिलों के एसपी को निर्देश दिया गया है कि वह संवेदनशील जगहों का चयन कर योग्य व संवेदनशील पदाधिकारियों व कर्मियों की प्रतिनियुक्ति करें. सूचना जुटाकर लगातर वस्तुस्थिति की समीक्षा करें. जिले में विशेष शाखा के स्थानीय पदाधिकारियों के साथ भी प्रत्येक माह बैठक कर डायन बिसाही संबंधी सूचना जुटाने व कार्रवाई का आदेश पुलिस मुख्यालय ने दिया है. जिन इलाकों में पूर्व में ऐसी घटनाएं हुई हैं. वहां खास निगरानी रखने का आदेश दिया गया है. थानेदारों को निर्देश दिया गया है कि वह किसी घटना पर तत्काल इसकी जानकारी जिले के एसपी को दें. इसके बाद एसपी के स्तर पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए. स्थानीय चौकीदार और एसपीओ को विशेष प्रशिक्षण देने का निर्देश भी दिया गया है.



महिला पुलिसकर्मी करेंगी जागरूकःगांव गांव में जागरुकता फैलाने के लिए गठित दल में महिला आरक्षी व चौकीदारों को रखा जाएगा. गठित दल के द्वारा ऐसे मामले में अनुसंधान में भी सहयोग दिया जाएगा. जिलों के एसपी को निर्देश दिया गया है कि वह डायन बिसाही मामलों में तत्काल सजा दिलाने के लिए त्वरित न्याय के लिए प्रधान न्यायाधीश से अनुरोध करने व गवाहों को सुरक्षित उपस्थित कराने के लिए थानेदारों पर जिम्मेदारी सौंपने का काम करें.


प्रत्येक जिले में हेल्पलाइन बनेगाःडायन बिसाही हिंसा रोकने के लिए प्रत्येक जिला में हेल्पलाइन बनाया जाएग. हेल्पलाइन को आम लोगों के बीच प्रचारित किया जाएगा. वहीं जिलों के एसपी को निर्देश दिया गया है कि वह पांच साल से डायन बिसाही के दर्ज तमाम मामलों की समीक्षा करेंगे व समीक्षा रिपोर्ट डीआईजी को उपलब्ध कराएंगे. इसके बाद डीआईजी के द्वारा समेकित रिपोर्ट एडीजी सीआईडी को सौंपी जाएगी. लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का निर्देश भी जिलों के एसपी को दिया गया है.

Last Updated : Jun 30, 2022, 8:01 PM IST

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