रांची: झारखंड की राजधानी रांची में हर कुछ कदम पर गोलगप्पे के खोमचे दिख जाएंगे. आपको जानकर हैरानी होगी, इन सैकड़ों गोलगप्पे वालों में से सबसे पसंदीदा गोलगप्पे वाले अधिकतर यूपी के मूल निवासी हैं. जो वर्षों पहले रोजगार की तलाश में रांची आ गए और अपने साथ गोलगप्पे की खास लिज्जत लाए. जिसके स्वाद का रांची दीवाना हो गया. यूं तो यहां गोलगप्पे बेचने वाले और भी हैं, लेकिन यूपी वालों के गोलगप्पे का स्वाद अलग ही है. जिससे इनकी खास पहचान बन गई है. चाहे मामा जी गोलगप्पा वाला हो या कोई और.. शाम को रांची के लोग घरों से बाहर निकले नहीं कि यूपी वालों के खोमचे पर खिंचे चले आते हैं.
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करीब चार दशक पहले मीरजापुर से कोलकाता होते हुए रांची पहुंचे 70 वर्षीय विजय शंकर गुप्ता चार दशक से यहां वर्षों से गोलगप्पे बेच रहे हैं. उनको लोग मामाजी गोलगप्पे वाले के नाम से ही जानते हैं. इसमें उनके परिवार के लोग भी साथ देते हैं और यहीं बस गए हैं. इस कारोबार ने यहां उनकी तरक्की के भी द्वार खोल दिए हैं, खाली हाथ रांची पहुंचे विजय के पास आज रांची में दो-दो मकान हैं. फेस्टिवल सीजन में तो इनके गोलगप्पे की मांग और भी बढ़ जाती है. तमाम लोगों का तो यह भी कहना है कि विजय ने ही कई दशक पहले यहां इस कारोबार को गति दी थी. इधर रांची में गोलगप्पा के कारोबार पर यूपी वालों का दबदबा (UP people dominate in business of Golgappa in Ranchi) बन गया है. इन दुकानदारों ने गोलगप्पे के खास स्वाद के लिए अलग पहचान बनाई है.
घर में तैयार करते हैं मसाला
विजय ने बताया कि बचपन में अपने पिता को खोने के बाद घर छोड़कर कोलकाता पहुंचे. बाद में रांची चले आए और यहीं बस गए. विजय शंकर गुप्ता ने बताया कि वे अपने गोलगप्पे में प्याज, लहसुन का इस्तेमाल नहीं करते हैं और इसके मसाले खास तरीके से घर में ही तैयार करते हैं. साफ-सफाई का अधिक ध्यान रखते हैं ताकि व्रत में भी इसका इस्तेमाल किया जा सके. वे आटा, मैदा और सूजी के मिश्रण से मैदा तैयार करते हैं. विजय ने बताया वे दशकों से पुदीना पत्ता, हरी मिर्च, इमली आदि से खास तौर पर मसाला तैयार करते हैं. यही स्वाद में जान डालता है. पुराने दिनों को याद करते हुए विजय कहते हैं जब हम यहां आए तब राजधानी में भीड़-भाड़ कम थी. अब तो इलाहाबाद, वाराणसी समेत यूपी से सैकड़ों और लोग यहां आकर गोलगप्पे के कारोबार से जुड़ गए हैं.
15 वर्षों से कर रहे काम
चर्च कॉम्प्लेक्स के सामने गोलगप्पे बेच रहे सुनील भी यूपी के प्रयागराज के रहनेवाले हैं. झारखंड बनने के समय ही वे यहां आ गए थे और अपना खोमचे में पानी-पूरी बेचना शुरू की थी. सुनील के तीन भाई आज रांची में गोलगप्पा बेचकर जीवनयापन कर रहे हैं. उनका कहना है कि हर दिन हजार से डेढ़ हजार तक की कमाई हो जाती है. वहीं गोलगप्पे बेचने वाले यूपी के सौरभ के गोलगप्पों के भी रांची के लोग दीवाने हैं. इनके हाथ से बना गोलगप्पा खाने के लिए भीड़ लगतीहै. सौरभ ने बताया कि अपने बहनोई के साथ 15 वर्षों तक उन्होंने काम किया फिर बाद में रांची में अपना कारोबार शुरू किया.