रांचीः झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष और मांडर विधायक बंधु तिर्की ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जानकारी दी कि आगामी 13, 14 और 15 दिसंबर को देश भर के आदिवासी प्रतिनिधियों का चिंतन शिविर का झारखंड में आयोजन होगा. जिसके तहत देशभर के आदिवासियों को एकजुट करने का प्रयास किया जाएगा. उन्होंने कहा कि संविधान में आदिवासी शब्द नहीं होने और जनजातीय शब्द होने की वजह से आदिवासियों में एकजुटता नहीं हो पाई है. जबकि आदिवासियों की एक बड़ी जनसंख्या देश में है. फिर भी एकजुटता नहीं होने की वजह से आदिवासियों को हक और अधिकार नहीं मिल पाता है.
ये भी पढ़ेंःमाननीयों के आदिवासी प्रेम का सच, ज्यादातर को भाते हैं गैर आदिवासी, ईटीवी भारत की खरी-खरी
बंधु तिर्की बताया कि 12 और 13 सितंबर को असम राज्य के दिग्गु जिला में नॉर्थ ईस्ट के आदिवासियों के प्रमुख प्रतिनिधियों का सम्मेलन हुआ. जिसमें अंतिम दिन निर्णय लिया गया है कि 13,14 और 15 दिसंबर को झारखंड में चिंतन शिविर का आयोजन किया जाएगा. जिसमें देश के प्रत्येक राज्यों से 5 से 10 प्रमुख आदिवासी प्रतिनिधि शामिल होंगे. आदिवासियों का चिंतन शिविर का आयोजन किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि संविधान में आदिवासी शब्द की चर्चा नहीं है. जबकि जनजातीय शब्द की चर्चा है. इसकी वजह से देश के आदिवासी एकजुट नहीं हो सके हैं. संविधान में आदिवासी शब्द किया जाए. इसपर चर्चा की जाएगी. उन्होंने कहा कि देश में 10 करोड़ आदिवासियों की जनसंख्या है. जो राजनीति को बहुत ज्यादा प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन देश के आदिवासी एकजुट नहीं हो पाए हैं और अपने हक अधिकार को सही तरीके से नहीं रख सके हैं. ऐसे में सही तरीके से देश के आदिवासियों को एकजुट करने के लिए चिंतन शिविर का आयोजन किया गया है.
बंधु तिर्की ने कहा कि इस दौरान राज्यस्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के मुद्दों पर चर्चा की जाएगी. साथ ही राज्य में जो आदिवासी संबंधित मामलों को लेकर मुखर होकर लड़ते हैं. उनको भी आमंत्रित किया जाएगा और उनकी बातों को भी सुना जाएगा. वहीं सभी की बातों को सुनने के बाद झारखंड सरकार के सामने समस्याओं को रखा जाएगा और राष्ट्रीय स्तर का जो मुद्दा है, उसे राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया जाएगा. उन्होंने कहा कि 15 दिसंबर को कई प्रस्ताव लाए जाएंगे. जो पूरे देश के आदिवासी प्रतिनिधि के द्वारा रखा जाएगा और उसे राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने का कार्य किया जाएगा.