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झारखंड हाई कोर्ट में फीस अमेंडमेंट पर राज्य सरकार ने नहीं दायर किया जवाब, अदालत को बताया बनाई जा रही कमेटी - Ranchi news

झारखंड हाई कोर्ट में कोर्ट फीस अमेंडमेंट (Court Fee Amendment) को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से जवाब नहीं दिया गया. मौखिक रूप से बताया गया कि तीन सदस्यीय समिति बनाई जा रही है.

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झारखंड हाई कोर्ट में कोर्ट फीस अमेंडमेंट पर राज्य सरकार ने नहीं दायर किया जवाब

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Published : Sep 26, 2022, 8:30 PM IST

रांचीः झारखंड सरकार की कोर्ट फीस अमेंडमेंट एक्ट (Court Fee Amendment) को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सोमवार को झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि कोर्ट फी बढ़ोतरी के मामले में सुधार को लेकर 3 सदस्यीय समिति बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. इस समिति की रिपोर्ट पर कैबिनेट में विचार-विमर्श के लिए रखा जाएगा. इसपर प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता राजेंद्र कृष्ण ने आपत्ति जाहिर की. अदालत ने सरकार को आदेश दिया कि कमेटी बनाने के संबंध में शपथ पत्र दाखिल करें. मामले की अगली सुनवाई 28 सितंबर को होगी.

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प्रार्थी के अधिवक्ता ने कोर्ट के समक्ष यह संभावना जताते हुए कहा कि सरकार की ओर से प्रक्रिया लंबी कर उलझाने का प्रयास हो सकता है. कैबिनेट में मामले को भेजे जाने की प्रक्रिया जटिल और लंबी हो सकती है. इसलिए सरकार को ज्यादा लंबा समय देना उचित नहीं है. बता दें कि सोमवार को भी राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में जवाब दाखिल नहीं किया जा सका है, जबकि पिछली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से जवाब दायर करने के लिए 15 दिनों के समय की मांग की गई थी.

झारखंड स्टेट बार काउंसिल के अध्यक्ष राजेंद्र कृष्णा ने हाई कोर्ट से कोर्ट फी अमेंडमेंट एक्ट को समाप्त करने का आग्रह किया है. उनकी ओर से कहा गया कि जब तक इस मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती है, तब तक ओल्ड कोर्ट फी के माध्यम से पेमेंट करने का अंतरिम आदेश जारी किया जाए. इसका राज्य सरकार की ओर से विरोध किया गया है. पहले हुई सुनवाई में राजेंद्र कृष्ण ने मामले में पैरवी करते हुए कोर्ट से कहा था कि कोर्ट फीस में बेतहाशा बढ़ोतरी से समाज के गरीब तबके के लोग कोर्ट फी नहीं दे पायेंगे और वकीलों को भी अतिरिक्त वित्तीय भार का वहन करना पड़ेगा. काउंसिल ने यह भी कहा है कि कोर्ट फीस की वृद्धि से लोगों को सहज और सुलभ न्याय दिलाना संभव नहीं है.

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