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केदारनाथ त्रासदी के सात साल, अभी भी हरे हैं आपदा के जख्म

तबाही का वह भयावह मंजर आज भी जब जहन में आता है तो लोग सिहर उठते हैं, लोगों को आज भी याद है जून 2013 में आई केदारनाथ की आपदा का वो दिन, जब कई हजार लोगों की जान चली गई थी.

7 years of kedarnath flood
केदारनाथ त्रासदी के सात साल

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Published : Jun 16, 2020, 9:09 AM IST

देहरादून: केदारनाथ आपदा के सात साल बीत चुके हैं लेकिन, आपदा के जख्म आज भी हरे हैं. तबाही का वो मंजर आज भी लोगों की स्मृति में मौजूद है. केदारधाम में आई इस जलप्रलय के बाद अब पीएम मोदी की पहल से धाम का स्वरूप कुछ हद तक जरूर बदल गया है. हालांकि, कोविड-19 संक्रमण के चलते इस बार चारधाम यात्रा शुरू नहीं हो पाई है.

जिसपर पूरे विश्व का ध्यान गया था. इस आपदा के बाद हुए परफार्मेंस ऑडिट में कैग ने भी प्रदेश की आपदा प्रबंधन व्यवस्था को लेकर सवाल उठाए थे. कैग रिपोर्ट के बाद राष्ट्रीय और राज्य के स्तर पर हुई कार्यशालाओं में यह बात भी सामने निकल कर आई थी कि प्रदेश को सबसे अधिक जरूरत बेहद मजबूत संचार तंत्र की है.

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ऐसा तंत्र जो आपदा के समय काम कर सके. इसके साथ ही खतरे की पूर्व चेतावनी का तंत्र भी स्थापित करने की बात की गई थी. केदारनाथ की आपदा का एक बड़ा सबक संवेदनशील स्थानों को चिह्नित करना और वहां रहे लोगों को खतरे से दूर करना भी शामिल था.

कई खतरों की जद में प्रदेश

भूकंप के लिहाज से प्रदेश जोन चार और पांच में शामिल हैं. इसके अलावा प्रदेश भू स्खलन के हिसाब से भी अति संवेदनशील हैं. करीब 200 अति संवेदनशील जोन इसमें चिह्नित भी किए जा चुके हैं.

आज भी है खतरा

मौसम में बदलाव के कारण अब मॉनसून में बहुत अधिक बारिश के मामले भी सामने आ रहे हैं. इससे मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ और पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन के मामले बढ़ रहे हैं. ग्लेशियरों के सुकड़ने के कारण अब उच्च हिमालयी क्षेत्र में नई झीलों का निर्माण भी हो रहा है और इस वजह से अचानक आने वाली बाढ़ का खतरा भी बढ़ रहा है.

इस साल नहीं शुरू हो पाई चारधाम यात्रा

कोविड-19 संक्रमण के चलते इस बार केदारनाथ यात्रा शुरू नहीं हो पाई है. जबकि, चारधामों के कपाट खुल चुके हैं. हालांकि, राज्य सरकार ने स्थानीय लोगों को केंद्र सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का अनुपालन करते हुए मंदिरों में दर्शन की अनुमति दे दी है.

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