गोड्डा: जिले के बोआरीजोर और पथरगामा के आस-पास सड़कों के किनारे ऐसे परिवार देखे जा सकते हैं, जो अपनी रोजी रोटी पत्थर के सहारे चलाने को मजबूर है. दरअसल, ये कहानी गोड्डा जिले की है जहां करीब सौ से दो सौ लोग पत्थरों को तोड़ कर उसे घरेलू काम में इस्तेमाल करने की वस्तुएं बनाते हैं.
पत्थरों के सहारे चला रहे अपना जीवन, कई पुश्तों ने ऐसे ही किया गुजारा - पथरगामा और बोआरीजोर इलाकों
गोड्डा के पथरगामा में सड़कों के किनरे रहने वाले कुछ परिवार पत्थर के सहारे अपना जीवन बीता रहे है. पत्थर से सिल्ल पट्ट बनाकर उसे घरेलु काम में उपयोग करने का सामान बनाते है. जिसके बदले जो उन्हें रकम मिलती है उससे ही वो अपना गुजारा करते हैं.
जिले के पथरगामा और बोआरीजोर इलाकों में सड़क किनारे हथौड़ी और छेनी से अनंगढ़ पत्थरों को आकार देकर उसे बेचते हैं. ऐसे कई परिवार हैं जो दिन रात मेहनत करके पत्थरों को तोड़कर कई रुप देते हैं. भले ही शहरों में आधुनिक दौर में मसाला पीसने से लेकर दाल निकलने तक के उपकरण आ गए हो. लेकिन गांव में आज भी वहीं प्रणाली के भरोसे व्यवस्था चल रही है.
जहां मसाला पीसने के लिए सिल्ल लोढ़ी, आटा पिसाई और दाल निकालने के लिए जाता और चावल निकलने के लोइये ऊखल का इस्तेमाल होता है. इनके बनाये समान झारखंड के कई जिलों के अलावा बिहार में पहुचाए जाते हैं. इन्हें इन सामानों के बेचने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता. उनका कहना है कि व्यापारी खुद आकर ले जाते. उनका कहना है कि उनकी कई पुश्ते यही काम करके अपना पेट पालती थी. जिनसे सिख कर अब ये लोग भी अपना गुजरा चला रहे. उनके बनए सिल्ल पट्ट से वो 300-400 रुपए कमाते हैं.