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रांचीः बीएयू में क्षमतावान फसल के शोध कार्यक्रम का आयोजन, राष्ट्रीय समन्वयक ने किया निरीक्षण

रांची में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी और पौधा प्रजनन विभाग में फसल पर शोध कार्यक्रम चलाया जा रहा है. आदिवासी किसानों से क्षमतावान फसलों की संभावनाओं पर चर्चा की गई. मौके पर एनपीबीपीजीआर, रांची केंद्र के वरीय वैज्ञानिक डॉ एसबी चौधरी और बीएयू में क्षमतावान फसल शोध कार्यक्रम के परियोजना अन्वेषक डॉ जयलाल महतो भी मौजूद थे.

Crop research program organized in BAU ranchi
फसल के शोध कार्यक्रम

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Published : Mar 12, 2021, 1:28 PM IST

रांची:बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी और पौधा प्रजनन विभाग में आईसीएआर की क्षमतावान फसल परियोजना में 6 प्रकार के क्षमतावान फसलों बाकला, रामदाना, बथूआ, पंखिया सेम, खेकसा, कुल्थी और बोदी फसल पर शोध कार्यक्रम चलाया जा रहा है. गुरूवार को क्षमतावान फसल के राष्ट्रीय समन्यवयक डॉ हनुमान लाल रेजर ने जनजातीय उपपरियोजना के अधीन 30 आदिवासी किसानों के कुल 10 एकड़ खेत में लगे बाकला, बथूआ और रामदाना फसल के अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षणों का निरीक्षण किया. रांची जिले के चान्हो प्रखंड के बयासी और कुल्लू गांव के आदिवासी किसानों से क्षमतावान फसलों की संभावनाओं पर चर्चा की. किसानों ने दाल और सब्जी में उपयोग, स्वाद और जल्दी पकने के आधार पर बाकला को अपनी पहली पसंद बताया.

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गांव के दौरा के बाद डॉ हनुमान लाल ने कांके स्थित बीएयू के शोध प्रक्षेत्रों में बाकला और बथूआ के प्रायोगिक प्रक्षेत्रों और रामदाना के 100, फाबाबीन के 52 जर्मप्लाज्म पर शोध कार्यक्रमों को देखा. मौके पर एनपीबीपीजीआर, रांची केंद्र के वरीय वैज्ञानिक डॉ एसबी चौधरी और बीएयु में क्षमतावान फसल शोध कार्यक्रम के परियोजना अन्वेषक डॉ जयलाल महतो भी मौजूद थे. डॉ हनुमान लाल रेजर ने बताया कि किसानों और शोध प्रक्षेत्रों में क्षमतावान फसलों का प्रदर्शन काफी सराहनीय है. झारखंड में 6 प्रकार के क्षमतावान फसलों की खेती की काफी संभावनाएं हैं. रांची के क्षेत्रीय केंद्र के शोध कार्यक्रमों से प्रदेश से सटे समान जलवायु और मौसम वाले राज्यों बिहार, बंगाल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के लिए भी काफी महत्वपूर्ण साबित होगी.

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परियोजना अन्वेषक डॉ. जयलाल महतो ने बताया कि आईसीएआर अंतर्गत नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्स (एनपीबीपीजीआर) नई दिल्ली में देश में क्षमतावान फसलों के उपयोग, गुण और भावी संभावनाओं पर फसल प्रजाति का संरक्षण, नई किस्मों का विकास, जागरूकता अभियान और फसल विस्तारीकरण का कार्यक्रम चलाया जा रहा है. नेटवर्क शोध केद्रों के माध्यम से देश में क्षेत्रीय स्तर पर 12 केंद्र कार्यरत हैं. राज्य में क्षमतावान फसलें, ग्रामीण क्षेत्रों और आदिवासी समुदाय के पोषण सुरक्षा का दशकों से सबसे सुगम माध्यम रहा है. इन फसलों की खेती प्रदेश में गौण होती जा रही है, जबकि इन फसलों की खेती से आदिवासी आजीविका के साथ-साथ पोषण सुरक्षा को बढ़ावा दिया जा सकता है. राज्य में बाकला की खेती की काफी संभावना है. केंद्र की ओर से बाकला फसल के सब्जी किस्मों के विकास का कार्य प्रगति पर है.

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