जमशेदपुर: 9 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस के रूप में मनाने की परंपरा आज भी कायम है. वर्तमान में कोरोना वायरस के कारण समाज की अपनी सांस्कृतिक परंपरा और संस्कृति घर में ही सिमट कर रह गई लेकिन इस समाज में इस दिन को लेकर एक उत्साह कायम है. वहीं, राजनीति गलियारों में विश्व आदिवासी दिवस मौके पर नेताओं की सोच यह बताती है कि इस समाज का विकास हुआ है लेकिन अभी भी बाकी है.
आपको बता दें कि विश्व के 195 देशों में से 90 देशों में 5000 आदिवासी समुदाय हैं, जिनकी जनसंख्या 40 करोड़ के लगभग है और इनकी अपनी 7000 भाषाएं हैं. बावजूद इसके आज भी यह अपने हक और अधिकार के लिए जूझ रहे हैं. वहीं, झारखंड में आदिवासियों की 32 जनजातियां है जिनमें सबसे बड़ी आबादी संथाल की है.
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सरकारी आंकड़ों की मानें तो 2011 जनगणना के अनुसार झारखंड में सवा तीन करोड़ की आबादी है जिनमें आदिवासियों की संख्या 90 लाख के करीब है. झारखंड राज्य अलग बनने के बाद आदिवासियों के उत्थान का जो सपना था वह आज भी अधूरा है. अलग राज्य की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले जेएमएम के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन जो आज सरकार में मंत्री हैं उनका कहना है कि विश्व आदिवासी दिवस में एक संकल्प लेने की जरूरत है जिससे आदिवासियों के शैक्षणिक आर्थिक अधिकार के साथ उनका विकास हो सके.
झारखंड बने हुए 20 साल हो गए लेकिन आज भी यहां रहने वाले ग्रामीण आदिवासी अपनी जिंदगी को सजाने और संवारने के लिए दूसरे प्रदेशों में जाकर काम करते हैं. इसका सबसे बड़ा सच कोरोना काल में देखने को मिला जब लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर झारखंड लौटे. आज इन मजदूरों को अपने राज्य में हक और अधिकार की जरूरत है. जेएमएम के आंदोलनकारी नेता घाटशिला विधानसभा के विधायक रामदास सोरेन बताते हैं कि पार्टी के जरिए ही आदिवासियों का विकास हुआ है और आगे भी राज्य की वर्तमान सरकार के जरिए ही आदिवासियों की सभी समस्याओं का समाधान होगा.
ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी वर्षों से मनाए जा रहे विश्व आदिवासी दिवस के जरिए कितना विकास हो पाया है ये तस्वीर साफ बयां करती है लेकिन चुप्पी साध कर प्रकृति के साथ मिलकर अपनी जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाने वाले के पास सवाल और शिकायतें तो हैं लेकिन वह शांत है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री कांग्रेस नेता ने साफ तौर पर कहा है कि यही एक समाज है जो प्रकृति के सदैव करीब रहता है उनकी रक्षा करता है और विश्व भर में इनकी संस्कृति की अपनी एक अलग पहचान है. मंत्री बन्ना गुप्ता का मानना है कि इस समाज पर अत्याचार हुआ है और आज इस समाज के उत्थान के लिए काम करने की जरूरत है.
बहरहाल सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और मानसिक विकास के जरिए आदिवासी समाज को सजाने संवारने की जरूरत है और इसकी नैतिक जिम्मेदारी सरकार की बनती है जिसे पूरा करना होगा तभी सही मायने में विश्व आदिवासी दिवस का सपना पूरा होगा.