रांची:राजधानी रांची में 10 जून को हुए हिंसक प्रदर्शन की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है इसमें चौंकाने वाले खुलासे सामने आ रहे हैं. अब तक की जांच में यह तो साबित हो गया है कि 10 जून को हुई हिंसा पूरी तरह से सुनियोजित साजिश थी. जिसकी भनक तक पुलिस को नहीं लग पाई. 10 जून को रांची को हिंसा की आग में झोंकने की पूरी तैयारी कर ली गई थी. साजिश को अंजाम देने के लिए कई दिनों से बैठकें होती रही, सोशल मीडिया पर ग्रुप बना लिए गए, लेकिन पुलिस को हवा तक नहीं लगी. खबर तो ये भी है कि कई पुलिस अफसरों पर 10 जून को हुई हिंसा में चूक मामले पर कार्रवाई तय है. सरकार की तरफ से बकायदा इसकी तैयारी भी कर ली गई है.
ये भी पढ़ें:रांची हिंसा में मारे गए मुदस्सिर को कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी ने बताया शहीद, कहा- झारखंड सरकार उसके परिवार को ले गोद
अब तक की जांच में यह बात साबित हो चुकी है कि रांची के डोरंडा, हिंदपीढ़ी, डेली मार्केट, सुखदेवनगर, कोतवाली और लोवर बाजार थाना क्षेत्रों में भाजपा नेत्री के बयान के बाद से ही रांची को हिंसा के आग में झोंकने की तैयारियां शुरू कर दी गई थी. रांची के बाहर से आकर लोगों ने भाजपा नेत्री के द्वारा दिए गए बयान को सुना सुनाकर युवाओं को धर्म के नाम पर जमकर बरगलाया गया. उन्हें इस बात के लिए तैयार किया गया कि वह 10 जून को रांची में कुछ ऐसा करेंगे जिससे हर जगह दहशत फैल जाए. इसके लिए इंस्टाग्राम फेसबुक और व्हाट्सएप पर अलग-अलग ग्रुप बनाए गए जिसके माध्यम से रांची के अलग-अलग थाना क्षेत्रों में रहने वाले युवाओं को जोड़ा गया. इसके बाद उन्हें किसी बड़े धार्मिक स्थल पर हमला करने की साजिश का हिस्सा बनाया गया.
पुलिस को क्यों नहीं लगी भनक:सबसे बड़ा सवाल यह है कि रांची के छह थाना क्षेत्रों में लगातार बैठकर होती रहीं, साजिशकर्ता साजिश रचते रहें लेकिन रांची पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी. आखिर वह कौन सी वजह है जो पुलिस उपद्रवियों की मनशा को नहीं भांप पाई. दरअसल इसके पीछे की वजह पुलिस की लापरवाही ही है, जिन लोगों का अक्सर थाना आना जाना लगा रहता है वे अपने आप को पुलिस के मददगार बताते रहते हैं, उनमे से अधिकांश रांची को हिंसा की आग में झोंकने की साजिश में शामिल थे. आशंका यह भी है कि पुलिस के लोकल मुखबिर भी उपद्रवियों की बातों में आ गए थे, इसलिए उन्होंने पुलिस को या भरोसा दिला दिया कि 10 जून को केवल शांतिपूर्ण तरीके से विरोध मार्च निकाला जाएगा जबकि अंदर ही अंदर उनके द्वारा हिंसा की तैयारी कर ली गई थी.
पूर्व की घटनाओ से पुलिस ने नहीं लिया सबक:राजधानी रांची में इससे पहले भी कई बार संप्रदायिक तनाव हुए हैं. जब जब कोई आपत्तिजनक बयान किसी के द्वारा दिया गया है तब तक उसका थोड़ा बहुत असर राजधानी रांची में जरूर दिखता है. खासकर रांची के फिरायालाल चौक से लेकर सुजाता चौक तक पूर्व में भी इस तरह के मामले को लेकर उपद्रव होते रहे हैं. जब कभी भी आपत्तिजनक बयान के खिलाफ रांची में जुलूस निकला है अक्सर भीड़ हिंसक हुई है यह सब जानने के बावजूद भी पुलिस में इसे बेहद हल्के में लिया. पुरानी घटनाओं से पुलिस ने कोई सबक नहीं लिया.
पत्थर और हथियार जमा होते रहे, तब भी नहीं जान पाई पुलिस:राजधानी में उपद्रव मचाने के लिए उपद्रवी कई दिनों से पत्थर और हथियार जमा कर रहे थे, लेकिन पुलिस को इसकी जानकारी तक नहीं मिल पाई. जबकि रांची पुलिस के द्वारा या दावा किया जाता है कि रात और दिन हर वक्त टाइगर से लेकर पीसीआर के जवान गश्त करते रहते हैं. खुद पुलिस ने ही अपनी एफआईआर में इस बात का जिक्र किया है कि उपद्रवियों के द्वारा 80 राउंड फायरिंग की गई थी, ऐसे में समझा जाता है कि 80 राउंड फायर करने के लिए ठीक-ठाक हथियार भी उपद्रवियों द्वारा जमा करवाए गए होंगे.
स्पेशल ब्रांच को भी नहीं लगी भनक:राजधानी में स्पेशल ब्रांच के अवसर और कर्मी बेहद सक्रिय दिखाई देते हैं. सड़क हादसा हो या छोटे-मोटे घटनाएं हर चीज की रिपोर्टिंग उनके द्वारा की जाती है. लेकिन स्पेशल ब्रांच को भी भाजपा नेत्री के बयान के बाद रची जा रही साजिश की भनक तक नहीं लग पाई. हालांकि कई बार स्पेशल ब्रांच की तरफ से यह भी कहा गया है कि पुलिस उनके द्वारा भेजे गए अलर्ट को गंभीरता से नहीं लेती है. ऐसे में अगर स्पेशल ब्रांच से रिपोर्ट भेजा भी गई होगी तो उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, ताकि पुलिस की बदनामी ना हो. पूरे मामले में स्पेशल ब्रांच के द्वारा कोई रिपोर्ट पूर्व में दी गई थी कि या नहीं यह बताने की स्थिति में फिलहाल कोई नहीं है.
विरोध मार्च को हल्के में लेना पड़ा महंगा:10 जून को होने वाले विरोध मार्च की तैयारियां जब चल रही थी, उस दौरान सभी थाना क्षेत्रों में पुलिस की टीम को मार्च में भाग लेने वाले लोगों ने यह कह कर बरगला दिया कि मार्च बिल्कुल शांतिपूर्ण तरीके से की जाएगी. पुलिस ने उनकी बातों को मानते हुए कोई भी तैयारी नहीं की, न ही मामले को लेकर अपने से कोई इनपुट जुटाया, जबकि मामला गंभीर था. देश के कई हिस्सो में हिंसक प्रदर्शन जारी थी. जिन थाना क्षेत्रों से विरोध मार्च निकालने वाला था वहां के थानेदारों ने अपने सीनियर अधिकारियों को यह रिपोर्ट दे दी कि सबकुछ शांतिपूर्ण तरीके से होगा जिसके बाद अधिकारी भी मामले को लेकर निश्चिंत हो गए.
10 जून के हुए हिंसा में आखिर चूक कहां हुई इसका जवाब देने के लिए फिलहाल कोई भी अधिकारी तैयार नहीं है. रांची के डीसी छवि रंजन जरूर यह कहते हैं कि उन्हें इसका अंदाजा नहीं था कि स्थिति इतनी भयवाह हो जाएगी. 8 और 9 जून को हुई बैठकों में उन लोगों को यह भरोसा दिलाया गया था कि विरोध शांतिपूर्ण तरीके से होगा. इसके लिए उन्होंने तैयारियां भी की थी और थानों को अलर्ट कर लगभग 500 की संख्या में जवानों को राजधानी में तैनात किया गया था.
जांच जारी है:रांची डीसी छवि रंजन के अनुसार चूक कहां पर हुई इसकी जांच की जा रही है. छवि रंजन के अनुसार उनके द्वारा जांच रिपोर्ट सौंप दी गई है. मामले में पुलिस के द्वारा गठित एसआईटी टीम भी जांच कर रही है. जबकि राज्य सरकार के द्वारा जांच टीम जो बनाई गई है वह भी जांच कर रही है. दोनों की रिपोर्ट आनी अभी बाकी है, लेकिन रांची डीसी यह नहीं बता पा रहे हैं कि चूक कहां हुई. रांची डीसी कह रहे हैं कि एहतियातन 500 की संख्या में जवानों को राजधानी में तैनात किया गया था, लेकिन सवाल यह है कि वे जवान उस समय कहां थे जब भीड़ उपद्रव मचा रही थी. घटना के दिन के फुटेज यह साबित कर रहे हैं कि उपद्रवियों को रोकने के लिए पुलिस के पास पर्याप्त बल उपलब्ध नहीं थे. ना हीं पुलिस ने मेन रोड के इलाके में वाटर कैनन और ब्रज वाहन को तैनात किया था. जबकि पूर्व में मामूली धरना प्रदर्शन के दौरान भी वाटर कैनन और ब्रज वाहन को तैनात कर दिया जाता था. नतीजा पुलिस को भीड़ के उपद्रव को रोकने के लिए गोलियां चलानी पड़ी जिसमें दो लोगों की जान चली गई और दो अभी भी जीवन और मौत से जूझ रहे हैं.
आईबी की रिपोर्ट:मिली जानकारी के अनुसार घटना के बाद आईबी ने अपनी जो रिपोर्ट तैयार की है उसमें पुलिस अफसरों और कर्मियों के द्वारा घटना को लेकर बरती गई लापरवाही का विस्तार से जिक्र किया गया है. यहां तक कि उन पुलिस अफसरों के नामों का भी रिपोर्ट में जिक्र है जिन की लापरवाही की वजह से रांची में उपद्रव हुआ. अभी की रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि गनीमत है कि राजधानी में 10 जून को हुई हिंसा एक क्षेत्र तक ही सीमित थी अगर इसका फैलाव पूरी राजधानी में होता तो पुलिस इसे संभाल नहीं पाती और पूरी रांची ही हिंसा के आगोश में समा जाती.