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जनजातीय भाषाओं में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति पर उठ रहे सवाल, फिर सवालों के घेरे में जेपीएससी

झारखंड लोक सेवा आयोग राज्य के विश्वविद्यालयों में जनजातीय भाषाओं में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति प्रक्रिया शुरु कर चुकी है, लेकिन इस नियुक्ति प्रक्रिया में भी अनियमितता बरतने के आरोप लगाए जा रहे हैं. अभ्यर्थियों ने नियुक्ति प्रक्रिया में प्रश्नचिन्ह खड़े किए हैं.

JPSC in question again
JPSC in question again

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Published : Mar 30, 2022, 5:43 PM IST

रांची:झारखंड लोक सेवा आयोग एक बार फिर सवालों के घेरे में है. झारखंड के विश्वविद्यालयों में जनजातीय भाषाओं (Tribal Languages) में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न् खड़ा हो गया है. इस प्रक्रिया में एसटी अभ्यर्थियों के लिए पद नहीं होने पर सवाल उठ रहे हैं. एसटी के पद नहीं होने और अन्य श्रेणी में अधिक पद होने से भाषाओं में नियुक्ति के लिए योग्य अभ्यर्थी नहीं मिलने की बात कही जा रही है. इससे कई पद खाली रहने की संभावना जताई जा रही है.

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रोस्टर क्लीयरेंस में गड़बड़ी:अभ्यर्थियों ने कहा कि संथाली भाषा में 11 पदों के विरुद्ध 7 पदों पर नियुक्ति अब तक हो सकी है. जबकि 4 पद रिक्त रह गए हैं. सातों पद अनारक्षित श्रेणी के थे. ओबीसी के तीन और एससी के एक पद रिक्त रह गए. इसमें एसटी के लिए एक भी पद नहीं है. अभ्यर्थियों ने इसे विश्वविद्यालय की लापरवाही के साथ-साथ रोस्टर क्लीयरेंस में गड़बड़ी बताई है. अभ्यर्थियों ने कहा है कि मामले को लेकर राज्यपाल रमेश बैस से भी मुलाकात की जाएगी. वहीं मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप की मांग की गई है.

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कट ऑफ अधिक होने से एसटी अभ्यर्थी हो रहे बाहर:जनजातीय भाषाओं में नियुक्ति के लिए आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों का कहना है कि हो विषय में कुल 7 पदों में महज एक पद एसटी के लिए है. जबकि 5 पद अनारक्षित और 01 पद बीसी-1 के लिए आरक्षित किए गए हैं. दूसरी तरफ बीसी-1 के लिए कट ऑफ मार्क्स 28.20 है. एसटी के लिए 40.15 और अनारक्षित के लिए 41.70 रखा गया है. आरक्षित पदों के विरुद्ध हो भाषा में एक भी सवर्ण समुदाय का अभ्यर्थी नहीं है. जबकि सबसे अधिक पद इसी श्रेणी में है. कट ऑफ अधिक होने से एसटी के अभ्यर्थी बाहर हो रहे हैं.

इंटरव्यू पैनल में नहीं है भाषा विशेषज्ञ:अभ्यर्थियों ने कहा कि आयोग द्वारा आनन-फानन में यह नियुक्ति प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. इस जल्दबाजी में जनजातीय भाषाओं को तवज्जो नहीं दिया जा रहा है. आलम यह है कि जिस भाषा का इंटरव्यू होना है, उससे संबंधित भाषा विशेषज्ञ ही पैनल पर नहीं है. गौरतलब है कि आयोग में सोमवार (28 मार्च) को इंटरव्यू आयोजित किया गया था. जिसमें 20 अभ्यर्थियों को बुलाया गया था. कुल पदों के 3 गुना के अनुसार एक कम अभ्यर्थी को इंटरव्यू में बुलाए जाने पर भी सवाल उठा रहे हैं.

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