रांचीः किसी भी सत्र के दौरान विधायिका की पूरी शक्ति सदन में केंद्रित हो जाती है. सभी माननीय अपने अपने क्षेत्र की ज्यादा ज्यादा समस्याएं उठाकर सरकार से उसके समाधान की गारंटी लेना चाहते हैं. सत्र के दौरान तमाम विभागों के अधिकारियों के दम फुलते रहते हैं कि ना जाने कौन-सा मामला उनके लिए गले की हड्डी बन जाए. लेकिन इस मामले में झारखंड विधानसभा बिल्कुल अजूबा है. माननीयों के सवालों को सरकार तवज्जो नहीं देती.
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झारखंड विधानसभा में हर सत्र में पक्ष और विपक्ष के हंगामे की वजह से सैकड़ों सवाल पेंडिंग रह जाते हैं. यही वजह है कि सदन में उठने वाले एक हजार से अधिक सवाल या तो लंबित हैं या अटपटे जवाब के कारण सवालों का जवाब फिर से देने के लिए विभागीय अधिकारियों को कहा गया है. स्पीकर रवींद्रनाथ महतो भी मानते हैं कि सरकार की ओर से आने वाला जवाब समुचित नहीं होने से विधायक संतुष्ट नहीं होते जिसके कारण लंबित प्रश्नों की सूची हर सत्र के बाद लंबी होती जा रही है.
सदन में जवाब नहीं मिलने पर क्या कहते हैं विधायकइन दिनों झारखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र चल रहा है. एक बार फिर सत्र के दौरान निर्धारित प्रश्नकाल में विधायक विभिन्न विभागों से जुड़े अपने अपने क्षेत्र की समस्या उठा रहे हैं. लेकिन इसका समुचित जवाब नहीं मिलने से ये बेहद खफा हैं. सरकार की ओर से जवाब नहीं मिलने पर सवाल पर सवाल होता चला जाता है. वरिष्ठ विधायक सरयू राय का मानना है कि नियमावली के अनुसार विधानसभा में आनेवाले सवाल का जवाब देना होगा और अगर ऐसा नहीं होता है तो विधानसभा नहीं चलने पर लघु विधानसभा जो समितियां होती है वहां विधायक को सवाल ले जाना चाहिए. सरकार के अधिकारी समझते हैं कि सदन ज्यादा दिन चलेगा नहीं जो भी जवाब देंगे उन्हें सदन में मान लिया जाएगा.
माले विधायक विनोद सिंह का मानना है कि एक दिन के प्रश्नकाल में तीन से चार ही सवाल आ पाते हैं और जो भी जवाब आते हैं उसमें अधिकांश गलत होते हैं. सदन में आश्वासन भी अगर सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री द्वारा दे दिये जाते हैं तो उम्मीद जगती है कि जनता का काम हो जाएगा. आजसू विधायक लंबोदर महतो का मानना है कि सरकार की ओर से जवाब बेमन तरीके से आता है जिसके कारण उसका अनुपालन भी नहीं हो पाता है और फिर सदन में सवाल उठाने पड़ते हैं. उन्होंने शहीद विनोद यादव का उदाहरण देते हुए कहा कि सरकार का जवाब आया कि 15 दिनों में मुआवजा राशि का भुगतान कर देंगे मगर दो वर्ष बीत गए अब तक मुआवजा नहीं दिया गया जो सदन की अवमानना है.
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प्रश्नकाल क्या होता है?
किसी भी विधानसभा में कार्यवाही में प्रश्नकाल के दौरान सरकार को कसौटी पर परखा जाता है. इसमें प्रत्येक मंत्री, जिसकी प्रश्नों का उत्तर देने की बारी होती है. जिनको खड़े होकर अपने या अपने प्रशासनिक कृत्यों में भूल चूक के संबंध में उत्तर देना होता है. प्रश्न चार तरह से सदन में लाए जाते हैं. तारांकित, अतारांकित ध्यानाकर्षण, मुख्यमंत्री प्रश्नकाल.
तारांकित प्रश्नवह होता है जिसका सदस्य सभा में मौखिक उत्तर चाहता है और पहचान के लिए उस पर तारांक बना रहता है. जब प्रश्न का उत्तर मौखिक होता है तो उस पर अनुपूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं.
अतारांकित प्रश्न वह होता है जिसका सभा में मौखिक उत्तर नहीं मांगा जाता है और जिस पर कोई अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछा जा सकता. ऐसे प्रश्न का लिखित उत्तर प्रश्न काल के बाद जिस मंत्री से वह प्रश्न पूछा जाता है, उसके द्वारा सभा पटल पर रखा गया मान लिया जाता है.
अल्प सूचना प्रश्नवह होता है जो अविलंबनीय लोक महत्व से संबंधित होता है और जिसे एक सामान्य प्रश्न हेतु विनिर्दिष्ट सूचनावधि से कम अवधि के भीतर पूछा जा सकता है.
मुख्यमंत्री प्रश्नकाल जिसमें सदन में सरकार के मुखिया प्रश्नों का जवाब देते हैं.
झारखंड विधानसभा में करीब 2000 प्रश्न लंबित
झारखंड विधानसभा में सत्र के दौरान प्रत्येक दिन औसतन 50-60 प्रश्न सूचीबद्ध रहते हैं. इसमें से करीब 10-15 प्रश्न सदन के पटल पर आ पाता है. ऐसे में शेष बचा प्रश्न, अनागत प्रश्न की श्रेणी में आ जाता है जिसकी संख्या काफी है. इसके अलावा सरकार द्वारा आश्वासन देने के बाद भी प्रश्नों के जवाब पर कार्रवाई नहीं होने पर आश्वासन समिति लंबित प्रश्नों पर विचार करती है. वर्तमान समय में विधानसभा में करीब दो हजार प्रश्न हैं जो आश्वासन और अनागत श्रेणी में हैं जो लंबे समय से लंबित है.
जनता की गाढ़ी कमाई से चलनेवाला लोकतंत्र के इस मंदिर में भी जब जनता की आवाज अनसुनी होना बेहद ही चिंता का विषय है. ऐसे में उम्मीद यही की जा सकती है कि लंबित सवालों का जवाब शीघ्र और सटीक मिले जिससे सवाल पर सवाल नहीं खड़ा हो.