रांचीः झारखंड में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद से ही जेवीएम सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी सुर्खियों में हैं. बाबूलाल के बीजेपी के पाले में जाने को लेकर चर्चा जोरों पर है, लेकिन सवाल ये है कि क्या प्रदीप यादव की सहमति के बिना बाबूलाल ऐसा कर पाएंगे?
बीजेपी-बाबूलाल के बीच प्रदीप यादव हैं रोड़ा
जब-जब बाबूलाल के बीजेपी के साथ नजदीकी बढ़ी है तब-तब प्रदीप यादव के कारण ही वो बाबूलाल की बीजेपी से दूरियां बढ़ जाती है. 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद जेवीएम के बीजेपी में विलय की पटकथा तैयार थी लेकिन प्रदीप यादव समेत एक और कद्दावर नेता के कारण ऐसा हो न सका. झारखंड राजनीतिक गलियारों में इस चर्चा आम है कि प्रदीप यादव की सहमति के बिना बाबूलाल कोई फैसला नहीं लेते हैं, जिससे बाबूलाल को लगने लगा था कि वे प्रदीप के साये से निकलना चाहते हैं, प्रदीप यादव के यौन शोषण के मामले में जेल जाने से ऐसा दिखने भी लगा, लेकिन पार्टी ने विधानसभा चुनाव में प्रदीप यादव को फिर से गोड्डा से प्रत्याशी बनाया. हालांकि चुनाव के दौरान भी तल्खी देखी गई, लेकिन दोनों के बीच अंदरखाने क्या चल रहा है ये कोई नहीं कह सकता है.
प्रदीप यादव में अटकी बाबूलाल की जान
कयासों का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा. कोई कह रहा खरमास के बाद बाबूलाल मरांडी भाजपा में जाएंगे तो कोई कह रहा कि झाविमो का ही विलय भाजपा में हो जाएगा. लेकिन ये इतना आसान भी नहीं है, भले ही बाबूलाल मरांडी दिल्ली में भाजपा के बड़े नेताओं से लगातार संपर्क में हो लेकिन उनकी जान प्रदीप यादव में अटकी हुई है. माना जाता है कि 2006 में जब बाबूलाल मरांडी बीजेपी से अलग हुए थे तब साथ प्रदीप यादव उनके साथ थे. इन दोनों की 20 साल की दोस्ती है.