रांची: वैश्विक महामारी कोरोना के कारण कथित तौर पर बे-पटरी हो रही अर्थव्यवस्था के दौर में रूरल इकोनॉमी को मजबूत करने के लिए मनरेगा एक मजबूत साधन के रूप में उभरा है. बावजूद इसके मनरेगा के कार्य दिवस और मजदूरी को लेकर अभी भी पेंच अनसुलझे हैं. राज्य सरकार का दावा है कि मनरेगा के कार्य दिवस और मानदेय बढ़ाने को लेकर काफी कोशिश की गई, लेकिन उसमें आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिली. वहीं, दूसरी तरफ विपक्ष ने सीधे तौर पर इसके लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. विपक्ष का कहना है कि हर असफलता के लिए केंद्र पर ठीकरा फोड़ना सही नहीं है.
क्या कहते हैं सरकार के आंकड़ेराज्य सरकार के आंकड़ों पर नजर डालें तो फिलहाल 6.91 लाख लोग मनरेगा की अलग-अलग योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं. उनमें 2.02 लाख ऐसे हैं जिन्होंने नया जॉब कार्ड बनवाया है. दरअसल, झारखंड में अभी भी मनरेगा का मानदेय दैनिक न्यूनतम मजदूरी दर से काफी कम है. एक तरफ जहां झारखंड में दैनिक मजदूरी दर 242 रुपए है. वहीं, मनरेगा के तहत 1 दिन के कार्य दिवस के एवज में 194 की मजदूरी दी जाती है. सबसे बड़ी बात यह है कि मनरेगा की मजदूरी दर में अभी बढ़ोतरी हुई है. इससे पहले 171 रुपए प्रति कार्यदिवस थी.
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विकल्पों पर भी है ध्यान
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के सचिव एनएन सिन्हा ने स्पष्ट तौर पर कहा कि फिलहाल कार्य दिवस और मजदूरी में बढ़ोतरी संभव नहीं है. वहीं, राज्य सरकार ने दावा किया कि वह हार मानने वाली नहीं है. राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि विकल्पों की तलाश की जा रही है. इसके साथ ही मानदेय कैसे बढ़े इसको लेकर भी राज्य सरकार गंभीर है. उन्होंने कहा कि मनरेगा के तहत सभी गांव में दो से पांच योजनाएं फिलहाल चल रही हैं.
मनरेगा के तहत कुएं का निर्माण करते मजदूर 'मानदेय वृद्धि का विकल्प खोजा जा रहा'
सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि मनरेगा में कार्य दिवस कैसे बढ़े और मानदेय का वृद्धि हो उसका विकल्प खोजा जा रहा है. उन्होंने कहा कि पिछले दिनों केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय से सचिव भी आए थे, उनसे भी इन सब मुद्दों पर बात हुई है. सीएम ने कहा कि राज्य सरकार की पूरी कोशिश है कि इस संक्रमण से निजात दिलाकर लोगों को रोजगार की दिशा में कैसे आगे ले जाएं.
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प्रवासियों में कुशल श्रमिकों का एक बड़ा वर्ग
दरअसल, प्रवासी मजदूरों एक बड़ी भीड़ वैसे लोगों की है जो कुशल श्रमिक की श्रेणी में आते हैं. मिशन सक्षम के तहत करवाए गए सर्वे में यह बात सामने आई कि लौटने वाले छह लाख से अधिक प्रवासी मजदूरों में 65% ऐसे हैं जिन्हें कुशल श्रमिक का दर्जा प्राप्त है. ऐसे में उनका इस नाम की कीमत अच्छी मिले, इसी कोशिश को ध्यान में रखते हुए भी मनरेगा की दर बढ़ाने की वकालत की जा रही है.
केंद्र पर हमला करना बेकार
हालांकि, इस मुद्दे पर बीजेपी का साफ कहना है कि राज्य सरकार कार्य दिवस और मानदेय बढ़ाने के लिए खुद सक्षम है. ऐसे में सभी चीजों के लिए सरकार पर ठीकरा फोड़ना आवश्यक नहीं है. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि राज्य सरकार को खुद से मजदूरी की दर बढ़ाने के लिए कोशिश करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि यह सरकार के विशेषाधिकार में भी आता है. केंद्र अपने हिस्से की राशि उपलब्ध करा रही है. ऐसे में राज्य सरकार को भी अपनी तरफ से प्रयास करना चाहिए.
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इसलिए शुरू हुई ये योजनाएं
कोरोना संक्रमण की डर से वापस लौट रहे प्रवासी मजदूरों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार ने 4 मई को तीन नई योजनाओं की शुरुआत की है. विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, बिरसा हरित ग्राम योजना के तहत 16000 हेक्टेयर जमीन पर बेसिक काम कर लिया गया है. मानसून की पहली बारिश के साथ ही फलदार वृक्षों की रोपनी शुरू हो जाएगी. बिरसा हरित ग्राम योजना के अलावे नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना और वीर शहीद पोटो हो खेल योजना भी शुरू की गई है. इन योजनाओं के मार्फत 25 करोड़ मानव दिवस का सृजन होने की संभावना है. इसके साथ ही मजदूरों के खाते में लगभग 5000 करोड़ रुपए का भुगतान होगा. अगले 5 साल में इन योजनाओं के पर लगभग 20 हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है.