रांचीः झारखंड में विश्वविद्यालय के कॉलेजों से इंटर कॉलेजों को अलग करके स्वतंत्र प्लस टू स्कूल बनाने की एक योजना बनाई गई थी. उच्च शिक्षा विभाग की ओर से इस योजना को धरातल पर उतारने के लिए कवायद शुरू कर दी गई. झारखंड एकेडमिक काउंसिल ने इसे लेकर अनुमति भी दे दी है. इसके बावजूद अभी-भी यह योजना सही तरीके से लागू नहीं हो पायी है.
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पिछले 5 साल से विश्वविद्यालय के कॉलेजों से इंटर कॉलेजों को अलग करके प्लस टू इंटर कॉलेज बनाने की कवायद की जा रही है. इस योजना के अंतर्गत कुछ प्राइवेट कॉलेजों से इंटर कॉलेजों को अलग भी किया गया है और जिसका फायदा ऐसे कॉलेजों को मिल रहा है. इसमें संत जेवियर से अलग हुए संत जेवियर इंटर कॉलेज ताजा उदाहरण है. यह इंटर कॉलेज स्वतंत्र होकर काम कर रहा है और परिणाम भी इसका बेहतर है.
इसी तर्ज पर राज्य के अन्य कॉलेजों से अलग कर इंटर कॉलेज बनाने को लेकर योजनाएं बनाई गई थी. लेकिन उस पर अमल नहीं हो रहा है. इससे संबंधित फाइल झारखंड एकेडमिक काउंसिल की ओर से एचआरडी को भेजा गया है. लेकिन जिस गति से यह योजना संचालित होना चाहिए वह गति अभी तक नहीं पकड़ पायी है.
पुरानी है योजना
कॉलेज से प्लस टू को अलग करने का फरमान बहुत पहले ही जारी हो चुका है लेकिन इस योजना की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. इस योजना के तहत कॉलेजों से प्लस टू को हटाने को लेकर सरकार की तैयारी है. जिससे अभी तक कॉलेजों में जो हजारों की संख्या में छात्र दाखिला लेते थे, उनका दाखिला इन इंटर स्कूलों में हो सके. सरकारी तैयारी अधूरा रहने के कारण इस योजना पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है.
यूजीसी की ओर से भी कॉलेजों से इंटरमीडिएट को अलग करने के लिए कहा जा रहा है. कॉलेजों को इस तरह अलग कर दिया जाए ताकि वहां सिर्फ और सिर्फ इंटरमीडिएट की पढ़ाई करवाए. यूनिवर्सिटी से इसका कोई लेना-देना ना हो जबकि इसकी तमाम प्रशासनिक गतिविधियां जैक की ओर से संचालित किया जाए. इन कॉलेजों में इंटर के लिए अलग से प्रिंसिपल और शिक्षकों की भी व्यवस्था होनी जरूरी है.
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क्या नए सत्र से अलग होगा इंटरमीडिएट
नई शिक्षा नीति और यूजीसी की गाइडलाइन के तहत आने वाले सत्र से कॉलेजों से इंटरमीडिएट को पूरी तरह से अलग करना अनिवार्य है. यूजीसी के निर्देश के साथ क्वालिटी एजुकेशन में इंप्रूवमेंट के लिए यह फैसला लिया गया है. इसके लिए सरकार की ओर से हर जिला के वैसे हाई स्कूल अपग्रेड कर प्लस टू करने का काम चल रहा है, जहां आधारभूत संरचना के साथ फैकल्टी भी हो. अगर किसी जिला के स्कूलों का अब तक किसी कारण से अपग्रेडेशन नहीं हुआ है तो सत्र शुरू होने से पहले वह पूरा कर लेना जवाबदेही सरकार की होगी. क्वालिटी एजुकेशन के लिए वो सभी संसाधन भी उपलब्ध कराना अनिवार्य है, जिनकी जरूरत है.
कॉलेजों में इंटर की पढ़ाई अगर यूजीसी की गाइडलाइन के तहत बंद कर दिया जाता है तो बच्चे कहां पढ़ेंगे, इसकी ठोस व्यवस्था अब तक राज्य सरकार की शिक्षा विभाग की ओर से नहीं की गई है. सरकार की ओर से इस योजना के तहत अंगीभूत कॉलेजों में इंटरमीडिएट की पढ़ाई बंद करने का फैसला किया गया है. इसके तहत जिला के 9 हाई स्कूलों को अपग्रेड कर प्लस टू बनाने के प्रस्ताव की फाइल भी क्लियर नहीं की गई है. कुल मिलाकर कहें तो यह योजना अभी-भी ठंडे बस्ते में ही है. इस योजना की ओर ना तो शिक्षा विभाग की ध्यान है और ना ही राज्य सरकार का.