रांची: राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स (RIMS) में पूरे झारखंड के लोग उम्मीद लेकर आते हैं कि बड़ी-बड़ी इमारतों के किसी कमरे में उन्हें अपनी बीमारी से निजात मिलेगी. आज रिम्स प्रबंधन और अधिकारियों की उदासीनता का खामियाजा हीमोफीलिया (hemophilia) का मरीज बापी दास को भुगतना पड़ रहा है. पिछले 4 महीने से बापी दास नाम का मरीज अधिकारियों के चक्कर काट रहा है ताकि उसे अपने इलाज के लिए जीवन रक्षक दवा रिम्स की तरफ से मुहैया हो जाए.
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क्या है मामला
बोकारो के चंदनकियारी का रहने वाला बापी दास के दाहिने पैर का ऑपरेशन हुआ था. इलाज रिम्स के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एलबी मांझी की ओर से की जा रही थी. बापी दास हीमोफीलिया (Hemophilia) का मरीज होने से डॉक्टरों ने उसे जो दवा लिखी वो सिर्फ रिम्स (RIMS) में ही मौजूद है. दवा की कीमत अधिक होती है और गरीब मरीजों के लिए यह दवा खरीदना उपलब्ध नहीं हो पाता, इसीलिए बप्पी दास रिम्स के भरोसे हैं. डॉक्टरों की ओर से लिखने के बावजूद भी रिम्स प्रबंधन लाचार मरीज को दवा मुहैया नहीं करा पाया है.
मरीज को नहीं मिली दवा
बार-बार अधिकारियों के सामने गुहार लगाने के बावजूद भी जब मरीज बापी दास को दवा उपलब्ध नहीं हो पाया तो वह अंत में हार कर एंबुलेंस से सीधे रिम्स के प्रशासनिक भवन पहुंचे. जहां पर मरीज और मरीज के परिजन ने एम्स के निदेशक डॉक्टर कामेश्वर प्रसाद से मिलने की गुहार लगाई. लेकिन सुरक्षा में तैनात जवान उसे एंबुलेंस हटाने के लिए कहने लगे. इसके साथ ही कोरोना का हवाला देकर रिम्स के निदेशक ने मरीज और उनके परिजन से मिलने से साफ इनकार कर दिया.
रिम्स प्रबंधन की ओर से की गई थी दवा की मांग
हीमोफीलिया ट्रीटमेंट सोसायटी (Hemophilia Treatment Society) के सचिव संतोष जायसवाल ने बताया कि हीमोफीलिया (Hemophilia) मरीज के लिए दवा की मांग रिम्स प्रबंधन से की गई थी. दवा के खरीदने के लिए स्वास्थ्य विभाग की तरफ से 2 करोड़ 20 लाख रुपये का फंड भी मौजूद है. उसके बावजूद भी मरीज को दवा मुहैया नहीं हो पा रहा है और दवा खरीदने की फाइल को एक विभाग से दूसरे विभाग में उलझा कर रखा गया है. जिसका नुकसान हीमोफीलिया के मरीजों को भुगतना पड़ता है.
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मरीजों का नहीं हो पा रहा समुचित इलाज
हीमोफीलिया (Hemophilia) के मरीजों के लिए रिम्स में विशेष व्यवस्था की गई है ताकि कभी-भी उसे किसी तरह की दवाई मुहैया करा दी जाए. लेकिन रिम्स प्रबंधन की लापरवाही के कारण ऐसे गंभीर मरीजों को भी समुचित इलाज नहीं मिल पा रहा है, जो कि निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है.