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झारखंड में पत्थलगड़ी आंदोलन ने फिर पकड़ा तूल, जानिए क्या है पत्थलगड़ी और क्यों हो रहा विवाद

झारखंड में पत्थलगड़ी आंदोलन काफी सुर्खियों में रहा है. अब एक बार फिर पत्थलगड़ी आंदोलन वापसी करता दिख रहा है. पत्थलगड़ी आंदोलन क्या है और इस पर विवाद क्यों होते रहे हैं, ये समझने के लिए पूरी खबर पढ़ें.

Pathalgarhi movement in Jharkhand
Pathalgarhi movement in Jharkhand

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Published : Feb 22, 2021, 7:01 PM IST

Updated : Feb 22, 2021, 7:20 PM IST

रांचीः झारखंड में आदिवासियों का पत्थलगड़ी आंदोलन एक बार फिर तूल पकड़ने लगा है. इसकी बानगी सोमवार को राजधानी रांची में दिखी, जब करीब दो सौ पत्थलगड़ी समर्थक हाईकोर्ट के सामने आ पहुंचे. पत्थलगड़ी समर्थकों ने संविधान की पांचवीं अनुसूची का हवाला देकर हाईकोर्ट के पास शिलापट्ट लगाने की कोशिश की. मंगलवार को राज्यपाल ने मुलाकात का आश्वासन मिलने के बाद समर्थक शांत हुए.

राजधानी में पत्थलगड़ी समर्थक

पत्थलगड़ी समर्थकों ने ईटीवी भारत से कहा कि पांचवीं अनुसूची के तहत मिले अधिकार को आदिवासियों से कोई नहीं छीन सकता है. शासन, प्रशासन और नियंत्रण आदिवासियों के पास होना चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि रांची में हर प्रमुख जगहों पर शिलापट्ट लगाए जाएंगे.

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पत्थलगड़ी आंदोलन का विवादों से नाता

झारखंड में पत्थलगड़ी की परंपरा पुराने समय से रही है लेकिन जनवरी 2017 में खूंटी में पत्थलगड़ी करने वाले प्रशासन और सरकार को चुनौती देने लगे और सरकारी योजनाओं की खिलाफ आवाज उठाने लगे. पत्थलगड़ी समर्थकों ने संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत ग्राम सभा को विशेष अधिकार होने की बात कही. शुरुआत में सरकार ने इसकी अनदेखी की और आदिवासी स्थानीय शासन का भावनात्मक मुद्दा होने के कारण इससे जुड़ते चले गए. जब तक सरकार को आंदोलन की भनक लगी तब तक ये कमोबेश पूरे झारखंड से होते हुए छत्तीसगढ़ तक पहुंच चुका था.

पुलिस को बनाया बंधक

अगस्त 2017 में खूंटी के कांकी इलाके में पत्थलगड़ी कर नेताओं ने गांव का रास्ता बंद कर दिया. इसकी सूचना पर पहुंची पुलिस गांव पहुंची तो ग्रामीणों ने उन्हें बंधक बना लिया. 25 अगस्त 2017 की पूरी रात तक एसपी, डीएसपी, एसडीओ, कई थाना प्रभारी समेत लगभग 200 पुलिसकर्मी बंधक रहे. अगले दिन डीआईजी और डीसी के हस्तक्षेप के बाद उन्हें मुक्त कराया जा सका.

पुलिस को बंधक बनाने के बाद ग्रामीणों का हौसला और बढ़ गया. इसी का नतीजा रहा कि फरवरी 2018 में नक्सलियों के खिलाफ अभियान पर निकले सीआरपीएफ की तीन कंपनियों को ग्रामीणों ने बंधक बनाया. वहां भी डीसी और एसपी ने ग्रामीणों से मान-मनुहार कर जवानों को मुक्त करवाया

युवतियों से सामूहिक दुष्कर्म

खूंटी में अड़की के कोचांग इलाके में 18 जून 2018 को पांच युवतियां डायन प्रथा के खिलाफ जागरूकता के लिए नुक्कड़ नाटक के लिए गई. इसी दौरान पत्थलगड़ी नेता और पीएलएफआई नक्सलियों ने युवतियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म को अंजाम दिया. इस मामले में फादर अल्फांसो समेत सभी 6 दोषियों को 17 मई 2019 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है.

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सांसद के गार्ड का अपहरण

कोचांग मामले में कार्रवाई के दौरान घाघरा में 26 जून 2018 को पत्थलगड़ी नेताओं ने पुलिस को चुनौती देते हुए सभा की. लाठीचार्ज के दौरान उन्होंने सांसद कड़िया मुंडा के घर से हाउस गार्ड के तीन और पुलिस के एक जवान का हथियार समेत अपहरण कर लिया. इस घटना के करीब एक सप्ताह के पुलिस अगवा जवानों को मुक्त करा सकी.

चाईबासा नरसंहार के बाद सीएम का दौरा

बुरुगुलीकेरा में नरसंहार

पश्चिम सिंहभूम के नक्सल प्रभावित क्षेत्र बुरुगुलीकेरा में 19 जनवरी 2020 को 7 लोगों की हत्या कर दी गई. पत्थलगड़ी समर्थकों ने गांव में एक बैठक बुलाई और उपमुखिया जेम्स बुढ़ सहित 7 लोगों को पहले तो लाठी डंडे से पीटकर अधमरा कर दिया और उसके बाद सर धड़ से अलग कर निर्मम हत्या कर दी. नाथूराम बुढ़ के अनुसार उसके भाई उपमुखिया जेम्स बुढ़ की हत्या पत्थलगड़ी समर्थकों ने कर दी लेकिन उसे आपसी विवाद का रंग देने की कोशिश की गई.

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पत्थलगड़ी का गुजरात कनेक्शन

20 जून 2019 को सीआईडी ने एक खुफिया रिपोर्ट तैयार की थी. इसके अनुसार पत्थलगड़ी के पीछे गुजरात के केसरी सिंह परिवार की भूमिका है. इस परिवार को ही पत्थलगड़ी समर्थक असली भारत सरकार बताते हैं. झारखंड में स्थानीय स्तर पर जोसेफ पूर्ति उर्फ युसूफ पूर्ति और बिरसा ओडेया का हाथ सामने आया. रिपोर्ट में ये भी लिखा गया कि सरकारी योजनाओं के विरोध के लिए ग्रामीणों को उकसाया जा रहा है. डाक के माध्यम से आधार कार्ड, राशन कार्ड और मनरेगा जॉब कार्ड वापस किए गए हैं. बहिष्कार के ऐलान के साथ भेजे गए कई लिफाफों पर भारत सरकार, गुजरात, कटासवाण, पोस्ट - व्यारा, जिला- सूरत, पिन कोड- 394650 का पता लिखा है.

धीरे-धीरे पत्थलगड़ी से जुड़े प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के बाद ये आंदोलन कमजोर पड़ गया. इस बीच प्रशासन ने जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को समझाया. लेकिन हालिया घटनाओं ने इस बहस को फिर हवा दे दी, जाहिर है पत्थलगड़ी आंदोलन की आग अभी बुझा नहीं है.

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पत्थलगड़ी करते गांव के लोग

संविधान की पांचवीं अनुसूची में क्या है

संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत अनुच्छेद 244 (1) में आदिवासी क्षेत्रों में प्रशासन की व्यवस्था का उल्लेख है.

  • भाग क (3) के अनुसार ऐसे प्रत्येक राज्य का राज्यपाल, जिसमें अनुसूचित क्षेत्र हैं, प्रतिवर्ष या जब भी राष्ट्रपति इस प्रकार अपेक्षा करें, उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देगा और संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्य को उक्त क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में निदेश देने तक होगा.
  • भाग ख 4 (1) के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों के लिए एक जनजातीय सलाहकार परिषद होगा, जिसकी सलाह से ही राज्यपाल कोई भी प्रशासनिक दिशा तय करेंगे.
  • भाग ख 4 (2) जनजाति सलाहकार परिषद् का यह कर्तव्य होगा कि वह उस राज्य की अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नाति से संबंधित ऐसे विषयों पर सलाह दे जो उसको राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किए जाएं.
  • भाग ख 5 (1) के अनुसार संविधान में किसी बात के होते हुए भी राज्यपाल लोक अधिसूचना द्वारा निर्देश दे सकेगा कि संसद या विधान मंडल का कोई विशिष्ट अधिनियम उस राज्य के अनुसूचित क्षेत्र या उसके किसी भाग में लागू नहीं होगा या अधिसूचना के द्वारा लागू भी करा सकता है.

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पत्थलगड़ी की परंपरा क्या है

पत्थलगड़ी का सीधा मतलब है पत्थल गाड़ना. आदिवासी इसके जरिए अपनी वंशावली और पुरखों की याद संजो कर रखते हैं. पत्थरों में मौजा, सीमा, ग्रामसभा जैसी जानकारी लिखी हुई होती है. कई जगहों पर जमीन का सीमांकन करने के लिए भी पत्थलगड़ी की जाती है. अंग्रेजों या फिर दुश्मनों के खिलाफ लड़कर शहीद हुए सपूतों की याद में भी पत्थलगड़ी की जाती रही है. मुंडा आदिवासियों के अनुसार पत्थलगड़ी 4 तरह के होते हैं- ससनदिरी, बुरूदिरी और बिरदिरी, टाइडिदिरि और हुकुमदिरी.

ससनदिरी- मुंडारी में ससन का मतलब कब्रगाह होता है और दिरी का अर्थ है पत्थर. मृतकों को दफनाने के बाद उनकी कब्र पर पत्थर रखे जाते हैं. मृतकों की याद में रखे जाने वाले पत्थरों का आकार चौकोर और टेबलनुमा होता है.

बुरूदिरी और बिरदिरी- मुंडारी में बुरू का अर्थ पहाड़ और बिर का अर्थ जंगल होता है. इस तरह के पत्थर बसाहटों और गांवों के सीमांकन की सूचना के लिए की जाती है.

टाइडिदिरी- टाइडी का मतलब राजनीतिक है. सामाजिक-राजनीतिक फैसलों और सूचनाओं की सार्वजनिक घोषणा के रूप में जो पत्थर गाड़े जाते हैं, उन्हें टाइडिदिरी कहा जाता है.

हुकुमदिरी- हुकुम का मतलब है आदेश. जब मुंडा आदिवासी नया सामाजिक-राजनीतिक या सांस्कृतिक फैसला लेता है. तब उसकी घोषणा के लिए हुकुमदिरी की जाती है.

पत्थलगड़ी की परंपरा से अलग आदिवासी संविधान की पांचवीं अनुसूची का हवाला देकर सरकारी योजनाओं का बहिष्कार करते हैं. आदिवासी गांव का स्वशासन हाथ में लेना चाहते हैं और इसके लिए प्रशासन को चुनौती देते हैं. यही विवाद की मूल वजह है.

Last Updated : Feb 22, 2021, 7:20 PM IST

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