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झारखंड की सियासत में हाशिए पर मुसलमान, विधानसभा में कम होती जा रही भागीदारी

झारखंड की सियासत में मुस्लिम समाज की भागीदारी लगातार कम होती जा रही है. वर्तमान में झारखंड की 81 सदस्यों वाली विधानसभा में सिर्फ दो मुस्लिम विधायक हैं. एक हैं जामताड़ा से इरफान अंसारी और दूसरे हैं पाकुड़ से आलगगीर आलम. यहां की कुल आबादी का करीब 14.50 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है. फिर भी राजनीतिक रूप से यह समाज हाशिए पर है.

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Published : Nov 16, 2019, 8:52 PM IST

रांची: झारखंड की सियासत में मुस्लिम समाज की भागीदारी लगातार कम होती जा रही है. यहां की कुल आबादी का करीब 14.50 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है. फिर भी राजनीतिक रूप से यह समाज हाशिए पर है.

2 मुस्लिम विधायक
वर्तमान में झारखंड की 81 सदस्यों वाली विधानसभा में सिर्फ दो मुस्लिम विधायक हैं. एक हैं जामताड़ा से इरफान अंसारी और दूसरे हैं पाकुड़ से आलगगीर आलम. दोनों कांग्रेस के विधायक हैं. दरअसल, झारखंड में संथाल परगना का इलाका पश्चिम बंगाल की सीमा से लगा है. यहां कई ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां मुस्लिम वोटर ही किसी भी प्रत्याशी की हार जीत तय करते हैं, लेकिन जनसंख्या के अनुपात में इस समाज को वाजिब भागीदारी नहीं मिल पाती.

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5 मुस्लिम विधायकों की हुई थी जीत
विधानसभा में भागीदारी के लिहाज से मुस्लिम समाज के लिए साल 2009 का चुनाव अच्छा रहा था. 2009 के विधानसभा चुनाव के वक्त पाकुड़ से जेएमएम के अकील अख्तर, मधुपुर से जेएमएम के हाजी हुसैन अंसारी, धनवार के जेवीएम के निजामुद्दीन अंसारी, गांडेय से कांग्रेस के सरफराज अहमद और धनबाद से कांग्रेस के मन्नान मलिक की जीत हुई थी. यानी कुल पांच विधायक विधानसभा पहुंचे थे.

15 नवंबर 2000 को अलग राज्य बनने के बाद साल 2005 में पहली बार हुए चुनाव में पाकुड़ से कांग्रेस के आलमगीर आलम और बोकारो से कांग्रेस के मो. ईजराइल अंसारी की जीत हुई थी. इन आंकड़ों से साफ है कि झारखंड की राजनीति में मुस्लिम समाज कहां खड़ा है.

राज्यसभा और लोकसभा में भी भागीदारी कम
एक और खास बात है कि लोकसभा और राज्यसभा में भी भागीदारी के मामले में यह समाज हाशिए पर है. राज्य बनने के बाद साल 2004 में हुए लोकसभा चुनाव के वक्त गोड्डा से कांग्रेस की सीट पर फुरकान अंसारी की जीत हुई थी. तब से आज तक झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में एक भी सीट पर इस समाज का नुमाइंदा चुनकर नहीं आ सका.

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राज्यसभा की छह सीटों के मामले में भी स्थिति वही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी एक भी मुस्लिम प्रत्याशी की जीत नहीं हुई. इस बीच झारखंड में पहली बार ऐसा हुआ है कि खुद को मुस्लिम समाज की हितैषी बताने वाली असदुद्दीन ओवासी की पार्टी AIMIM जमीन तलाश रही है. हालांकि, इस पार्टी को लोग वोट कटवा के रूप में देख रहे हैं. अब देखना है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यक समाज की भागीदारी कैसी होती है.

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