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झारखंड के चार देवी पीठों में होता है 16 दिनों का नवरात्रि अनुष्ठान, उमड़ रहे श्रद्धालु

नवरात्रि पर नौ तिथियों में देवी के नौ रूपों की पूजा-आराधना होती है, लेकिन झारखंड में चार ऐसे देवी पीठ हैं जहां शारदीय नवरात्र पर 16 दिनों का अनुष्ठान होता है (Navratri rituals of 16 days in four Devi peeth). विशिष्ट परंपराओं, मान्यताओं और ऐतिहासिक कहानियों वाले इन देवी स्थलों पर हर नवरात्र में बड़ी तादाद में श्रद्धालु जुटते हैं.

Navratri rituals of 16 days in four Devi peeth
Navratri rituals of 16 days in four Devi peeth

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Published : Oct 2, 2022, 5:21 PM IST

रांची:आम तौर पर नवरात्र में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है. लेकिन झारखंड में चार जगह ऐसे हैं जहां 16 दिनों का अनुष्ठान होता है (Navratri rituals of 16 days in four Devi peeth ).इस वर्ष 26 सितंबर को नवरात्रि की शुरूआत हुई है, जिसका समापन आगामी 4 अक्टूबर को होगा. झारखंड के इन चार मंदिरों में सात दिन पहले 19 सितंबर को जिउतिया (जीवित्पुत्रिका व्रत) पर्व के अगले दिन यानी आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी को कलश स्थापना के साथ नवरात्र अनुष्ठान प्रारंभ हो गये.

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जिन देवी पीठों में 16 दिनों का नवरात्र अनुष्ठान होता है, उनमें लातेहार जिले के चंदवा स्थित उग्रतारा मंदिर, बोकारो जिले के कोलबेंदी मंदिर, चाईबासा स्थित केरा मंदिर और सरायकेला-खरसावां में राजागढ़ स्थित मां पाउड़ी मंदिर शामिल हैं. 16 दिनों की नवरात्रि आराधना के पीछे की मान्यता के बारे में आचार्य संतोष पांडेय बताते हैं कि भगवान राम ने लंका विजय के लिए बोधन कलश स्थापना कर 16 दिनों तक मां दुर्गा की आराधना की थी. झारखंड के कई राजघरानों में इस परंपरा को चार-पांच सौ वर्षों से जारी रखा है. संभवत: पूरे भारतवर्ष में और किसी स्थान पर 16 दिनों के नवरात्रि अनुष्ठान की परंपरा नहीं है.

इन चार मंदिरों में से लातेहार के चंदवा स्थित मां उग्रतारा नगर मंदिर की मान्यता सिद्ध शक्तिपीठ के रूप में है. यह मंदिर हजारों साल पुराना बताया जाता है. शारदीय नवरात्रि में सामान्य तौर पर 16 दिनों का नवरात्रि अनुष्ठान तो यहां होता ही है, जिस वर्ष नवरात्रि वाले महीने के साथ मलमास जुड़ा हो, उस वर्ष 45 दिनों का नवरात्रि अनुष्ठान होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर तीन वर्ष पर एक वर्ष ऐसा होता है, जिसमें 12 के बदले 13 यानी एक अतिरिक्त मास होता है. इसे ही मलमास कहा जाता है. खास बात यह है कि इस मंदिर में पूजा-आराधना लगभग 500 साल पहले हस्तलिखित पुस्तक के अनुसार होती है. इस पुस्तक के पन्ने अभी भी पूरी तरह सुरक्षित हैं और अक्षर चमकदार हैं. पुस्तक को सुरक्षित रखने के लिए इसकी प्रतिलिपि बनाने की विधि भी उसी में दर्ज है. स्याही किस तरह तैयार की जाएगी, कैसे लिखी जायेगी, ये सभी विवरण इसी पुस्तक में है. इस मंदिर में पूजा अर्चना के लिए झारखंड के विभिन्न हिस्सों के साथ ही पड़ोसी राज्य बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा और छत्तीसगढ़ समेत कई अन्य राज्यों से श्रद्धालु यहां आते रहते है.

मंदिर के पुजारी पंडित अखिलानंद मिश्र और पंडित विनय मिश्र बताते हैं कि 16 दिन पूजा के बाद विजयादशमी के दिन मां भगवती को पान चढ़ाया जाता है. आसन से पान गिरने पर माना जाता है कि भगवती ने विसर्जन की अनुमति दे दी. इस दौरान हर दो-दो मिनट पर आरती की जाती है. कभी-कभी तो पूरी रात पान नहीं गिरता और आरती का दौर निरंतर जारी रहता है. पान गिरने के बाद विसर्जन की पूजा होती है. इस मंदिर के साथ राजघराने की कहानियां भी जुड़ी हैं. बताते हैं कि तत्कालीन राजा आखे टके लिए लातेहार के मनकेरी जंगल में गये थे. जहां तोड़ा तालाब में पानी पीने के दौरान देवियों की मूर्तियां राजा के हाथ में आ जा रही थीं. लेकिन राजा ने मूर्तियों को तालाब में डाल दिया. तभी भगवती ने रात में राजा को स्वप्न दिया और मूर्तियों को महल में लाने को कहा. इसके बाद तालाब से मूर्तियों को लेकर राजा अपने महल में पहुंचे और आंगन में मंदिर का निर्माण कराया. यह भी कहा जाता है कि मराठा रानी अहिल्याबाई भी मां उग्रतारा मंदिर में पूजा अर्चना करने आयी थीं.

मंदिर की परंपराओं से मुसलमानों का भी गहरा संबंध है. मंदिर में जो नगाड़ा बजाया जाता है उसकी व्यवस्था का जिम्मा मुसलमानों के पास है. मंदिर के पीछे यानी पूरब की तरफ मदार शाह की मजार है. कहते हैं कि मदार शाह नगर भगवती के अनन्य भक्त थे. विजयादशमी के समय मंदिर में पांच झंडे लगाये जाते हैं, और यहीं से छठा सफेद रंग का झंडा मदार शाह के मजार के ऊपर लगाने के लिए भेजा जाता है.

इसी तरह 350 सालों से भी ज्यादा पुराने बोकारो के कोलबेंदी दुर्गा मंदिर में भी 16 दिनों का नवरात्रि अनुष्ठान होता है. कोलबेंदी दुर्गा मंदिर के पुजारी चंडीचरण बनर्जी के अनुसार ठाकुर किशन देव ने मंदिर बनवाया था. उनके वंशज आज भी परंपरा निभा रहे हैं. सरायकेला राजघराने में वर्ष 1620 से 16 दिनों का नवरात्रि अनुष्ठान होता है. इस राजवंश के राजा विक्रम सिंहदेव ने राजमहल परिसर में पूजा शुरू की थी. यहां नवमी को नुआखाई होती है. इस दिन नई फसल से तैयार चावल का भोग देवी पर चढ़ता है. पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर में 400 वर्ष पुराने ऐतिहासिक मां भगवती केरा देवी में भी हर साल होने वाले 16 दिनों के नवरात्र अनुष्ठान के दौरान झारखंड के अलावा ओडिशा और पश्चिम बंगाल से भी श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं.

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