रांची: झारखंड में डायन बिसाही के नाम पर लगातार हत्याएं हो रही हैं (Murders In The Name Of Witchcraft). छुटनी देवी को तीन सितंबर 1995 की तारीख अच्छी तरह याद है. इस दिन गांव में बैठी पंचायत ने उनपर जो जुल्म किये थे, उसकी टीस आज भी जब उनके सीने में उठती है तो जख्म एक बार फिर हरे हो जाते हैं. उनकी आंखें बहने लगती हैं. पड़ोसी की बेटी बीमार पड़ी थी और इसका जुर्म उनके माथे पर मढ़ा गया था, यह कहते हुए कि तुम डायन हो, जादू-टोना करके बच्ची की जान लेना चाहती हो.
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पंचायत ने उनपर पांच सौ रुपये का जुर्माना ठोंका. दबंगों के खौफ से छुटनी देवी ने जुर्माना भर दिया, लेकिन बीमार बच्ची अगले रोज भी ठीक नहीं हुई तो चार सितंबर को एक साथ चालीस-पचास लोगों ने उनके घर पर धावा बोला. उन्हें खींचकर बाहर निकाला, उनके तन से कपड़े खींच लिये गये, बेरहमी से पीटा गया. इतना ही नहीं, उनपर मल-मूत्र तक फेंका गया. इस घटना के बाद उनका गांव में रहना मुश्किल हो गया. यहां तक कि पति ने भी उन्हें छोड़ दिया. अगर रातों-रात अपने तीन बच्चों के साथ वह गांव से न भागी होतीं तो पता नहीं कि वह आज जिंदा भी होती या नहीं.
यह दास्तां झारखंड के सरायकेला-खरसांवा जिले के बीरबांस गांव की रहने वाली उस छुटनी देवी की है, जिन्होंने पिछले साल नवंबर महीने भारत के राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री का सम्मान प्राप्त हुआ. आज जिस छुटनी देवी से आप मिलेंगे, उनकी पहचान एक ऐसी 'वीरांगना' के रूप में है, जिन्होंने 'डायन' की पहचान मिटाने के लिए खुद की लड़ाई तो लड़ी ही, पूरे झारखंड में 'डायन-भूतनी' कहकर प्रताड़ित की गयी तकरीबन 150 महिलाओं को नरक जैसी जिंदगी से बाहर निकाला.
लेकिन, सवाल यह है कि 27 साल पहले छुटनी देवी ने जिस तरह के जुल्म झेले, उसके बाद से झारखंड में डायन, भूत, ओझा-नाया, तंत्र-मंत्र, काला जादू के अंधविश्वास का अंधेरा कितना छटा है? इसका जवाब देते हुए खुद छुटनी देवी कहती हैं- डायन के नाम पर आज भी झारखंड के कई इलाकों में अत्याचार नहीं रुका है. इसकी वजह केवल अंधविश्वास नहीं है, ऐसी घटनाओं के पीछे आपसी रंजिश को साधने से लेकर संपत्ति हड़पने तक की साजिशें हैं.
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हाल की घटनाएं भी बताती हैं कि झारखंड की जमीन में इस कुप्रथा की जड़ें कितनी गहरी धंसी हुई हैं. 3 सितंबर को झारखंड की राजधानी रांची से महज 50 किलोमीटर दूर सोनाहातू थाना क्षेत्र के राणाडीह गांव में एक साथ तीन महिलाओं को डायन करार देकर गांव के लोगों ने मौत के घाट उतार डाला. इस गांव में दो दिनों में गांव के दो युवकों को सांप ने डंस लिया और इसके लिए इन तीनों महिलाओं को कसूरवार ठहरा दिया गया. चौंकाने वाली बात यह कि डायन का आरोप लगाकर इन महिलाओं की हत्या करने वालों की भीड़ में एक महिला का अपना पुत्र भी था.
24 सितंबर की रात झारखंड की उपराजधानी दुमका के अंतर्गत आने वाले सरैयाहाट प्रखंड के असवारी गांव के दबंगों ने एक परिवार की तीन महिलाओं सहित चार लोगों को डायन-ओझा बताकर जबरन मल-मूत्र पिलाया और उन्हें लोहे की गर्म छड़ों से दागा. प्रताड़ित लोग पूरी रात घंटे तक दर्द से तड़पते रहे, लेकिन वे न तो पुलिस के पास जाने की हिम्मत जुटा पाये और न किसी को इस बारे में बता पाये. बाद में पुलिस को किसी तरह घटना की जानकारी मिली तो इन्हें हॉस्पिटल में दाखिल कराया गया. इस घटना के पहले गांव में एक पंचायत बैठी थी, जिसमें कहा गया कि गांव के श्रीलाल मुर्मू और उसके घर की महिलाओं के जादू-टोने की वजह से गांव के पशु और बच्चे बीमार हो रहे हैं. इसके बाद करीब दर्जन भर लोग लाठी-डंडों और हथियारों से लैस होकर उसके घर पर हमला कर दिया. इसी तरह बीते 8 अक्टूबर को रांची के तुपुदाना में एक 65 वर्षीय महिला को डायन करार देकर धारदार हथियार से काट डाला गया.
2022 के बीते नौ महीनों में डायन, तंत्र-मंत्र और जादू के नाम पर दो दर्जन से ज्यादा हत्याएं हो चुकी हैं. मारे गये लोगों में 95 फीसदी महिलाएं हैं. पिछले सात वर्षों में डायन-बिसाही के नाम पर झारखंड में हर साल औसतन 35 हत्याएं हुईं हैं. अपराध अनुसंधान विभाग (सीआईडी) के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में डायन बताकर 46 लोगों की हत्या हुई. साल 2016 में 39, 2017 में 42, 2018 में 25, 2019 में 27, 2020 में 28 और 2021 में 22 हत्याएं हुईं. इस वर्ष अब तक डायन के नाम पर 26 हत्याएं हुई हैं. इस तरह साढ़े सात वर्षों का आंकड़ा कुल मिलाकर 250 से ज्यादा है.
डायन बताकर प्रताड़ित करने के मामलों की बात करें तो 2015 से लेकर 2020 तक कुल 4,556 मामले पुलिस में दर्ज किये गये. 2021 और 2022 के आंकड़े आधिकारिक तौर पर उपलब्ध नहीं है, लेकिन अनुमान है कि 2015 से लेकर अब तक डायन हिंसा के 5000 से भी ज्यादा मामले पुलिस में दर्ज हुए हैं. हिसाब बिठायें तो हर रोज दो से तीन मामले पुलिस के पास पहुंचते हैं. 15 नवंबर 2000 को झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद अब तक की बात करें तो डायन और तंत्र-मंत्र के नाम पर 1050 से भी ज्यादा हत्याएं हुई हैं.
सामाजिक एवं स्वयंसेवी संगठनों से जुड़ी छंदोश्री कहती हैं कि डायन कुप्रथा के पीछे अंधविश्वास और अशिक्षा तो है ही, कई बार विधवा-असहाय महिलाओं की संपत्ति हड़पने के लिए भी उनके खिलाफ इस तरह की साजिशें रच दी जाती हैं। गांव में किसी की बीमारी, किसी की मौत, यहां तक कि पशुओं की मौत और पेड़ों के सूखने के लिए भी महिलाओं को डायन करार दिया जाता है.
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झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता और कई सामाजिक संगठनों से जुड़े योगेंद्र यादव आईएएनएस को बताते हैं कि डायन प्रताड़ना के लगभग 30 से 40 प्रतिशत मामले तो पुलिस के पास पहुंच ही नहीं पाते. दबंगों के खौफ और लोकलाज की वजह से कई लोग जुल्म सहकर भी चुप रह जाते हैं. इनमें ज्यादातर महिलाएं होती हैं. कई बार प्रताड़ित करने वाले अपने ही घर के लोग होते हैं. ऐसे मामले पुलिस में तभी पहुंचते हैं, जब जुल्म की इंतेहा हो जाती है.
योगेंद्र बताते हैं कि डायन-बिसाही के नाम पर प्रताड़ना की घटनाओं के लिए लिए वर्ष 2001 में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम लागू हुआ था, लेकिन झारखंड बनने के बाद डायन प्रताड़ना और हिंसा के बढ़ते मामले यह बताते हैं कि कानून की नये सिरे से समीक्षा की जरूरत है. दंड के नियमों को कठोर बनाये जाने, फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाकर ऐसे मामलों में जल्द फैसला लिये जाने और सामाजिक स्तर पर जागरूकता का अभियान और तेज किये जाने की जरूरत है.
इधर, डायन प्रथा के खिलाफ सरकारी प्रयासों को लेकर राज्य सरकार के अपने दावे हैं. झारखंड के मुख्यमंत्री के पोर्टल में दावा किया गया है कि झारखंड को डायन कुप्रथा एवं उसकी ब्रांडिंग से मुक्त घोषित करने के लिए गरिमा परियोजना संचालित की जा रही है. पहले चरण में सात जिलों के 25 प्रखंडों की 342 ग्राम पंचायतों में यह योजना चल रही है. इसके तहत डायन कुप्रथा के उन्मूलन के लिए जागरूकता अभियान और पीड़िता अथवा उसके परिवार की पहचान कर लाभ पहुंचाया जाना है. इसके लिए गरिमा केंद्र और कॉल सेंटर स्थापित किये गये हैं.