रांची: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मनरेगा के तर्ज पर शहरी इलाकों में रहने वाले गरीब बेरोजगार मजदूरों के लिए गारंटी रोजगार देने की योजना की पिछले साल शुरुआत की थी. इस योजना का नाम 'मुख्यमंत्री श्रमिक योजना' (Mukhyamantri Shramik Yojana) दिया गया था. जिसका लक्ष्य मनरेगा के तर्ज पर शहरी बेरोजगारों को कम से कम 100 दिन रोजगार उपलब्ध कराना था.
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शहरी रोजगार मंजूरी फॉर कामगार को झारखंड सरकार की महती योजना के रूप में प्रचारित किया गया था, जिसमें वैसे ग्रामीण मजदूरों को भी लाभ पहुंचाने की योजना थी, जो गांव से शहर में मजदूरी करने आते हैं और उनका मनरेगा जॉब कार्ड नहीं बना है. उनके लिए भी इस योजना में प्रावधान किए गए थे.
14 अगस्त 2020 को मुख्यमंत्री श्रमिक योजना की शुरुआत
आंकड़े बताते हैं की 14 अगस्त 2020 को शुरू इस योजना के एक साल पूरा हो जाने के बाद भी लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकी. राजधानी रांची में ही हर दिन मजदूरी की तलाश में सैकड़ों की संख्या में बेरोजगार चौक चौराहों पर जुटते हैं और उनमें से कई ऐसे होते हैं, जो बिना काम पाए वापस घर लौट जाते हैं. इन मजदूरों के लिए ना तो इस योजना में इनरोल किया गया है और ना ही कभी इन्हें कोई रोजगार मिला है. नाराज मजदूरों का कहना है कि सरकारी योजनाएं हमारे लिए नहीं बनती है.