रांची: राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा 'हिंदू' शब्द से ही भारत के मौलिक संस्कार का बोध होता है. उन्होंने कहा कि हिंदू कोई धर्म नहीं है बल्कि भारत के साथ यह प्रयोग किया जाने वाला विशेषण है. उन्होंने कहा कि जिन्हें हिंदू शब्द पर आपत्ति है. वह हिंदवी शब्द का प्रयोग करते हैं. उन्होंने कहा कि भारत में रहने वाले चाहे किसी भी धर्म, संप्रदाय या प्रांत के लोग हो बाहर के देशों में उनकी पहचान इसी हिंदू विशेषण से होती है.
नेशनलिज्म को अच्छा शब्द नहीं माना जाता
उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में नेशनलिज्म शब्द को लोग अच्छा नहीं मानते हैं. उन्होंने कहा कि इसके पर्यायवाची के रूप में काफी हद तक 'नेशनल या नेशनलिस्ट' शब्द का उपयोग सही माना जा रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि नेशनलिज्म शब्द का मतलब हिटलर और नाजीवाद से जोड़कर देखा जा रहा है.
भारत को विश्वगुरु बनाना दुनिया की जरूरत
उन्होंने कहा कि भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए सबसे पहले भारत को बड़ा करना होगा और इसके लिए हिंदू को और वृहत बनाना होगा. उन्होंने कहा कि भारत के सभी लोग एक ही संस्कृति और प्रभाव से जुड़े हुए हैं और इस एकता का ठीक-ठीक वर्णन हिंदू शब्द में होता है. उन्होंने कहा कि भारत की भलाई के लिए यह शब्द है.
बुरा होने की जिम्मेदारी हिंदू पर
रांची यूनिवर्सिटी के फुटबॉल ग्राउंड में स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन इसी विविधता को एक सूत्र में पिरोने के लिए किया गया था. उन्होंने कहा कि अगर कुछ अच्छा होता है तो इसके लिए हिंदू शब्द का प्रयोग नहीं होगा, लेकिन अगर कुछ खराब हुआ तो ही इसके लिए जिम्मेदारी हिंदुओं को जाएगी.
संघ का लक्ष्य हिंदू समाज का निर्माण
उन्होंने कहा कि हिंदू समाज के निर्माण का काम संघ का है और संघ अपने इस एक उद्देश्य को पूरा करने में लगा हुआ है. इसके साथ ही उन्होंने संघ के स्वयंसेवकों को स्पष्ट शब्दों में कहा कि संघ कोई फायर ब्रिगेड नहीं है न ही स्वयंसेवक ठेकेदार हैं. उन्होंने कहा कि समाज को बनाना संघ का काम है. इसके लिए लोगों के मन में बसे भेद को निकालना होगा. उन्होंने कहा कि आरएसएस 1,30,000 छोटे-बड़े काम कर रहा है, जिसके लिए उसे किसी भी प्रकार के सरकारी मदद नहीं मिलती है.
कट्टरपंथ बड़ी समस्या
उन्होंने कहा कि भारत को विश्व गुरु बनाने की जरूरत है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि लोग कट्टरपंथ की समस्या को लेकर जी रहे हैं. इसके साथ ही यह भावना भी पनप गई है कि मेरी बात ही सही बात है, जबकि सारी समस्या की जड़ यही भावना है. यह देश की सबसे पुरानी समस्या है और इसे दूर करना होगा.
महाशक्ति कहलाते हैं ताकतवर देश
उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में 'महाशक्ति' शब्द का प्रयोग बड़े देशों के लिए किया जाता है. ये वैसे देश हैं जो दूसरे देशों का संसाधन अपने हितों के लिए करते हैं, जबकि भारत की सभ्यता संस्कृति से विपरीत है. भारत में लोग विभिन्न धर्म प्रांत और भाषा से जुड़े हैं. बावजूद उसके एक सूत्र में बंधे हैं. उन्होंने कहा कि भारत को वृहत बनाने के लिए हिंदू को वृहत बनाना होगा.
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'यूनिटी' के लिये 'यूनीफॉर्मिटी' जरूरी नहीं
उन्होंने कहा कि भारत के स्वभाव में विशिष्टता है जोड़-तोड़ नहीं. उन्होंने कहा कि सारी दुनिया ऐसा मानती है कि एक होने के लिए यूनीफॉर्मिटी होनी चाहिए तभी यूनिटी हो सकती है, जबकि भारत में विविधता के बावजूद एकता है. उन्होंने कहा कि इसका श्रेय संविधान बनाने वाले लोगों को जाता हैं.
अपने 45 मिनट के भाषण के दौरान उन्होंने स्वयंसेवकों से अपील की कि वह समाज को एक करने के लिए अपनी भूमिका सुनिश्चित करें. इसके साथ ही समाज के हर तबके को संघ से जोड़ने के लिए भी क्रियाशील रहें. उन्होंने कहा कि यह कोई आवश्यक नहीं कि स्वयंसेवक के कामों को संघ का नाम दिया जाए. स्वयंसेवक वही करते हैं जो उन्हें उचित लगता है.