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झारखंड में सफलता की कहानी लिख रही हैं ग्रामीण महिलाएं, मनरेगा की योजनाएं बनी वरदान - Green Village Scheme

झारखंड में मनरेगा की योजनाओं का फायदा लेकर कई लोगों ने न केवल अपनी किस्मत बदली है, बल्कि आस पास के रहने वाले लोगों के लिए भी मिसाल पेश किया है. इन्होंने समाज को ये सीख दी है कि कैसे सरकारी योजनाओं से जिंदगी संवारी जा सकती है. कौन हैं ये लोग और कैसे मिली इनको सफलता आइए जानते हैं.

Success came from MNREGA scheme
सरकारी योजनाओं से सफलता की गाथा

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Published : Aug 20, 2021, 10:09 AM IST

Updated : Aug 20, 2021, 11:04 AM IST

रांची: गढ़वा में सरकारी योजनाएं लोगों के लिए वरदान साबित हो रही है. जिले में चल रही कई ऐसी योजनाएं हैं जिससे जुड़कर कई ग्रामीणों ने न केवल अपनी गरीबी दूर की है बल्कि अपने आसपास रहने वाले लोगों के लिए मिसाल पेश किया है. फिर चाहे गढ़वा की रहने वाली रीमा देवी, स्नेहलता हो या फिर रामू पांडेय और गिरधारी सिंह, सभी ने अपनी सूझबूझ से ये साबित किया है कि सरकारी योजनाओं से जीवन में सुख और समृद्धि आ सकती है. सभी ने समाज को ये सीख दी है कि सरकारी योजनाओं का फायदा कैसे उठाया जा सकता है.

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वरदान साबित हुई सरकारी योजना

मनरेगा के तहत शुरू किए गए दीदी-बाड़ी योजना जहां रीमा देवी, स्नेहलता पांडेय और संतरी देवी जैसी महिलाओं के लिए वरदान साबित हुई है. वहीं बिरसा बागवानी योजना से रामू पांडेय और बिरसा ग्राम योजना से गिरिधारी सिंह ने अपनी अपनी जिंदगी संवारी है. इसी तरह अंजुम और सोनिया ने बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट सखी बनकर सफलता की नई कहानी को गढ़ा है.

दीदी बाड़ी योजना से मिली सफलता

गढ़वा के बिर्बधा पंचायत की रहने वाली रीमा देवी ने दीदी बाड़ी योजना से जुड़कर अपनी 5 डिसमिल जमीन पर खेतीबाड़ी की शुरुआत की थी. जिसमें रीमा ने शुरुआत में बैंगन, पालक, गाजर, मूली, मिर्च, कद्दू और करेले की सब्जी लगाई. जिसमें 20 किलो बैंगन, 25 किलो पालक, 10 किलो खीरा, 20 किलो गाजर, 5 किलो मिर्च, 10 किलो करेले का उत्पादन हुआ. अपनी सफलता पर रीमा देवी कहती हैं कि दीदी बाड़ी योजना से जुड़ने से पहले वो सब्जियां खरीद कर खाती थीं, जिसमें हर दिन 50 से 70 रुपये खर्च होते थे. जब खुद दीदी बाड़ी योजना से जुड़कर सब्जियों का उत्पादन किया, तब न सिर्फ बचत हुई बल्कि स्वास्थ्य में भी सुधार आया. वहीं किसान मेला में जब उन्होंने अपनी उपजायी सब्जियों की प्रदर्शनी की, तो वहां भी उनकी खूब सराहना हुई.

सरकारी योजनाओं से सफलता की गाथा

स्नेहलता की उपजाई सब्जियों से शुगर कंट्रोल

गढ़वा के सोह गांव की स्नेहलता पांडेय ने दीदी बाड़ी योजना से जुड़कर अपनी जमीन पर 30 किलो पालक, 25 किलो खीरा, 45 किलो गाजर, 25 किलो लौकी, 20 किलो करेला, 20 किलो मूली और 25 किलो टमाटर का उत्पादन किया. स्नेहलता बताती हैं कि घर में पर्याप्त सब्जियां पैदा होने से वो इनकी बिक्री भी कर पाती है. उन्होंने कहा कि उनके बड़े भाई शुगर के मरीज थे, जिन्हें खाने में काफी परहेज करना पड़ता है. दीदी बाड़ी योजना से घर में उपजायी सब्जियों के सेवन से उनका शुगर काफी नियंत्रित हुआ है. अब डॉक्टरों की सलाह पर उन्होंने दवा लेना भी बंद कर दिया है.

मनरेगा योजना से मिली सफलता
संतरी देवी को भी मिली सफलता

संतरी देवी भी गढ़वा की करवा पंचायत की रहने वाली है. उन्होंने दीदी बाड़ी योजना के तहत अपने खेत में 60 किलो टमाटर, 100 किलो बैंगन, 80 किलो बंदगोभी, 8 किलो मिर्च और 30 किलो भिंडी का उत्पादन किया. संतरी देवी ने अपनी मेहनत से इलाके के सफल किसानों में पहचान बना ली है. उन्होंने बताया कि जैविक कीटनाशक और गोबर खाद का प्रयोग कर उन्होंने कम लागत में अच्छी फसल की पैदावार की है. अब गांव की दूसरी महिलाएं भी उनके मार्गदर्शन में दीदी बाड़ी योजना से जुड़कर सब्जियां लगा रही हैं.

बिरसा बागवानी योजना ने बदली किस्मत

रीमा देवी, स्नेहलता पांडेय, संतरी देवी की तरह रामू पांडेय को भी सरकारी योजनाओं से सफलता मिली है. गढ़वा के कुंडी पंचायत के रहने वाले रामू ने बिरसा बागवानी योजना के तहत अपनी एक एकड़ जमीन पर 112 पौधे जिसमें 10 शीशम, 20 सागवान, 20 गम्हर और 32 करंज के पेड़ लगाए हैं. रामू ने इन्तेक्रोप्पिंग के माध्यम से उसी जमीन पर आलू, सरसों और राई भी लगाये हैं. जिसके उत्पादन से वो अपनी आजीविका चला रहे हैं. उन्होंने अबतक 3 क्विंटल आलू, 40 किलो सरसों और 20 किलो राई का उत्पादन किया है.

हरित ग्राम योजना से खत्म होती है गरीबी

गढ़वा भवनाथपुर के मकरी पंचायत के रहने वाले गिरिधारी सिंह भी सरकारी योजना हरित ग्राम योजना से जुड़कर अपनी गरीबी को खत्म करने वाले हैं. गिरिधारी सिंह कहते हैं कि डेढ़ साल पहले वे हरित ग्राम योजना का लाभ लेने के लिए एक स्वयं सहायता समूह से जुड़े. उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है, लेकिन अब बहुत जल्द उनकी आर्थिक स्थिति सुधरने वाली है. इस योजना से जुड़कर उन्होंने 80 आम, 12 अमरूद, 8 नींबू, 5 कटहल और दो काजू के पौधे लगाये हैं. ये पौधे बहुत जल्द फल देने वाले हैं.


अंजुम और सोनिया ने सुधारी अपनी आर्थिक हालत

बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट सखी बनकर रामगढ़ की मगनपुर पंचायत की रहने वाली अंजुम आरा ने भी अपनी किस्मत बदल ली है. लॉकडाउन के समय उन्होंने 50 लाख रुपये से ज्यादा का ट्रांजेक्शन किया है. अंजुम अपनी पंचायत के साथ-साथ आसपास की पंचायतों के लोगों को भी बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराती हैं. वहीं खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड की सोनिया कंसारी भी अपनी पंचायत के लोगों तक निरंतर पैसा जमा-निकासी से लेकर बीमा तक की सभी सेवाएं घर-घर जाकर प्रदान कर रही हैं. वह हर महीने 25-30 लाख रुपये तक का ट्रांजेक्शन कर लेती हैं.

सरकारी योजनाओं से फायदा

सरकारी योजनाओं से लोगों को फायदा होने पर राज्य की मनरेगा आयुक्त कहती हैं कि योजनाओं के शत प्रतिशत क्रियान्वन सुनिश्चित होने के कारण लोगों को सफलता मिल रही है. उन्होंने कहा राज्य सरकार की योजनाओं से दूर दराज के इलाकों में भी लोगों का जीवन सुधर रहा है और लाभुकों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन दिख रहा है.

Last Updated : Aug 20, 2021, 11:04 AM IST

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