रांची:कोरोना महामारी के बाद लॉकडाउन ने स्कूल और कॉलेज को भी ठप कर दिया था. बच्चों की शिक्षा का एकमात्र रास्ता ऑनलाइन क्लासेस रह गया. हालांकि राज्य के सरकारी क्या, निजी स्कूलों में भी ऑनलाइन पढ़ाई शत प्रतिशत संभव नहीं हो सका और अब धीरे-धीरे लॉकडाउन में मिली छूट के बाद कुछ हद तक सीनियर बच्चों के लिए स्कूल खोल दिए गए हैं. बच्चे भी अब ऑनलाइन क्लासेज से ऊब चुके हैं. वहीं, अभिभावक और एक्सपर्ट कहते हैं कि अब धीरे-धीरे चीजों को सामान्य कर तमाम स्कूल-कॉलेज खोलने को लेकर प्लानिंग करने की जरूरत है.
मजबूरन ले रहे ऑनलाइन क्लास
कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण ऑनलाइन कक्षाओं पर ही शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह निर्भर हो गई थी, लेकिन बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं को लेकर क्या सक्षम हैं? क्या वह पूरी तरह इसका लाभ ले पा रहे हैं? इस ओर ना तो स्कूल प्रबंधकों का ध्यान है और ना ही अभिभावक इसे लेकर चिंतन मंथन कर रहे हैं. 90 फीसदी विद्यार्थियों के लिए ऑनलाइन शिक्षा एक नई अवधारणा है. उनके लिए यह एक परेशानी का सबब भी है. ऑनलाइन कक्षा के जरिए बच्चों को सही तरीके से विषय की समझ भी नहीं हो पाती और ना ही उनके डाउट क्लियर होते हैं. इसके बावजूद मजबूरन इस महामारी के कारण बच्चे ऑनलाइन कक्षाएं करने को विवश हैं.
नेटवर्क की समस्या
वहीं, सीनियर बच्चों की बात करें तो कॉलेजों में भी ऑनलाइन पद्धति को अपनाया गया, लेकिन सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों को इसका लाभ मिल ही नहीं रहा है. क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यार्थियों के पास एंड्रॉयड मोबाइल भी नहीं है और किन्ही के पास है, तो वहां नेटवर्क की भारी दिक्कत है. ऐसे में अब धीरे-धीरे ऑफलाइन कक्षाओं की मांग उठ रही है. सीनियर बच्चों के साथ-साथ अभिभावक भी अब चाहते हैं कि चीजों को नियंत्रण में करते हुए स्कूल प्रबंधकों के साथ तालमेल बिठाकर कोविड-19 के मद्देनजर जारी गाइडलाइन का ख्याल रखते हुए अब ऑफलाइन क्लासेस की ओर बढ़ना चाहिए. सबसे बड़ी बात कि बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं में शिक्षकों से सवाल पूछने में संकोच करते हैं. धीरे-धीरे बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं से ऊब रहे हैं. अब वह भी स्कूल जाना चाहते हैं.
टेक्निकल परेशानियां
ऑनलाइन शिक्षा के लिए माता पिता और कई विशेषज्ञ भी सलाह देते हैं, लेकिन नेटवर्क और कई टेक्निकल परेशानियों के कारण ऑनलाइन क्लासेस को झारखंड में शत प्रतिशत व्यवस्थित नहीं किया जा सकता. ना ही ऑनलाइन क्लासेस को लेकर फिलहाल झारखंड में माहौल ही बन पाया. सरकारी स्कूलों में ऑनलाइन क्लासेस नाम के लिए संचालित की जा रही हैं, जबकि निजी स्कूलों में भी सही ढंग से ऑनलाइन क्लासेस सफल साबित नहीं हो रही. निजी स्कूलों में तो अभिभावक पूरी फीस दें, बस इसके लिए ही ऑनलाइन क्लासेज संचालित हो रही हैं. इसमें विद्यार्थियों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है और ना ही उन्हें प्रॉपर एजुकेशन ही मिल रही है.
महज खानापूर्ति है ऑनलाइन क्लास
अभिभावक के पास मोबाइल तो एक है, लेकिन बच्चे तीन. ऐसे में एक्सपर्ट शिक्षक और अभिभावक कहते हैं कि लाख कोशिश करने के बावजूद शत-प्रतिशत बच्चों तक ऑनलाइन कक्षाओं का लाभ नहीं दिया जा सकता. ऑनलाइन कक्षाओं से बच्चों को सीखने का वह माहौल नहीं मिल पा रहा है. बच्चे नाम के लिए ऑनलाइन क्लासेस अटेंड कर रहे हैं और अभिभावक स्कूलों में पूरी ट्यूशन फीस दे रहे हैं. अधिकतर अभिभावकों की राय है कि जल्द से जल्द अब ऑफलाइन क्लासेस शुरू करने को लेकर शिक्षा विभाग और स्कूल प्रबंधकों को योजनाबद्ध तरीके से काम करने की जरूरत है.
ऑफलाइन और ऑनलाइन क्लासेस समानांतर हो संचालित
समानांतर तरीके से ऑनलाइन क्लासेस को भी एक योजनाबद्ध तरीके से संचालित किया जा सकता है. विशेषज्ञ राय देते हैं कि जिस तरीके से सरकारी स्कूलों के बच्चों तक पठन-पाठन सामग्री पहुंचाने को लेकर दूरदर्शन की सहायता ली जा रही है. सरकारी स्तर पर भी ऐप बनाकर बच्चों को पठन-पाठन से जुड़े कंटेंट मुहैया कराया जा रहा है. उसी तरीके से निजी स्कूलों में भी उपाय अपनाया जा सकता है. हालांकि निजी स्कूल अपने तरीके से तमाम बच्चों तक पठन-पाठन शत प्रतिशत पहुंचाने की बात करते हैं. लेकिन यह बातें सिर्फ और सिर्फ कहने वाली हैं. ग्राउंड स्तर पर देखें तो सबसे बड़ी समस्या एंड्राइड मोबाइल और नेटवर्क की कमी है.
12 लाख विद्यार्थियों तक पहुंच रहा डिजिटल कंटेंट
सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 46 लाख विद्यार्थियों में से करीब 12 लाख विद्यार्थियों को ही डिजिटल कंटेंट उपलब्ध कराया जा रहा है. इनमें से करीब 6 लाख विद्यार्थी इस कंटेंट और वीडियो को नहीं देख पा रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण नेटवर्क की कमी, तो कहीं अभिभावकों के पास स्मार्टफोन का नहीं होना है.