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मां मनसा की पूजा से दूर होता है सर्पदोष, सदियों से चली आ रही है यह परंपरा

रांची जिले के बुंडू और तमाड़ इलाके में मां मनसा की पूजा धूमधाम से की जा रही है. इस दौरान श्रद्धालु जहरीले सांपों को पकड़ते हैं और करतब भी दिखाते हैं.

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Published : Aug 18, 2019, 3:03 PM IST

सांपों के साथ लोग

बुंडू/रांची: राजधानी से सटे बुंडू और तमाड़ इलाके में मां मनसा देवी की पूजा धूमधाम से की जाती है. इस दौरान श्रद्धालु जहरीले सांपों को पकड़ते हैं और सांपों का करतब भी दिखाते हैं. कई बार सांप लोगों को काटते भी हैं, लेकिन ऐसी मान्यता है कि मनसा पूजा के दौरान सांप के काटने के बाद भी शरीर में जहर नहीं फैलता है.

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सदियों पुरानी है ये परंपरा
दरअसल, सांपों को मां मनसा की सवारी माना जाता है. इसलिए मनसा मां की प्रतिमा में नाग सांप भी बनाया जाता है. इस पर्व को लेकर लोगों में काफी उत्साह रहता है. लोग पूरे धूमधाम से जहरीले सांपों को पिटारे में लेकर नाचते गाते हैं. कई भक्तगण मनसा पूजा में अपने गालों में छड़ को आर-पार कर देते हैं. बातचीत करने पर वे बताते हैं कि मनसा मां की कृपा से छड़ को शरीर में आर-पार करने से भी कोई दर्द नहीं होता है. मां मनसा की पूजा कराने की परंपरा पुराने जमाने से चली आ रही है. इस पर्व को धान रोपनी के बाद मनाया जाता है.

विष देवी के रूप जानी जाती हैं मां मनसा
मनसा देवी को शिव की मानस पुत्री माना जाता है, लेकिन अनेक पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि इनका जन्म कश्यप के मस्तक से हुआ है. कुछ ग्रंथों में लिखा है कि वासुकि नाग द्वारा बहन की इच्छा करने पर शिव ने उन्हें इसी मनसा नामक कन्या को भेंट स्वरूप दे दिया. प्राचीन ग्रीस में भी मनसा नामक देवी का प्रसंग आता है, इन्हें कश्यप की पुत्री और नाग माता के रूप में भी माना जाता था. इसके साथ ही शिव पुत्री, विष की देवी के रूप में भी माना जाता है. मनसा विजय के अनुसार वासुकि नाग की माता ने एक कन्या की प्रतिमा का निर्माण किया जो शिव वीर्य से स्पर्श होते ही एक नाग कन्या बन गई, जो आगे चलकर मनसा कहलाई. जब शिव ने मनसा को देखा तो वे मोहित हो गए, तब मनसा ने बताया कि वह उनकी बेटी है, शिव मनसा को लेकर कैलाश आ गए. माता पार्वती ने जब मनसा को शिव के साथ देखा तब चंडी का रूप धारण कर मनसा के एक आंख को अपने दिव्य नेत्र तेज से जला दिया.

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झारखंड, बिहार, बंगाल और ओडिशा में होती है पूजा
14वीं सदी के बाद इन्हें शिव के परिवार की तरह मंदिरों में आत्मसात किया गया. यह मान्यता भी प्रचलित है कि इन्होंने शिव को हलाहल विष के पान के बाद बचाया था. यह भी कहा जाता है कि मनसा का जन्म समुद्र मंथन के बाद हुआ था. मनसा पूजा का आयोजन बांग्ला और ओड़िया पंचांग के अनुसार श्रावण संक्रांति, भादो संक्रांति और आश्विन संक्रांति को किया जाता है. यह पूजा झारखंड के साथ-साथ बंगाल ओडिशा और बिहार में बड़े ही धूमधाम से की जाती है.

राजा युधिष्ठिर ने भी की थी मां मनसा की अराधना
राजा युधिष्ठिर ने भी मां मानसा की पूजा की थी. जिसके फलस्वरूप वह महाभारत के युद्ध में विजयी हुए. मनसा देवी की साधना से सर्पदोष समाप्त होता है. आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए मनसा देवी की आराधना करना उत्तम रहता है. अगर आपके घर में बाधायें बनी रहती है तो मनसा देवी की नियमित पूजा करें. हर बाधा समाप्त हो जायेगी.

करतब को खुद से न दोहराए
मनसा देवी की पूजा के दौरान सांपों की तो पूजा होती ही है. साथ ही सांपों के साथ कई तरह के करतब भी दिखाए जाते हैं. जिसे देख लोग अचंभित होते हैं. ये प्रदर्शन और करतब कफी हैरतअंगेज होते हैं. ईटीवी भारत की अपील है कि कोई भी इन करतबों को खुद से घर या कहीं और करने कोशिश कतई न करें. ये लोग जो करतब दिखा रहे हैं वो काफी समय से यह काम कर रहे हैं. इन्हें इनका काफी अभ्यास है. वैसे भी सांपों को रखना या सांपों के साथ खिलवाड़ करना कानूनी अपराध है.

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