बुंडू/रांची: राजधानी से सटे बुंडू और तमाड़ इलाके में मां मनसा देवी की पूजा धूमधाम से की जाती है. इस दौरान श्रद्धालु जहरीले सांपों को पकड़ते हैं और सांपों का करतब भी दिखाते हैं. कई बार सांप लोगों को काटते भी हैं, लेकिन ऐसी मान्यता है कि मनसा पूजा के दौरान सांप के काटने के बाद भी शरीर में जहर नहीं फैलता है.
सदियों पुरानी है ये परंपरा
दरअसल, सांपों को मां मनसा की सवारी माना जाता है. इसलिए मनसा मां की प्रतिमा में नाग सांप भी बनाया जाता है. इस पर्व को लेकर लोगों में काफी उत्साह रहता है. लोग पूरे धूमधाम से जहरीले सांपों को पिटारे में लेकर नाचते गाते हैं. कई भक्तगण मनसा पूजा में अपने गालों में छड़ को आर-पार कर देते हैं. बातचीत करने पर वे बताते हैं कि मनसा मां की कृपा से छड़ को शरीर में आर-पार करने से भी कोई दर्द नहीं होता है. मां मनसा की पूजा कराने की परंपरा पुराने जमाने से चली आ रही है. इस पर्व को धान रोपनी के बाद मनाया जाता है.
विष देवी के रूप जानी जाती हैं मां मनसा
मनसा देवी को शिव की मानस पुत्री माना जाता है, लेकिन अनेक पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि इनका जन्म कश्यप के मस्तक से हुआ है. कुछ ग्रंथों में लिखा है कि वासुकि नाग द्वारा बहन की इच्छा करने पर शिव ने उन्हें इसी मनसा नामक कन्या को भेंट स्वरूप दे दिया. प्राचीन ग्रीस में भी मनसा नामक देवी का प्रसंग आता है, इन्हें कश्यप की पुत्री और नाग माता के रूप में भी माना जाता था. इसके साथ ही शिव पुत्री, विष की देवी के रूप में भी माना जाता है. मनसा विजय के अनुसार वासुकि नाग की माता ने एक कन्या की प्रतिमा का निर्माण किया जो शिव वीर्य से स्पर्श होते ही एक नाग कन्या बन गई, जो आगे चलकर मनसा कहलाई. जब शिव ने मनसा को देखा तो वे मोहित हो गए, तब मनसा ने बताया कि वह उनकी बेटी है, शिव मनसा को लेकर कैलाश आ गए. माता पार्वती ने जब मनसा को शिव के साथ देखा तब चंडी का रूप धारण कर मनसा के एक आंख को अपने दिव्य नेत्र तेज से जला दिया.