रांची: लोकसभा चुनाव 2019 की मतगणना के ठीक पहले ईवीएम की सुरक्षा को लेकर सवाल किए जा रहे हैं. कई लोगों ने आरोप लगाया कि ईवीएम बदली जा रही है. ईवीएम के कथित संदिग्ध मूवमेंट की खबरें आने के बाद विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग से भी इस पर सफाई मांगी. हालांकि आयोग ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया. ऐसे में सवाल ये है कि क्या वाकई में ईवीएम में छेड़खानी या बदलाव संभव है?
ईवीएम की सुरक्षा में सेंध लगा पाना इतना आसान नहीं हो सकता, उसे बेहद कड़ी सुरक्षा के बीच रखा जाता है. जब चुनाव नहीं होते तो इन मशीनों को जिले के किसी गोदाम में रखा जाता है. उस गोदाम का सीधा नियंत्रण डिस्ट्रिक इलेक्टोरल ऑफिस यानी की डीईओ के पास होता है. गोदाम की सुरक्षा के लिए उसके दरवाजे पर डबल लॉक लगाया जाता है. इसके अलावा पुलिस और सुरक्षाकर्मी 24 घंटे उसकी निगरानी करते हैं. सुरक्षाकर्मियों के अलावा निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे का भी इस्तेमाल किया जाता है. जब चुनाव नहीं होते हैं तो बिना चुनाव आयोग के निर्देश के ईवीएम को नहीं निकाला जा सकता.
कैसे एलॉट किए जाते हैं EVM
चुनाव की तारीख जब नजदीक आती है तो ईवीएम रैंडम तरीके से किसी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विधानसभाओं के लिए आवंटित किया जाता है. इस दौरान विभिन्न पार्टियों के प्रतिनिधि वहां मौजूद रहते हैं. अगर किसी पार्टी के प्रतिनिधि वहां मौजूद नहीं रहते हैं तो ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की एक सूची तैयार की जाती है जिसे सभी प्रमुख पार्टियों के दफ्तर में भेज दिया जाता है. इसके बाद उस विधानसभा के रिटर्निंग ऑफिसर आवंटित ईवीएम की जिम्मेदारी लेता है और उन्हें तय किए गए स्ट्रॉन्ग रूम में रखवा दिया जाता है.
EVM आवंटिक करने का दूसरा दौर
इसके बाद ईवीएम को रैंडम तरीके से आवंटित करने का दूसरा दौर शुरू होता है. इन मशीनों को विभिन्न पार्टी के प्रतिनिधियों के मौजूदगी में खास पोलिंग स्टेशनों को आवंटित किया जाता है. चुनाव आयोग हर प्रत्याशी को सुझाव देता है कि वे मशीनों के नंबर अपने पोलिंग एजेंट के साथ शेयर करें ताकि वोटिंग शुरू होने से पहले वह मशीनों की पुष्टी कर सकें. जब सभी मशीनों को प्रत्याशियों के नाम और बाकी जानकारी के साथ तैयार कर लिया जाता है तो उसे संबंधित क्षेत्र के लिए आवंटित कर दिया जाता है. इसके बाद इन्हें जिस स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है, उसे पार्टी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में सील कर दिया जाता है. इस दौरान पार्टी के प्रतिनिधि चाहें तो अपने ताले लगा कर उसे भी सील कर सकते हैं. इस स्ट्रॉन्ग रूम की निगरानी का जिम्मा एक सीनियर पुलिस अधिकारी के पास होता है जो कम से डीएसपी रैंक का होता है. इस स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा भी बेहद सख्त होती है. कभी कभी इसकी जिम्मेदारी केंद्रीय सुरक्षा बल को भी दी जाती है.