रांचीःकोविड-19 ने धंधा चौपट कर दिया है. इसकी सबसे ज्यादा मार फुटपाथी दुकानदारों पर पड़ी है. जिन्हें कहीं रेहड़ी वाला कहते हैं. कहीं ठेला वाला, तो कहीं फुटपाथी. लेकिन इनके लिए इंग्लिश में सिर्फ दो शब्द का इस्तेमाल होता है "स्ट्रीट वेंडर्स ". ठेले पर फल, सड़कों पर सब्जी, चौक चौराहों पर चाट-पकौड़ी, ससोसे, बिंदी-चुड़ी, खिलौने और सस्ते कपड़े बेचने वाले स्ट्रीट वेंडर्स के दर्द को शायद ही कभी किसी ने महसूस किया होगा. इनका कारोबार चंद हजार रुपए पर टिका होता है. इनके पास मोरगेज रखने के लिए कुछ नहीं होता इसलिए बैंक पैसा नहीं देते. लाचार होकर महाजनों के भारी भरकम ब्याज के जाल में फंस जाते हैं. अब इन्हें खोज खोज कर 10-10 हजार रु दिए जा रहे हैं. यह संभव हो पाया है पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि यानी पीएम स्वनिधि की बदौलत. इसके तहत सभी स्ट्रीट वेंडर्स को दस-दस हजार रुपए दिए जाने हैं. ताकि ठप पड़ी इनके व्यवसाय की गाड़ी को गति मिल सके. क्योंकि अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए इनको मजबूत होना जरूरी है.
लोगों को दिया जा रहा है लोन
नगरीय प्रशासन निदेशालय की निदेशक विजया जाधव से भी हमारी टीम ने बात की. उन्होंने कहा कि लाभुकों की लिस्ट की लगातार समीक्षा हो रही है और कोशिश है कि सभी रजिस्टर्ड वेंडर्स को बैंक से लोन दिला दी जाए. उन्होंने कहा कि जो वेंडर्स रजिस्टर्ड नहीं है उन्हें भी इसका लाभ मिलेगा बशर्ते उन्हें कुछ कागजी प्रक्रिया पूरी करनी पड़ेगी. इसके लिए सबसे साधारण उपाय है कि वह अपने नगर निकाय के किसी पदाधिकारी से संपर्क कर लें.
लाभुकों की जुबानी लोन की कहानी
ईटीवी भारत की टीम ने लाभुकों से मिलकर यह जानने की कोशिश की कि 10 हजार रु उन्हें कैसे मिले और इससे उनको किस तरह का फायदा हो रहा है. कोविड-19 के दौर में ही अपने पति को गंवाने वाली कलावती बोलते बोलते रो पड़ीं. वो कहती हैं कि अभी कुछ पैसों की चूड़ियां खरीदी है धीरे-धीरे अपने व्यवसाय को फैलाते चले जाएंगे. लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि कलावती को यह नहीं मालूम कि उन्हें किस स्कीम के तहत बैंक ने उन्हें लोन दिया. अपने बस इतना मालूम है कि नगर निगम वाले आए थे और उनकी बदौलत पैसे मिले.
कंबल बेचने वाले शिव साहू को भी प्रधानमंत्री स्वनिधि की कोई जानकारी नहीं है. उन्हें बस इतना मालूम है कि नगर निगम का कैंप लगा था और बैंक खाते में पैसे आ गए.