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झारखंड टूल रूम कर रहा मिट्टी के बर्तनों का निर्माण, कारीगरों में बढ़ रही आत्मनिर्भरता - झारखंड टूल रूम में मिट्टी के बर्तनों का निर्माण

झारखंड टूल रूम में इन दिनों मिट्टी के बर्तनों का वृहद पैमाने पर निर्माण किया जा रहा है. इन मिट्टी के बर्तनों की मांग झारखंड के साथ-साथ दूसरे राज्यों में भी भरपूर मात्रा में मांग है.

Large scale pottery is being manufactured by Jharkhand Tool Room
मिट्टी के बर्तन

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Published : Jul 31, 2020, 2:15 PM IST

रांची: झारखंड टूल रूम में इन दिनों मिट्टी का बर्तन का निर्माण बड़े जोर शोर से चल रहा है. टूल रूम के प्रचारक का कहना है कि झारखंड में मिट्टी के बर्तनों की मांग को देखते हुए यहां कारीगरों ने मिट्टी की थाली, गिलास, लोटा, कटोरा, थरमस जैसी कई कलाकृतियों का निर्माण मिट्टी के मशीन से किया जाता है. यूपी के खुर्जा स्थित कारीगरों के ने टूल रूम में झारखंड की मिट्टी से बने हुए बर्तनों की डिमांड झारखंड समेत और कई राज्यों में भी है. यही नहीं झारखंड टूल रूम में तकनीकी ज्ञान के लिए मिट्टी के बर्तनों का निर्माण संबंधी पढ़ाई भी कराई जाती है. कई बैच में यहां छात्र-छात्राओं को मिट्टी के बर्तन बनाने का तकनीकी ज्ञान भी दिया जाता है.

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टाटीसिल्वे स्थित झारखंड टूल रूम में मिट्टी से बनी मूर्तियों का भी बखूबी निर्माण किया जाता है. जिसकी बाजार में पूरी मांग है. मिट्टी की बनी झारखंडी कलाकृति सहित बर्तन का निर्माण करने में झारखंड टूल रूम झारखंड के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोगों को जीविका का भी एक साधन है. ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले कमजोर वर्ग के लोगों को भी यह रोजगार मुहैया कराती है. झारखंड टूल रूम ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों से जुड़ कर इस मिट्टी की कारीगरी का भी ज्ञान देती है और उन्हें बैंक से पैसा उपलब्ध कराकर उन्हें रोजगार भी देती है. बाजार में इन मिट्टी के निर्माण के बर्तनों की खपत भी इनकी ओर से कराया जाता है, जिससे अच्छी खासी रकम प्राप्त होती है.

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झारखंड टूल रूम मिट्टी के बर्तनों के निर्माण के लिए ख्याति प्राप्त है. झारखंड समेत पूरे भारत में इस मिट्टी के बर्तन का खबर झारखंड टूल रूम से किया जाता है. कई राज्यों से आने वाले व्यापारी यहां से बनी हुई मिट्टी के बर्तनों का व्यापार करते हैं. वहीं टूल्स रूम से ग्रामीणों को रोजगार मुहैया प्रदान करने का काम करती है. इनसे ग्रामीण क्षेत्र में रह रहे गरीब बेरोजगार लोगों को इनसे जोड़कर मिट्टी के बर्तनों के निर्माण करने की कला भी सिखाती है और उन्हें अपनी योजनाओं से जोड़ती है. जिससे इन ग्रामीणों की आजीविका भी चलती है.

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