रांचीः राज्य गठन के 21 वर्ष बाद भी झारखंड में विकास के नाम पर राजनीति होती है. जल, जंगल और जमीन की रक्षा को लेकर लड़ाई लड़नेवाली वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार इन दिनों नई औद्योगिक एवं निवेश नीति लाकर राज्य में निवेशकों को आकर्षित करने में जुटी है. मगर बड़ा सवाल यह है कि निवेशक झारखंड के प्रति रुचि क्यों नहीं दिखा पाते हैं.
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सुर्खी में रहा मोमेंटम झारखंड का उड़ता हाथी
रघुवर कार्यकाल में आयोजित मोमेंटम झारखंड भलें ही निवेशक को आकर्षित करने में सफल नहीं हुआ मगर इसका उड़ता हुआ हाथी का लोगो आज भी सुर्खियों में है. जब कभी भी झारखंड में निवेश को प्रोत्साहित करने की बात होती है तो मोमेंटम झारखंड का उड़ता हाथी का नाम लिए वगैर लोग नहीं चूकते. मोमेंटम झारखंड के माध्यम से 03 लाख करोड़ रुपए का राज्य में निवेश के अलावे 1.60 लाख प्रत्यक्ष रोजगार देने का वादा किया गया था मगर हकीकत यह कि राज्य में इसके माध्यम से 500 करोड़ का भी निवेश नहीं हो पाया. धीरे धीरे ओरियंट सहित कई कंपनियां झारखंड से निकल गई. जो कुछ कंपनियां काम करना भी चाह रही हैं तो समुचित सहयोग के अभाव में काम शुरू नहीं कर पा रही है.
राज्य की पूर्ववर्ती रघुवर सरकार में लाई गई नीति में बदलाव कर निवेशक को उद्योग लगाने के लिए कई रियायतें भी दी गई हैं. मगर बड़ा सवाल यह है कि क्या बड़े निवेशक झारखंड का रुख करेंगे. यह सवाल वर्तमान समय में भी इसलिए उठ रहा है कि जो सुविधाएं एक उद्योग लगाने के लिए सरकार की ओर से मुहैया करानी चाहिए, उसे कागज के बजाय जमीन पर उतारने की कोशिश कभी नहीं की गई.
झारखंड बनते ही शुरू हो गया था एमओयू का खेल
राज्य गठन के शुरुआती दिनों में सड़क, बिजली, पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं पर विशेष बल दिया गया. बाद में राज्य में तेजी से विकास करने के लिए सरकार निवेशकों को आकर्षित करने में जुट गई. यहां की प्राकृतिक संसाधन के प्रति इंवेस्टर्स भी आकर्षित हुए. जिस गति से एक के बाद एक एमओयू पर हस्ताक्षर होते गए उससे लगा कि राज्य में रोजगार के अवसर के साथ-साथ औद्योगिकीकरण में तेजी आएगी मगर ऐसा हो नहीं सका.
जो भी सरकारें बनीं, सभी के कार्यकाल में राज्य में बड़े-बड़े निवेशकों से एमओयू कर राज्य की जनता को रोजगार एवं विकास का सपना दिखाया गया. वो चाहे मधु कोड़ा का शासनकाल हो या अर्जुन मुंडा का या रघुवर दास का शासनकाल. वर्तमान में हेमंत सरकार भी कुछ इसी राह पर चल पड़ी है. पिछली सरकार में हुए एमओयू पर नजर डालें तो सर्वाधिक एमओयू रघुवर सरकार के कार्यकाल में हुए.
साल 2017 में आयोजित मोमेंटम झारखंड के माध्यम से देश-विदेश की कंपनियों के साथ सरकार ने एमओयू करने में रिकॉर्ड बना डाला. पर्यटन, खाद्य-प्रसंस्करण, लघु एवं कुटीर उद्योग, कृषि एवं पशुपालन, कपड़ा उद्योग समेत कई क्षेत्रों में विकास का दावा किया गया था. मोंमेटम झारखंड से राज्य में तीन लाख करोड़ रुपए का निवेश होने का दावा किया गया था. इसके अलावा 1 लाख 60 हजार प्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी लोगों को मिलने का दावा भी किया गया.
मोमेंटम झारखंड में भाग लेने आए 210 में से 162 कंपनियों ने ही राज्य की पूर्ववर्ती सरकार से विधिवत एमओयू किया था. जिसमें 113 भारतीय कंपनियों ने एमओयू पर आगे बढ़ने की बात तो दूर झारखंड में बगैर निवेश किए यहां से चले गए. चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष प्रवीण जैन की मानें तो झारखंड में बड़े औद्योगिक घरानों उद्योग लगाने से कतराने के पीछे जमीन विवाद, सिंगल विंडो सिस्टम का फंक्शन ठीक से नहीं होना और कानून व्यवस्था एक बहुत बड़ा कारण है.
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निवेश के नाम पर खानापूर्ति
राज्य में निवेश को बढ़ाने के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति होती रही है, जिसमें निजी स्वार्थ और भ्रष्टाचार की शिकायतें आती रही हैं. मोमेंटम झारखंड में हुए गड़बड़ी की जांच की फाइलें हाई कोर्ट के आदेश पर एसीबी तक पहुंच गया है, वहीं महालेखाकार के यहां इसका स्पेशल ऑडिट हो रहा है. उद्योगपतियों के झारखंड के प्रति बेरुखी पर सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं.
पूर्व मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता केएन त्रिपाठी ने बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा है कि मोंमेटम झारखंड में जिस तरह हाथी उड़ाकर पैसे की बंदरबांट हुई, उसे सभी लोग जानते हैं. वहीं बीजेपी प्रदेश महामंत्री डॉ. प्रदीप वर्मा ने वर्तमान सरकार की इच्छाशक्ति पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि डेढ़ वर्ष में एक भी उद्योग हेमंत सरकार नहीं लगा पाई, बल्कि पहले से लगी बड़ी-बड़ी कंपनियां जरूर उचित माहौल नहीं होने के कारण यहां से चली गईं. ऐसे में निवेशकों को आकर्षित करना और नई उद्योग नीति केवल प्रोपगंडा है.