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झारखंड में निवेश करने से कन्नी काटते इंवेस्टर्स, जानिए इसके पीछे क्या है वजह

झारखंड में कोई बड़ा निवेशक निवेश नहीं करना चाहता. इसको लेकर हर सरकार चिंतित है. झारखंड बनने के साथ राज्य के विकास के लिए हर सेक्टर में सैकड़ों की संख्या में एमओयू हुए. लेकिन कोई भी निवेशक अब तक झारखंड में दाखिल नहीं हुआ. पढ़िए इस रिपोर्ट में कि आखिर इसके पीछे वजह क्या है.

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Published : Aug 17, 2021, 8:38 PM IST

Updated : Aug 18, 2021, 7:09 PM IST

रांचीः राज्य गठन के 21 वर्ष बाद भी झारखंड में विकास के नाम पर राजनीति होती है. जल, जंगल और जमीन की रक्षा को लेकर लड़ाई लड़नेवाली वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार इन दिनों नई औद्योगिक एवं निवेश नीति लाकर राज्य में निवेशकों को आकर्षित करने में जुटी है. मगर बड़ा सवाल यह है कि निवेशक झारखंड के प्रति रुचि क्यों नहीं दिखा पाते हैं.

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सुर्खी में रहा मोमेंटम झारखंड का उड़ता हाथी

रघुवर कार्यकाल में आयोजित मोमेंटम झारखंड भलें ही निवेशक को आकर्षित करने में सफल नहीं हुआ मगर इसका उड़ता हुआ हाथी का लोगो आज भी सुर्खियों में है. जब कभी भी झारखंड में निवेश को प्रोत्साहित करने की बात होती है तो मोमेंटम झारखंड का उड़ता हाथी का नाम लिए वगैर लोग नहीं चूकते. मोमेंटम झारखंड के माध्यम से 03 लाख करोड़ रुपए का राज्य में निवेश के अलावे 1.60 लाख प्रत्यक्ष रोजगार देने का वादा किया गया था मगर हकीकत यह कि राज्य में इसके माध्यम से 500 करोड़ का भी निवेश नहीं हो पाया. धीरे धीरे ओरियंट सहित कई कंपनियां झारखंड से निकल गई. जो कुछ कंपनियां काम करना भी चाह रही हैं तो समुचित सहयोग के अभाव में काम शुरू नहीं कर पा रही है.

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राज्य की पूर्ववर्ती रघुवर सरकार में लाई गई नीति में बदलाव कर निवेशक को उद्योग लगाने के लिए कई रियायतें भी दी गई हैं. मगर बड़ा सवाल यह है कि क्या बड़े निवेशक झारखंड का रुख करेंगे. यह सवाल वर्तमान समय में भी इसलिए उठ रहा है कि जो सुविधाएं एक उद्योग लगाने के लिए सरकार की ओर से मुहैया करानी चाहिए, उसे कागज के बजाय जमीन पर उतारने की कोशिश कभी नहीं की गई.


झारखंड बनते ही शुरू हो गया था एमओयू का खेल
राज्य गठन के शुरुआती दिनों में सड़क, बिजली, पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं पर विशेष बल दिया गया. बाद में राज्य में तेजी से विकास करने के लिए सरकार निवेशकों को आकर्षित करने में जुट गई. यहां की प्राकृतिक संसाधन के प्रति इंवेस्टर्स भी आकर्षित हुए. जिस गति से एक के बाद एक एमओयू पर हस्ताक्षर होते गए उससे लगा कि राज्य में रोजगार के अवसर के साथ-साथ औद्योगिकीकरण में तेजी आएगी मगर ऐसा हो नहीं सका.

जो भी सरकारें बनीं, सभी के कार्यकाल में राज्य में बड़े-बड़े निवेशकों से एमओयू कर राज्य की जनता को रोजगार एवं विकास का सपना दिखाया गया. वो चाहे मधु कोड़ा का शासनकाल हो या अर्जुन मुंडा का या रघुवर दास का शासनकाल. वर्तमान में हेमंत सरकार भी कुछ इसी राह पर चल पड़ी है. पिछली सरकार में हुए एमओयू पर नजर डालें तो सर्वाधिक एमओयू रघुवर सरकार के कार्यकाल में हुए.

साल 2017 में आयोजित मोमेंटम झारखंड के माध्यम से देश-विदेश की कंपनियों के साथ सरकार ने एमओयू करने में रिकॉर्ड बना डाला. पर्यटन, खाद्य-प्रसंस्करण, लघु एवं कुटीर उद्योग, कृषि एवं पशुपालन, कपड़ा उद्योग समेत कई क्षेत्रों में विकास का दावा किया गया था. मोंमेटम झारखंड से राज्य में तीन लाख करोड़ रुपए का निवेश होने का दावा किया गया था. इसके अलावा 1 लाख 60 हजार प्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी लोगों को मिलने का दावा भी किया गया.

मोमेंटम झारखंड में भाग लेने आए 210 में से 162 कंपनियों ने ही राज्य की पूर्ववर्ती सरकार से विधिवत एमओयू किया था. जिसमें 113 भारतीय कंपनियों ने एमओयू पर आगे बढ़ने की बात तो दूर झारखंड में बगैर निवेश किए यहां से चले गए. चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष प्रवीण जैन की मानें तो झारखंड में बड़े औद्योगिक घरानों उद्योग लगाने से कतराने के पीछे जमीन विवाद, सिंगल विंडो सिस्टम का फंक्शन ठीक से नहीं होना और कानून व्यवस्था एक बहुत बड़ा कारण है.

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निवेश के नाम पर खानापूर्ति
राज्य में निवेश को बढ़ाने के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति होती रही है, जिसमें निजी स्वार्थ और भ्रष्टाचार की शिकायतें आती रही हैं. मोमेंटम झारखंड में हुए गड़बड़ी की जांच की फाइलें हाई कोर्ट के आदेश पर एसीबी तक पहुंच गया है, वहीं महालेखाकार के यहां इसका स्पेशल ऑडिट हो रहा है. उद्योगपतियों के झारखंड के प्रति बेरुखी पर सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं.

पूर्व मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता केएन त्रिपाठी ने बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा है कि मोंमेटम झारखंड में जिस तरह हाथी उड़ाकर पैसे की बंदरबांट हुई, उसे सभी लोग जानते हैं. वहीं बीजेपी प्रदेश महामंत्री डॉ. प्रदीप वर्मा ने वर्तमान सरकार की इच्छाशक्ति पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि डेढ़ वर्ष में एक भी उद्योग हेमंत सरकार नहीं लगा पाई, बल्कि पहले से लगी बड़ी-बड़ी कंपनियां जरूर उचित माहौल नहीं होने के कारण यहां से चली गईं. ऐसे में निवेशकों को आकर्षित करना और नई उद्योग नीति केवल प्रोपगंडा है.

राज्य में 2015 एकड़ उद्योग के लिए उपलब्ध जमीन
राज्य में उद्योग लगाने के लिए राज्य सरकार के पास 2015 एकड़ जमीन उपलब्ध है, जिसे निवेशकों को दी जाएगी. सरकार को उम्मीद है कि इससे भारी भरकम निवेश होगा और उद्योगपतियों को व्यापार करने का समुचित माहौल मिलेगा.

कहां, कितनी जमीन उपलब्ध है

आइये जानते हैं कहां है कितनी जमीन, आदित्यपुर इंडस्ट्रीयल एरिया के 4550 एकड़ क्षेत्र में 889 एकड़ उपलब्ध है. राजधानी रांची में उद्योग लगाने के लिए 2307 एकड़ में से 684 एकड़ जमीन निवेशकों के लिए उपलब्ध है. ठीक उसी तरह बोकारो जैसे औद्योगिक शहर में कुल क्षेत्र 1618 एकड़ में से 34 एकड़ जमीन निवेशक के लिए खाली है. संथाल परगना में विकास के लिए 1429 एकड़ की जमीन में से 407 एकड़ की जमीन में उद्योग लगाने के लिए निवेशकों के खाली छोड़ी गई है.

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लौट गई कई कंपनियां

विदेशी कंपनियों में कूल लाइट फ्रांस, आईटीई एजुकेशन सिंगापुर, स्मार्ट सिटी वन दक्षिण कोरिया कोलाज फ्रांस, एनजीपी हरक्यूलिस लिमिटेड, लाइट साउंड इंक कनाडा, कोलो ग्लोबल एबी स्वीडन ने झारखंड सरकार के साथ एमओयू किया था. भारतीय कंपनियों में इन पेरिया स्ट्रक्चर लिमिटेड, श्रीराम मल्टीकॉम प्राइवेट लिमिटेड, रामकृष्ण फोर्जिंग लिमिटेड, प्रसाद एक्सप्लोसिव केमिकल, त्रिमूला इंडस्ट्रीज लिमिटेड सहित डेढ़ दर्जन से अधिक कंपनियों ने एमओयू के बाद झारखंड की ओर पलट कर नहीं देखा.

बड़ी कंपनियों ने मुंह मोड़ लिया

26 मार्च 2004 को झारखंड सरकार का आरजी स्टील लिमिटेड के साथ एमओयू हुआ था. जमीन और खदान नहीं मिलने के कारण कंपनी ने निवेश नहीं करने का निर्णय लिया. गोयल स्पोंज प्राइवेट लिमिटेड के साथ 12 अप्रैल 2005 को एमओयू हुआ था. बाद में कंपनी ने रुचि नहीं दिखाई. कल्याणी स्टील लिमिटेड के साथ 23 जुलाई 2005 को एमओयू हुआ था. लेकिन, जमीन और माइंस नहीं मिलने के कारण झारखंड को निवेश से हाथ धोना पड़ा.

कोल स्टील एंड पावर लिमिटेड के साथ सरकार का 29 दिसंबर 2006 को समझौता हुआ था. माइंस और जमीन न मिलने के कारण राज्य को 3,300 करोड़ के निवेश से हाथ धोना पड़ा. सार्थक इंडस्ट्रीज के साथ 26 फरवरी 2007 को सरकार ने समझौता किया. जमीन और माइंस नहीं मिलने के कारण कंपनी ने रुचि नहीं दिखाई. मां चंडी दुर्गा इस्पात के साथ 9 फरवरी 2007 को समझौता हुआ था. लेकिन, बाद में कंपनी ने निवेश नहीं किया. इसी तरह जगदंबा इस्पात सर्विसेज के साथ 9 फरवरी 2007 को समझौते हुआ. कंपनी ने प्लांट लगाने में रुचि नहीं दिखाई.

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नई औद्योगिक नीति में पांच सेक्टरों टेक्सटाइल एंड अपेरल, ऑटोमोबाइल्स, ऑटो कंपोनेंट्स एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल, एग्रोफूड प्रोसेसिंग एंड मीट प्रोसेसिंग इंडस्ट्री, फार्मास्युटिकल और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन एंड मैन्युफैक्चरिंग पर सर्वाधिक फोकस किया गया है. नई औद्योगिक नीति के तहत आठ सेक्टर स्टार्टअप एंड इक्यूबेसन सेंटर्स, शिक्षा एवं तकनीकी संस्थान, हेल्थकेयर, पर्यटन, सूचना प्रौद्योगिकी, ब्रुअरी एंड डिस्टीलरी को खास ध्यान रखा गया है.

नई औद्योगिक नीति में 5 सेक्टर्स पर फोकस

इसके अलावा नई औद्योगिक एवं निवेश प्रोत्साहन नीति में पहली बार जल्द भौतिक रूप से काम शुरू करने के लिए यूनिट को पांच प्रतिशत की अतिरिक्त कैपिटल सब्सिडी दी जाएगी. इसी प्रकार निजी विश्वविद्यालय, मेडिकल एजुकेशन एंड हेल्थ केयर फैसिलिटी को इनसेंटिव का प्रावधान किया गया है. इसके साथ ही कॉम्प्रिहेंसिव प्रोजेक्ट इंसेंटिव, स्टांप ड्यूटी रिम्बर्समेंट, क्वालिटी सर्टिफिकेशन एंड रजिस्ट्रेशन में मदद सरकार की ओर से उपलब्ध होगी.

नई औद्योगिक नीति में मदद का प्रावधान

निवेशकों का विश्वास जीते बगैर राज्य में उद्योग-धंधा लगाने की सोचना दिन में सपना देखने जैसा है. यह विश्वास तभी जीता जा सकता है, जब कागज पर बनी पॉलिसी को धरातल पर उतारकर निवेशकों को सुविधा दी जाए. मगर झारखंड में अब तक इसपर फोकस नहीं किया गया है. जिसकी वजह से प्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों के रहते हुए भी समुचित माहौल का अभाव और बार-बार उद्योग नीति में बदलाव से परेशान इन्वेस्टर यहां निवेश करने से कतराते हैं.

Last Updated : Aug 18, 2021, 7:09 PM IST

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