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जानिए क्या है ऑफिस ऑफ प्रॉफिट, जिसके कारण खतरे में है सीएम हेमंत सोरेन की कुर्सी - Jharkhand news

ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में सीएम हेमंत सोरेन की कुर्सी खतरे में है. इस खबर में जानिए कि आखिर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट क्या है और किन स्थितियों में जनप्रतिनिधियों विधायक, सांसद को अयोग्य ठहराया जा सकता है.

Know what is Office of Profit
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Published : Aug 25, 2022, 7:08 PM IST

Updated : Aug 25, 2022, 7:22 PM IST

रांची:भारत चुनाव आयोग ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में अपनी रिपोर्ट झारखंड के राज्यपाल को एक सील बंद लिफाफे में भेज दी है. कहा ये जा रहा है कि चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की है. संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत किसी सदस्य को अयोग्य ठहराने के मामले में अंतिम फैसला राज्यपाल का होता है. अब जबकि चुनाव आयोग ने इस मामले में अपनी सिफारिश भेज दी है तो इस मामले में अंतिम फैसला राज्यपाल लेंगे. इस खबर में जानिए आखिर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट क्या है (Know what is Office of Profit).

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हेमंत सोरेन पर आरोप: सीएम हेमंत सोरेन से जुड़ा मामला उनके खनन लीज और शेल कंपनियों में उनकी हिस्सेदारी से जुड़ा है. हेमंत सोरेन पर आरोप है कि उन्होंने सीएम रहते अपने नाम पर ही अनगड़ा में पत्थर खदान लीज पर लिया. रांची के अनगड़ा मौजा थाना नंबर 26, खाता नंबर 187 प्लॉट नंबर 482 में पत्थर खनन पट्टा लेने का आरोप लगाया. जिसके बाद राजभवन ने भारत निर्वाचन आयोग से मंतव्य मांगा था. तत्पश्चात भारत निर्वाचन आयोग ने मुख्य सचिव को चिठ्ठी भेजकर रिपोर्ट मंगवाई. मुख्य सचिव की रिपोर्ट मिलने के बाद भारत निर्वाचन आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस भेजकर खनन पट्टा मामले में सुनवाई शुरू की.

क्या है जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951: संविधान के अनुच्छेद 327 के तहत जनप्रतिनिधत्‍व अधिनियम, 1951 को संसद ने पारित किया है. ये इन बातों की पुष्टि करता है कि संसद और राज्य विधानसभाओं में सदस्य बनने के लिए क्या योग्यताएं होती हैं. धारा 8 (4) में ये भी प्रावधान है कि कोई भी जनप्रतिनिधि अगर किसी भी मामले में दोषी ठहराए जाने की तिथि से तीन महीने तक अदालत में अपील दायर करता है, तो उसका निपटारा होने की तारीख तक वो अपने पद से अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता.

क्या होता है लाभ का पद: भारतीय संविधान के आर्टिकल 102 (1) (ए) के अनुसार, कोई व्यक्ति सासंद या विधायक अयोग्य होगा अगर वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन, किसी ऐसे पद पर आसीन रहता है, जहां से अलग से वेतन, भत्ता या बाकी फायदे मिलते हों. इससे पहले भी कई लोगों की सदस्यता इस कानून को लेकर जा चुकी है. सीधे शब्दों में कहें तो वो दो जगहों से वेतन या भत्ते प्राप्त नहीं कर सकता है. इसमें भी शर्त ये है कि लाभ का पद वो होता है, जिस पर नियुक्ति सरकार करती हो और सरकार उस पद को नियंत्रित करती हो. ऐसे में अगर कई प्रतिनिधि ऐसा करते हैं तो उसे अयोग्य करार दिया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार किसी सांसद या विधायक ने लाभ का पद लिया है तो उसकी सदस्यता निरस्त हो जाएगी. भले ही उसने किसी तरह का वेतन या फिर भत्ते नहीं लिए हों.

किन लोगों पर हो चुकी है कार्रवाई: लाभ के पद पर रहते हुए अब तक कई लोगों को पर कार्रवाई हो चुकी है. 2018 में चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका देते हुए पार्टी के 20 विधायकों को लाभ के पद के मामले में अयोग्य घोषित करार दिया.

चुनाव आयोग ने वेतन, गाड़ी, बंगला या घर नहीं लेने के बावजूद चुनाव आयोग ने इन विधायकों को लाभ के पद का उपयोग करने का दोषी माना. हालांकि हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग की ओर से लाभ के पद मामले में अयोग्य ठहराए गए 20 विधायकों की सदस्यता बहाल कर दी. साथ ही चुनाव आयोग को फिर से यह केस शुरू करने का आदेश दिया.

साल 2006 में यूपीए शासनकाल में सोनिया गांधी भी लाभ के पद के चक्कर में फंस गईं थीं. सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद थीं, इसके साथ ही वह यूपीए सरकार के समय गठित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की चेयरमैन भी थीं. इस चुनाव आयोग ने लाभ का पद करार दिया. जिसकी वजह से सोनिया गांधी को लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा. जिसके बाद उन्होंने रायबरेली से दोबारा चुनाव लड़ा.

इसी तरह साल 2006 में ही जया बच्चन पर भी लाभ के पद का शिकार हुईं थी. जया राज्यसभा सांसद थीं, इसके साथ ही वे उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम की चेयरमैन भी थीं, जिसे लाभ का पद करार दिया गया और चुनाव आयोग्य ने जया बच्चन को अयोग्य ठहराया था. हालांकि इसे लेकर जया बच्चन सुप्रीम कोर्ट भी गईं लेकिन उन्हें वहां से राहत नहीं मिली और उनकी राज्यसभा सदस्यता रद्द हो गई थी.

Last Updated : Aug 25, 2022, 7:22 PM IST

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