भागलपुर:सावन के महीने में भोलेनाथ के दर्शन के लिए कावड़ियों (Lord Shiv Jalabhishek By Kanwariya)और डाक बम का बाबा धाम में पहुंचने की परंपरा सदियों पुरानी है. सावन का महीना शुरू होते ही बिहार से लेकर झारखंड तक चारों तरफ भगवा रंग में डूबे श्रद्धालु नजर आ जाएंगे, जो बिहार के भागलपुर से गंगा जल लेकर देवघर (kanwar yatra from Bhagalpur To Deoghar) में भोलेनाथ को चढ़ाते हैं. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार इस साल (Kanwar Yatra 2022) में सावन का महीना 14 जुलाई से शुरू हो रहा है. जो कि श्रावण पूर्णिमा के साथ 12 अगस्त को समाप्त होगा. वहीं, सावन का पहला सोमवार 18 जुलाई 2022 को और अंतिम सावन सोमवार 08 अगस्त 2022 को पड़ेगा. आज हम हम आपको कावड़ियों द्वारा सुल्तानगंज से बाबा धाम तक पहुंचने की अलौकिक कांवर यात्रा के बारे में बताएंगे.
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गंगाजल लेने के लिए देश भर से आते हैं श्रद्धालुः बिहार का भागलपुर जिला एक ऐतिहासिक स्थल है. यह गंगा नदी के तट पर बसा हुआ है. जहां बाबा अजगैबीनाथ का विश्वप्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है. उत्तरवाहिनी गंगा होने के कारण सावन के महीने में लाखों कावड़ियां देश के विभिन्न भागों से गंगाजल लेने के लिए यहीं आते हैं. फिर यह गंगाजल लेकर झारखंड राज्य के देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ को चढ़ाने के लिए पैदल ही जाते हैं. बाबा बैद्यनाथ धाम भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में एक माना जाता है. सुल्तानगंज हिन्दू तीर्थ के अलावा बौद्ध पुरावशेषों के लिये भी विख्यात है.
यहां उत्तर दिशा में बहती है गंगाः सुल्तानगंज में उत्तर वाहिनी गंगा के साथ एक बहुश्रुत किंवदन्ती भी प्रसिद्ध है. कहते हैं कि जब भगीरथ के प्रयास से गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ तो उनके वेग को रोकने के लिये साक्षात भगवान शिव अपनी जटायें खोलकर उनके प्रवाह-मार्ग में आकर उपस्थित हो गए. शिवजी के इस चमत्कार से गंगा गायब हो गयीं. बाद में देवताओं की प्रार्थना पर शिव ने उन्हें अपनी जांघ के नीचे बहने का मार्ग दे दिया. इस कारण से पूरे भारत में केवल यहां ही गंगा उत्तर दिशा में बहती है, कहीं और ऐसा नहीं है.
यहां साक्षात उपस्थित हुए थे भगवान शिवः बताया जाता है कि शिव स्वयं आपरूप से यहां पर प्रकट हुए थे. इसलिए लोगों ने यहां पर स्वयंभू शिव का मन्दिर स्थापित किया और उसे नाम दिया अजगैबीनाथ मंदिर. यानी एक ऐसे देवता का मंदिर जिसने साक्षात उपस्थित होकर यहां वह चमत्कार कर दिखाया जो किसी सामान्य व्यक्ति से सम्भव न था. जो भी लोग यहां सावन के महीने में कांवर के लिये गंगाजल लेने आते हैं, वे इस मंदिर में आकर भगवान शिव की पूजा अर्चना और जलाभिषेक करना हरगिज नहीं भूलते. इस दृष्टि से यह मंदिर यहां का अति महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है.
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भागलपुर से देवघर पैदल पहुंचते हैं कांवड़ियेःबाबा धाम की अलौकिक कांवर यात्रा बिहार के भागलपुर जिले से शुरू होती है. इस यात्रा का एक बड़ा हिस्सा करीब सौ किलोमीटर बिहार में पड़ता है और इसके बाद करीब पंद्रह किलोमीटर झारखंड में आता है. परंपरा के अनुसार शिवभक्त भागलपुर के सुल्तानगंज में गंगा नदी में स्नान करते हैं और बाबा अजगैबीनाथ की पूजा कर यात्रा का संकल्प लेते हैं. वे गंगा जल को दो पात्रों में लेकर एक बहंगी में रख लेते हैं, जिसे कांवड़ कहा जाता है. कांवड़ लेकर चलने वाले शिवभक्त कांवड़िये कहलाते हैं. बता दें कि दो साल से कोरोना के कारण श्रद्धालुओं के कांवड़िया पथ से न गुजरने के कारण बहुत से लोगों ने पर अतिक्रमण कर लिया है, जिसको ध्यान में रखते हुए प्रशासन ने कई जगहों पर कांवड़िया पथ को अतिक्रमण मुक्त करवाया है. कई जगहों पर बुलडोजर भी चलवाया गया.
करीब सौ किलोमीटर की होती है पैदल यात्राः सबसे पहले कांवड़ियां सुल्तानगंज से 13 किलोमीटर चलकर असरगंज पहुंचते हैं और यहां से तारापुर की दूरी 8 किलोमीटर और फिर रामपुर की दूरी 7 किलोमीटर है. इन पड़ावों पर कांवड़िये थोड़ा विश्राम करते हैं. रामपुर से 8 किलोमीटर की यात्रा करने पर कुमरसार और 12 किलोमीटर आगे विश्वकर्मा टोला का पड़ाव आता है. रास्ते भर में कांवड़ियों की सेवा के लिए सरकार के साथ निजी संस्थाएं भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं. शिविरों में चौबीस घंटे मुफ्त खाना और दवाएं दी जाती हैं. विश्वकर्मा टोला से थोड़ा आगे बढ़ने पर जलेबिया मोड़ है. अपने नाम की तरह ही ये मोड़ काफी घुमावदार है. यहां से 8 किलोमीटर आगे सुईया पहाड़ है. किसी जमाने में यहां के पत्थर बहुत नुकीले थे, हालांकि सड़क बनने के बाद रास्ता थोड़ा आसान हो गया है. इसके बाद कांवड़िए अबरखा, कटोरिया, लक्ष्मण झूला और इनरावरन होते हुए गोड़ियारी पहुंचते हैं. करीब सौ किलोमीटर यात्रा के बाद बांका में बिहार की सीमा समाप्त हो जाती है और कांवड़ियों का स्वागत झारखंड में होता है.
दुम्मा से करते है झारखंड में प्रवेशःकरीब 100 मीटरलंबी पैदल यात्रा के दौरान शिवभक्तों के पैरों में छाले पड़ जाते हैं. लेकिन आस्था के आगे हर कष्ट छोटा नजर आता है. बोल बम के जयघोष के बीच उनका उत्साह बढ़ता जाता है और कदम अपने आप आगे बढ़ता है. शिव के दर्शन की इच्छा सभी कष्टों को भुला देती है. सभी श्रद्धालु दुम्मा में विशाल गेट से झारखंड में प्रवेश करते हैं और करीब 17 किलोमीटर चलकर बाबा भोलेनाथ की शरण में पहुंच जाते हैं. गोड़ियारी से कलकतिया और दर्शनिया होते हुए बाबा धाम जाने का रास्ता है. यहां पहुंचकर बाबा धाम के शिवगंगा में श्रद्धालु स्नान करते हैं, जो शुभ माना जाता है. लिहाजा शिवभक्त शिवगंगा में स्नान करने के बाद ही शिव के दर्शन करते हैं और जल चढ़ाते हैं. हालांकि इनकी ये यात्रा अभी पूरी नहीं मानी जाती.
बासुकीनाथ में पूरी होती है यात्राःआपको बता दें कि बाबा धाम में कांवड़ियों की यात्रा पूरी नहीं होती. देवघर के बाद शिवभक्त 45 किलोमीटर दूर दुमका के बासुकीनाथ मंदिर जाते हैं और दूसरे पात्र का जल भगवान शिव को चढ़ाते हैं. मान्यताओं के अनुसार बाबा धाम भगवान शिव का दीवानी दरबार है और बासुकीनाथ मंदिर में भगवान का फौजदारी दरबार लगता है. बासुकीनाथ के दर्शन के बाद ही कांवड़ियों की अलौकिक यात्रा पूरी होती है.
सबसे कठिन है डंडी बम की यात्राः बाबा धाम की यात्रा को ज्यादातर कांवरिये पैदल ही पूरा करते हैं. इनमें कावंड़ियों को एक वर्ग डाक बम होता है, जो सीधे सुल्तानगंज से देवघर पहुंचते हैं, ये रास्ते में कहीं नहीं रुकते और न ही विश्राम करते हैं. बिना रुके, बिना थके डाक बम 24 घंटे के अंदर दिन-रात चलकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. वहीं, बाबा धाम पहुंचने के लिए डंडी बम की यात्रा सबसे कठिन होती है. डंडी बम सुल्तानगंज से जल भरने के बाद रास्ते भर दंडवत होते हुए बाबा धाम पहुंचते हैं. इनका हठ, योग और पराकाष्ठा देखते बनती है. डंडी बम को बाबा धाम पहुंचने में लगभग एक महीने लग जाते हैं. इस दौरान फलाहार के बावजूद इनकी आस्था निराली होती है. इनका कष्ट, इनकी इच्छा और दवा सिर्फ भगवान शिव के दर्शन की अभिलाषी होती है. कुछ शिवभक्त सुल्तानगंज की जगह शिवगंगा से ही दंडवत देते हुए बाबा धाम पहुंचते हैं, इन्हें भी डंडी बम कहा जाता है.