रांची: झारखंड का जंगल जड़ी-बूटी से भरा है. गांव और जंगलों में ऐसे बहुत से पेड़ पौधे पाए जाते हैं जो औषधि के रूप में काम आते हैं. उन पौधों की जानकारी सबसे ज्यादा गांव और जंगल में रहने वाले आदिवासियों को होती है. आदिवासी, औषधीय पौधे के बारे में बेहतर तरीके से जानते हैं और इनका इस्तेमाल भी दवा के रूप में करते हैं. कई तरह की जड़ी बूटी बनाकर हाट बाजारों में बेचते हैं.
छोटी-छोटी पोटलियों में रखी गई सूखी पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर हैं. इन सूखे साग और औषधियों का नाम थोड़ा सा सुनकर अटपटा जरूर लगेगा और यह सिर्फ झारखंड के बाजार हाट में ही उपलब्ध हो पाता है. आदिवासी इन सूखे सागों को औषधि के रूप में इस्तेमाल करते हैं.
स्थानीय भाषा में सागों के कई है नाम
बेंग साग, सनई फूल, चाकोड साग, शकरकंद साग, चना साग, कटाई ऐसे साग हैं जो सिर्फ बीमारियां दूर ही नहीं करती, बल्कि बीमारियों को लोगों के आसपास तक नहीं भटकने देती. वही जंगलों में मिलने वाले चिरैता, बालम खीरा, जैसी औषधि शरीर के ब्लड को भी रिफाइन करता है.