रांचीः अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कुछ सशक्त महिलाओं के बारे में बात करते हैं. जिन्होंने जीवन में एक मुकाम हासिल किया है. अपनी जिद और जज्बे की वजह से अपने जीवन में बदलाव लाया है. आज हम बात कर रहे हैं झारखंड की पहली महिला लोको पायलट दीपाली की. जिन्होंने कठिन संघर्ष करते हुए एक मुकाम हासिल किया है.
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International Women's Day: मिलिए झारखंड की पहली महिला लोको पायलट दीपाली अमृत से, दृढ़ इच्छाशक्ति से तय किया कामयाबी का सफर
झारखंड की पहली महिला लोको पायलट दीपाली अमृत हैं. उन्होंने तमाम मुश्किलों को पार करते हुए यह मुकाम हासिल किया है. अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण आज वह दक्षिण पूर्वी रेलवे के तमाम पटरी पर ट्रेन चला चुकी हैं.
राजधानी रांची के कांके क्षेत्र की रहने वाली दीपाली अमृत रांची रेल मंडल में झारखंड की पहली महिला लोको पायलट हैं. बता दें कि लोको पायलट का काम ट्रेन चलाना होता है. ट्रेन का ड्राइवर ट्रेन का केंद्र बिंदु होता है. दूरदराज दिन हो या रात या चाहे बिन मौसम बरसात हर परिस्थिति में एक लोको पायलट की यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाना एक बड़ी जिम्मेदारी होती है. हर सफलता के पीछे एक सपना जरूर होता है और उस सपने को पूरा करने के लिए अगर आप दृढ़ इच्छाशक्ति रखते हो तो सपना जरूर पूरा होता है और दीपाली अमृत ने भी ऐसा ही एक सपना देखा था और उन्होंने इस सपने को साकार करके भी दिखाया. झारखंड की पहली महिला लोको पायलट दीपाली अमृत के जज्बे की सराहना दक्षिण पूर्वी रेलवे ने भी उनके ऊपर एक डॉक्यूमेंट्री बनाकर की है. दीपाली कहती हैं बचपन से ही उनका सपना था कि कुछ अलग करना है और इसके लिए दीपाली की मां ने उसे काफी प्रेरणा दी थी.
रेलवे के साथ सफरःवर्ष 2007 में दीपाली ने असिस्टेंट लोको पायलट के रूप में रेलवे ज्वाइन किया. फिर शुरू हुआ रेलवे के साथ इनका सफर. संयुक्त परिवार में रहने के कारण दीपाली को पारिवारिक समस्या से कम जूझना पड़ा. लेकिन फिर भी एक महिला होने के नाते बच्चे के साथ-साथ अपने काम को भी कैसे संतुलित करें यह एक बड़ी चिंता थी. पढ़ाई के बाद दीपाली का सहयोग उसकी मां करती थी, लेकिन जब शादी हुई और ससुराल आई, बच्चे हुए तब सास ने उनकी काफी मदद की. दीपाली मां और सास दोनों को एक समान मानती हैं. साथ ही अपने काम को भी तवज्जो देती हैं. दीपाली कहती हैं बच्चों के साथ-साथ परिवार और काम का तालमेल बैठाना थोड़ा कठिन जरूर है, लेकिन परिवार का सहयोग और दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण आज वह दक्षिण पूर्वी रेलवे के तमाम पटरी पर ट्रेन चला चुकी है.